छत्तीसगढ़ के कोरबा शहर से लगभग 70 किलोमीटर दूर एक खूबसूरत गांव है चिर्रा। आसपास जंगल और दूर-दूर तक फैली हरियाली यहां से गुजरने वाले राहगीर के मन में रच-बस जाती है। भरी दुपहरी में गांव के इमली और बरगद पेड़ के नीचे गांव के बच्चों की टोली खेलते-कूदते, मस्ती करतेे, तो कुछ कोसम और जामुन से लदे पेड़ पर फल तोड़ते नजर आते है। सुबह गांव के तालाब में मनभर नहा-धोकर ग्रामीण इस गर्मी की अपनी दोपहर चैन से काट पाते हैं। दोपहर में भी यहां राहत और सुकून से भरा वातावरण रहता है, इसके पीछे गांव की अपनी कहानी है।
आज से कुछ साल पहले चिर्रा गांव में पानी की विकराल समस्या थी। सिंचाई का साधन तो दूर, पीने और नहाने के पानी के लिये तरसना पड़ता था। यहां के किसान मानसून पर ही निर्भर थे। जब बारिश हुई तो खेतों पर सिंचाई होती थी नहीं तो अकाल की समस्या से जूझना पड़ता था। गर्मी की वजह से जहां गांव के कई बोर व हैंडपंप पानी देना छोड़ देते थे, वहीं कुछ कुएं पूरी तरह से सूख जाते थे।
ऐसे विपरीत हालातों में यहां के ग्रामीणों के हाथों बनाया बांधीमुड़ा तालाब अब पानी से लबालब रहता है। इसके पानी से ग्रामीणों की न सिर्फ निस्तारी की बड़ी समस्या दूर होती है, यह पास में ही बने रहे नरवा, गरूवा, घुरवा एवं बाड़ी विकास योजना अंतर्गत गौठान में गायों के पीने के पानी की समस्या को भी दूर करता है। यही नहीं आसपास के खेतों में खरीफ के अलावा रबी की फसल भी बांधीमुड़ा तालाब के दम पर होती है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर इसी तरह पूरे प्रदेश में नालों (नरवा) और तालाबों के संवर्धन और सरंक्षण का अभियान चलाया जा रहा हैं। बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता है और छत्तीसगढ़ में तालाबों के संरक्षण की परम्परा सदियों पुरानी है। इस राह पर चलकर चर्रा जैसे अनेक गांव न केवल अपनी निस्तारी और पेयजल जैसे समस्याओं का सामना कर सकते हैं, बल्कि ग्रामीणों के साथ-साथ पशुओं के लिए भी सुकुन एवं राहत का वातावरण बना सकते हैं।
गांव के रमेश कुमार और कमलेश यादव पुराने दौर के समय को याद करते हुए बताते है कि गांव से दो किलोमीटर दूर देबारी नाला में पहाड़ों का पानी साल भर आता था। हालांकि गर्मी के मौसम में नाले में पानी का स्तर कम होने के साथ सूखने के कगार पर भी पहुंच जाता है। उस समय तक नाले के बहते पानी का संग्रहण नहीं होने से गांव वालों को गर्मी के समय पानी के लिये जूझना पड़ता था। ऐसे में गांव के किसान समय लाल, गिरीश राठिया, शिरोमणी मंझुवारश्याम लाल, धरम सिंह अशोक सहित अन्य कई ग्रामीणों ने जल संग्रहण को लेकर कदम आगे बढ़ाया। इस काम में गांव की महिलाओं का भी योगदान था। सबने मिलकर देबीरा नाला से नहरनुमा रास्ता तैयार किया। मिट्टी को काटकर गांव से कुछ दूर पर बड़े गड्ढे तालाब बनाये गये। समय के साथ धीरे-धीरे अब यह तालाब पानी से लबालब हो गया।
गांव के अजय चौहान ने बताया कि तालाब में पानी साल भर रहता है। गर्मी के मौसम में इस तालाब से 200 से अधिक ग्रामीण नहाना-धोना करते है। गांव के मवेशी भी इस तालाब में पानी पीने आते है। कमलेश ने बताया कि बांधीमुड़ा तालाब को इस तरह से तैयार किया गया है कि पानी लबालब होने पर एक किनारे से बाहर बह सके। वृद्धा रामायण बाई ने बताया कि तालाब बनाने की मुहिम में उसने भी अपना योगदान दिया था। यह तालाब अब गांव के लिए एक संसाधन बन चुका है। तालाब में पानी रहने से आसपास के जल का स्तर बना रहता है।