आपातकाल के बाद जब इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस पार्टी 1977 में चुनावों में हार गई. मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की नई सरकार बनी. इस सरकार के ज्यादातर मंत्री और नेता इंदिरा गांधी को जेल में देखना चाहते थे. स्वास्थ्य मंत्री राजनारायण और इमरजेंसी में हथकड़ी लगाकर गिरफ्तार होने वाले उद्योग मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज से लेकर सूचना प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी, कानून मंत्री शांति भूषण और विदेश मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी तक इंदिरा को सलाखों के पीछे देखना चाहते थे. वो चाहते थे कि जिसकी वजह से उन्होंने जेल में महीनों गुजारे हैं, वो भी तो जेल जाकर देखे.
कई केसों में सबसे अहम जो इंदिरा गांधी के खिलाफ केस था, वो थी जीप स्कैम. रायबरेली के चुनाव में इंदिरा गांधी की मदद के लिए 100 जीपें खरीदी गई थीं, जिनकी कीमत उन दिनों करीबन चालीस लाख थी. राजनारायण ने आरोप लगाया कि वो जीपें कांग्रेस के पैसे से नहीं बल्कि इंडस्ट्रियलिस्ट्स और सरकारी पैसे से खरीदी गई थीं.
चौधरी चरण सिंह तो 1977 मार्च में सरकार बनते ही इंदिरा को जेल भेजना चाहते थे, लेकिन मोरारजी देसाई कानून के खिलाफ कुछ भी करने को राजी नहीं थे. ऐसे में इंदिरा के खिलाफ भ्रष्टाचार केसेज की जांच के लिए शाह आयोग बनाया गया. तीन अक्टूबर को 4.45 बजे सीबीआई की टीम इंदिरा के आवास 12, विलिंगडन क्रीसेंट पर पहुंची. वहां इंदिरा गांधी को गिरफ्तारी के लिए एक घंटे का समय दिया गया. 6.05 बजे इंदिरा बाहर आईं और बोलीं कि हथकडियां कहां है, लगाओ. सीबीआई अधिकारियों और पुलिस ने बताया कि हथकडियों के लिए मना किया गया है, लेकिन इंदिरा नहीं मानी और हथकड़ियां लगाने के लिए अड़ी रहीं. इस पर काफी हंगामा हुआ.
इंदिरा गांधी को रातभर फरीदाबाद के पास बडहल गेस्ट हाउस में रखा गया. अगले दिन जब उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया तो उसने सबूत मांगे. पुलिस के पास कोई सबूत थे नहीं. लिहाजा इंदिरा गांधी को तुरंत बरी करके रिहा कर दिया गया.
जनता पार्टी की सरकार ने हार नहीं मानी. अगले साल लोकसभा में इंदिरा गांधी के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया. उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने आपातकाल के दौरान विपक्षी नेताओं के हत्या की साजिश रची थी. दिसंबर 1978 में उन्हें हफ्ते भर के लिए तिहाड़ भेज दिया गया. इस गिरफ्तारी के खिलाफ देशभर में धरना और विरोध हुआ. आखिरकार इंदिरा को 26 दिसंबर को एक हफ्ते हिरासत में रखने के बाद तिहाड़ से रिहा कर दिया गया. इंदिरा गांधी ने अपनी इन दोनों गिरफ्तारियों को सियासी तौर पर बाद में खासा भुनाया.
इसी तरह 1978 में ही संजय गांधी को फिल्म किस्सा कुर्सी फिल्म का प्रिंट जलाने के मामले में गिरफ्तार करके जेल भेजा गया. ये मई 1978 का मामला है. संजय़ को जमानत भी नहीं मिली. अदालत ने उन्हें एक महीने तक न्यायिक हिरासत में रखने का आदेश दिया. संजय को तिहाड़ जेल में रखा गया. इस मामले में संजय गांधी के साथ तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री विद्या चरण को दोषी ठहराते हुए दोनों पर मुकदमा चलाया गया था. 11 महीने तक चले इस मुकद्दमे के तहत दोनों को कैद की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, बाद में इसे ख़त्म कर दिया गया.
तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और द्रविण मुनैत्र कषगम के नेता करुणानिधि और एआईएडीएम की प्रमुख जयललिता के बीच सियासी दुश्मनी इस कदर थी कि दोनों में कोई भी एक दूसरे के प्रति बेहतर भावना शायद ही रखता रहा हो लेकिन तब अति हो गई जबकि वर्ष 2001 में चुनाव जीतने के बाद जयललिता जब मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने जिस तरह करुणानिधि की गिरफ्तारी कराई, उसकी निंदा पूरे देश में हुई.
पहले करुणानिधि के खिलाफ चेन्नई के एक फ्लाईओवर के निर्माण में अनियमितता का आरोप लगाया गया. फिर 29 जून की रात पुलिस को गुपचुप उनके आवास पर उन्हें गिरफ्तार करने के लिए भेजा गया. करुणानिधि घर पर सो रहे थे. पुलिस रात डेढ़ बजे उनके घर पर घुसी. ऊपर उस कमरे में पहुंची, जिसमें वो सो रहे थे. उस कमरे का दरवाजा तोड़कर उन्हें गिरफ्तार किया गया. उनके साथ धक्का मुक्की की गई. बाद में देशभर में टीवी पर लोगों ने देखा कि पुलिस उन्हें धक्का देकर और पीटते हुए पुलिस वैन तक लेकर आई. गिरफ्तारी के वक्त करुणानिधि के रोते हुई तस्वीरें जब टीवी और अखबारों में आईं तो तहलका मच गया.