हम आपको जिस महिला की कहानी बताने जा रहे हैं, उसका नाम संतोषी दुर्गा है। इनके पिता छत्तीसगढ़ नरहरपुर ब्लॉक के स्वास्थ्य विभाग में स्वीपर का काम किया करते थे। दुर्गा बताती हैं कि वह बहुत नशा करते थे। घर की बड़ी बेटी दुर्गा अपने पिता को खूब समझाती थीं कि अगर वह इसी तरह नशे में डूबे रहेंगे तो उनकी 5 बहनों की परवरिश और शादी कैसे होगी।
दुर्गा इसी तरह अपने पिता को समझती रही लेकिन एक दिन वह अपनी छह बेटियों को इस दुनिया में संघर्ष करने के लिए छोड़ गए। दुर्गा जब भी अपने पिता को लेकर कोई बात करती हैं तो उनकी आँखें भर आती हैं। छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर कांकेर जिले के नरहरपुर ब्लॉक की संतोषी दुर्गा आज महिलाओं के लिए मिसाल बन गई हैं। बता दें कि अपने पिता के हजर जाने के बाद घर की बड़ी बेटी होने के नाते उन्होंने घर की जिम्मेदारी बखूबी उठाई।
दुर्गा पेशे से एक पोस्टमार्टमकर्मी हैं पिछले 15 वर्षों में उन्होंने लगभग 600 पोस्टमार्टम किए हैं। कहते हैं कि पोस्टमार्टम का काम बड़ा जोखिम भरा रहता है। कई लोगों का कहना है कि बिना कोई नशा किए पोस्टमार्टम करना बेहद मुश्किल है लेकिन दुर्गा बिना कोई नशा किए ही अपने काम को बखूबी कर रही हैं। उनका कहना था कि एक समय ऐसा था, जब वह पोस्टमार्टम के नाम से भी डरती थीं।
लाश को देखकर उनके हाथ-पैर कांपते थे लेकिन उन्हें घर की ज़िम्मेदारी का अहसास था, जिसने उन्हें यह काम करने के लिए हिम्मत दी। उन्होंने इस काम को कर पूरे समाज को नहीं बल्कि पूरे देश को यह दिखा दिया कि बिना कोई नशा किए भी पोस्टमार्टम किया जा सकता है। दुर्गा ने जब यह काम शुरू किया था तो उनका प्रमुख मकसद था कि वह अपने पिता की शराब छुड़वा सकें।
दुर्गा ने अपने पिता से शर्त लगाई थी कि अगर वह बिना नशा किए पोस्टमार्टम कर लेंगी तो वह शराब को छोड़ देंगे। उनका पोस्टमार्टम का सबसे पहला केस वर्ष 2014 में था। यह काम करके दुर्गा ने अपने पिता से शर्त जीत ली और उन्हें शराब छोड़ने के लिए प्रेरित करती रहीं। अभी जहाँ दुर्गा पर तीन बहनों की शादी की ज़िम्मेदारी है, वहीँ उन्हें अपने तीन बच्चों का भी भविष्य संवारना है। उनका कहना है कि यह काम उनके लिए सबसे आगे है, जिसे वह पूरी सेवा भाव से करती हैं।