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इस्पात नगरी टाटा में क्यों छीन रहीं नौकरियां

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52 साल के मुकेश राय साल 1989 में बिहार में अपना पैतृक घर छोड़कर टाटा (जमशेदपुर) आ गए थे. यहां उन्होंने लेथ (लोहा काटने की मशीन) का काम सीखा और दैनिक मज़दूरी करते-करते वाई-6 कर्मचारी बन गए.

वाई-6 कैटेगरी दरअसल, उन ठेका कर्मचारियों की होती है, जो स्थायी नहीं हैं लेकिन उन्हें रोज़ काम मिलता है. उन्हें पीएफ़ और इएसआई जैसी सुविधाएं भी मिलती हैं. मुकेश राय को भी ये सारी सुविधाएं मिलती थीं.

लेकिन, पिछले दो महीने से वो बेरोज़गार हैं. उनकी कंपनी ‘माल मैटेलिक’ में उत्पादन बंद है. इस कारण उन्हें काम नहीं मिल पा रहा.

आठ जुलाई को वो आख़िरी बार काम पर गए थे. जुलाई के आठ दिन का मेहनताना (करीब 3500 रुपये) भी उन्हें नहीं मिला है. अब वे गंभीर आर्थिक संकट में हैं. उनकी पत्नी रिंकू देवी ने कुछ पैसे बचाकर रखे थे. वे पैसे भी अब ख़त्म हो गए, तो उन्हें अपने गहने गिरवी रखकर उधार लेना पड़ा.

उन्होंने बताया कि आर्थिक संकट और बेरोज़गारी की ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं आई थी.

मुकेश राय ने बीबीसी से कहा, “ठेकेदार का कहना है कि टाटा स्टील के उत्पादन में कटौती की जा रही है. इस कारण उससे जुड़ी कंपनियों में काम बंद हो गए हैं.”

जुलाई बीता, अगस्त भी बीता. अब सितंबर-अक्टूबर में भी काम मिलेगा या नहीं, यह बताने वाला कोई नहीं है.

हज़ारों लोग बेरोज़गार

दरअसल, स्टील उद्योग में इन दिनों सुस्ती है. टाटा स्टील, जेएसडब्लू और आर्सेलर मित्तल जैसी बड़ी कंपनियों ने अपने उत्पादन में कटौती की है.

इस कारण सैकड़ों छोटी कंपनियां या तो बंद हो गई हैं, या फिर उनके यहां उत्पादन ठप पड़ा है.

आदित्यपुर स्मॉल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष इंदर अग्रवाल ने बताया कि अकेले आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया में कम से कम 30 वैसी कंपनियों में ताला लटक गया है, जो इंडक्शन फर्नेस के काम में लगी थीं.

इसका एक कारण झारखंड सरकार की ओर से बिजली के दर में अचानक की गई 38 फ़ीसदी की बढ़ोतरी भी है.

रांची और रामगढ़ की भी कई कंपनियों में उत्पादन ठप है. लघु उद्योग भारती के अध्यक्ष रुपेश कटियार के मुताबिक़, सिर्फ़ झारखंड में 70 हजार से अधिक लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर बेरोज़गार हो गए हैं. मुकेश राय भी इनमें से एक हैं.

यही हालत देश के दूसरे राज्यों की भी है. स्टील के उत्पादन में लगी तमाम कंपनियां इस स्लोडाउन से उबरने का रास्ता तलाश रही हैं.

झारखंड पर बड़ा असर

झारखंड इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (जियाडा) के उद्योग प्रसार पदाधिकारी अनिल कुमार ने बताया कि टाटा समूह की कंपनियों में उत्पादन कम होने के कारण यह हालत हुई है. उनकी डिमांड घट गई है.

उन्होंने बताया, “आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया में क़रीब 50 हज़ार लोगों को बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है. इनमें ज्यादातर लोग दिहाड़ी पर काम करने वाले मज़दूर या छोटे कर्मचारी हैं. ऐसे में क़रीब 90 फ़ीसदी लोग बेरोज़गार हो गए हैं.”

आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया स्मॉल इंडस्ट्री एसोसिएशन (एसिया) के सचिव दीपक डोकानिया ने कहा कि ताजा स्लोडाउन की मुख्य वजह नक़दी की कमी है.

उन्होंने बीबीसी से कहा, “बाज़ार में पैसा नहीं है. जब पूंजी ही नहीं रहेगी, तब उत्पादन कैसे होगा. प्रोडक्शन में कटौती के कारण मुझे भी अपनी कंपनी बीएमसी मेटलकास्ट लिमिटेड के कुल 400 कर्मचारियों में से 50-60 को बैठाना पड़ा है. यह ग़लत है, लेकिन हमारे पास कोई ऑप्शन भी नहीं है.”

क्यों घटा स्टील उत्पादन

टाटा स्टील के सीईओ टीवी नरेंद्रन ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से पिछले दिनों हुई मुलाकात के बाद एक इंटरव्यू में कहा कि स्टील उद्योग में स्लोडाउन दरअसल, ऑटो सेक्टर से जुड़ा है. इस वजह से टाटा स्टील ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए तय लक्ष्य में कटौती की है.

23 अगस्त को सुस्त अर्थव्यवस्था और अलग-अलग सेक्टर में लोगों की नौकरी जाने की ख़बरों के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक प्रेस वार्ता की.

ऑटो सेक्टर की समस्याओं को निवारण के लिए उन्होंने एलान किया कि 31 मार्च 2020 तक ख़रीदे गए बीएस-IV वाहन अपने रजिस्ट्रेशन पीरियड तक बने रहेंगे और उनके वन टाइम रजिस्ट्रेशन फ़ीस को जून 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया.

साथ ही ऑटोमोबिल सेक्टर में स्क्रैपेज पॉलिसी (पुरानी गाड़ियां का सरेंडर) लाने की घोषणा की, सरकार ने कहा कि गाड़ियों की ख़रीद बढ़ाने के लिए सरकार कई दूसरी योजनाओं पर काम कर रही है.

टीवी नरेंद्रन ने मीडिया से कहा, “ऑटो सेक्टर के उत्पादन में क़रीब 12 फ़ीसदी की गिरावट आई है. इससे ऑटोमोटिव स्टील मार्केट प्रभावित हुआ है. क्योंकि, भारत में कुल स्टील उत्पादन का 20 फ़ीसदी हिस्सा ऑटो इंडस्ट्री में उपयोग में लाया जाता है.”

“हालांकि, स्टील के अंतरराष्ट्रीय बाज़ार पर इसका असर नहीं है. स्लोडाउन का ज़्यादा असर डोमेस्टिक यानी घरेलू मार्केट पर पड़ रहा है.”

कब तक रहेगा स्लोडाउन

सिंहभूम चेंबर आफ कॉमर्स के वाइस प्रेजिडेंट (इंडस्ट्री) नीतेश शूट और उद्योगपति राहत हुसैन मानते हैं कि बाज़ार को इस स्लोडाउन से उबरने में पांच-छह महीने लग सकते हैं.

इन्होंने कहा कि स्टील सेक्टर की मुख्य डिमांड ऑटो इंडस्ट्री और कंस्ट्रक्शन सेक्टर (रियल एस्टेट) से आती है.

अब कंस्ट्रक्शन को लेकर न तो सरकार की तरफ़ से कोई बड़ा प्रोजेक्ट लाया जा रहा है, न प्राइवेट सेक्टर से. ऐसे में स्टील का उत्पादन घटना स्वाभाविक बात है.

राहत हुसैन ने बीबीसी से कहा, “हम धीरे-धीरे औद्योगिक आपातकाल की तरफ़ बढ़ रहे हैं. सरकार को इस स्लोडाउन से उबरने की तरकीब खोजनी होगी. वरना, स्थितियां और प्रतिकूल हो सकती हैं.”

झारखंड सरकार की पहल

इस बीच झारखंड के मुख्य सचिव डी के तिवारी ने कहा है कि स्टील इंडस्ट्री से जुड़ी इंडक्शन फर्नेस की कंपनियों को बिजली के बिल में सब्सिडी दी जा रही है.

यह अगले चार महीने तक दी जाती रहेगी. इससे इन कंपनियों के खर्च में कमी आएगी और वे अपना उत्पादन फिर से शुरू कर सकेंगी.

सरकारी कंपनियों पर भी असर

स्टील उद्योग में स्लोडाउन का असर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी स्टील आथिरिटी आफ इंडिया लिमिटेड (सेल) पर भी पड़ा है. इसके शुद्ध मुनाफे में भारी गिरावट आई है.

सेल के चेयरमैन अनिल कुमार चौधरी ने पत्रकारों को बताया कि कंपनी की कुल बिक्री पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 15,473 करोड़ रुपए की तुलना में इस साल के 30 जून तक सिर्फ़ 14,645 करोड़ रुपए रह गई है.

उल्लेखनीय है कि झारखंड के बोकारो में सेल का स्टील प्लांट हैं. यहां के कुछ कर्मचारियों ने भी काम नहीं मिलने की शिकायत की है.