पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह राजस्थान से राज्यसभा सदस्य बन गए हैं। मनमोहन सिंह निर्विरोध चुने गए हैं। राजस्थान विधानसभा के चुनाव और राज्यसभा चुनाव के निर्वाचन अधिकारी प्रमिल कुमार माथुर ने सरकारी मुख्य सचेतक महेश जोशी को मनमोहन सिंह के निर्वाचन का प्रमाण-पत्र सौंपा। इस जीत के साथ मनमोहन सिंह की राज्यसभा की यात्रा फिर से शुरू हो गई है हालांकि इसमें थोड़े समय के लिए अल्प विराम जरूर आ गया था। इससे पहले मनमोहन सिंह लगभग तीन दशकों से असम से कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य बनते रहे हैं। इस बार असम से ही उनका कार्यकाल 14 जून को समाप्त हो चुका था लेकिन इस बार असम से राज्यसभा में भेजे जाने लायक विधायक कांग्रेस के पास नहीं थे इसलिए कांग्रेस उन्हें उस समय राज्यसभा में नहीं भेज पाई।
समय चक्र बदला और इस बीच तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव जीत कर कांग्रेस सरकार बना चुकी थी। इस बीच भाजपा के राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य मदन लाल सैनी का आकस्मिक निधन हो गया। उनके निधन के बाद राजस्थान में राज्यसभा की खाली सीट पर चुनाव करवाना जरूरी था। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने और बहुमत के आंकड़े की वजह से यहां से कांग्रेस उम्मीदवार का जीतना तय माना जा रहा था। लंबे विचार-विमर्श के बाद और कई नामों पर चली चर्चा के बाद कांग्रेस आलाकमान ने इस सीट से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उतारने का फैसला किया। मनमोहन सिंह ने जयपुर जाकर अपनी उम्मीदवारी का पर्चा भर दिया। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की जीत तय जान कर भाजपा ने मनमोहन सिंह के खिलाफ अपना प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा और मनमोहन सिंह निर्विरोध राज्यसभा के लिए निर्वाचित घोषित कर दिए गए।
इस जीत के साथ ही पार्टी की राज्यसभा में सदस्य संख्या में इजाफा होगा। लंबे अर्से बाद कांग्रेस को इस तरह की जीत की खुशखबरी मिली तो जश्न मनना ही था। इसलिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हों या उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट… तमाम छोड़े बड़े नेता मनमोहन सिंह की जीत पर बधाई देते नजर आए। सोशल मीडिया पर भी बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। राजस्थान से निर्विरोध निर्वाचन के बाद मनमोहन सिंह तीन अप्रैल, 2024 तक राज्यसभा सदस्य रहेंगे।
लेकिन कांग्रेस की हालत देखिए कि जीतने के बावजूद अब कांग्रेस के सामने एक नया संकट खड़ा हो गया है कि वो राज्यसभा में नेता विपक्ष किसे बनाए। मनमोहन सिंह पूर्व प्रधानमंत्री होने की वजह से राज्यसभा में अब तक कांग्रेस की कमान संभालते आए थे। उनका राज्यसभा कार्यकाल खत्म होने के कारण गुलाम नबी आजाद को यह पद दिया गया था। वर्तमान में गुलाम नबी आजाद राज्यसभा में कांग्रेस के नेता के तौर पर विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं लेकिन मनमोहन सिंह की वापसी के बाद उनका दावा स्वाभाविक रूप से इस पद के लिए मजबूत है। इसलिए यह कहा जा रहा है कि जीत के बावजूद कांग्रेस आलाकमान के लिए एक नया संकट खड़ा हो गया है।
कांग्रेस के लिए इस पद पर गुलाम नबी आजाद को बैठाना तो आसान था लेकिन हटाना उतना आसान नहीं है। वहीं दूसरी तरफ मनमोहन सिंह का कद इतना बड़ा है कि उन्हें भी नकारा नहीं जा सकता। शायद इसलिए तमाम नेताओं को दरकिनार करके मनमोहन सिंह को उस राज्य से राज्यसभा भेजा गया जहां जीतना तो तय ही था। जाहिर-सी बात है कि मनमोहन सिंह के अनुभव को देखते हुए सोनिया गांधी यह जरूर चाहेंगी कि वो राज्यसभा में कांग्रेस को लीड करें लेकिन जम्मू-कश्मीर पर केन्द्र सरकार के ताजा फैसले के बाद गुलाम नबी आजाद का महत्व भी कांग्रेस के लिए बढ़ गया है। गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर से आते हैं और अनुच्छेद 370 पर जिस तरह से उन्होंने राज्यसभा में सरकार को घेरा, श्रीनगर गए और लगातार सरकार पर राजनीतिक हमले कर रहे हैं, उससे एकाएक ही आजाद का राजनीतिक महत्व और कद दोनों ही बढ़ गया है। खासकर ऐसे माहौल में जब कांग्रेस ने एक ऐसा स्टैंड ले लिया है जिसके खिलाफ उसकी पार्टी के नेता ही एक के बाद एक बयानबाजी कर रहे हैं।
ऐसे में कांग्रेस यह कतई नहीं चाहेगी कि तमाम विरोध के बावजूद पार्टी की लाइन के साथ खड़े होने वाले गुलाम नबी आजाद का कद या महत्व किसी भी तरह से घटाया जाए, अगर उन्हें राज्यसभा में कांग्रेस नेता के पद से हटाकर फिर से मनमोहन सिंह को उस पर बैठाया जाता है तो निश्चित तौर पर इसका गलत मैसेज प्रदेश में जाएगा। इसलिए कह सकते हैं कि राज्यसभा में नेता विपक्ष का पद कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन गया है क्योंकि इसके एक तरफ कुंआ है तो दूसरी तरफ खाई।