रायपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में लोकसभा की दो ही सीटें हैं पर इसका व्यापक महत्व है। ये सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। बस्तर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के लिए कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा, हर बार दोनों ही प्रमुख पार्टियां अपने चुनाव अभियान का आगाज यहीं से करती रही हैं।
विधानसभा चुनाव में तो भाजपा और कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं ने डेरा ही डाल दिया था। हालांकि नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आए। विधानसभा की 12 में से 11 सीटें कांग्रेस जीत गई। अब प्रदेश में कांगे्रस की सरकार है इसलिए बस्तर की दोनों लोकसभा सीटें प्रतिष्ठा का सवाल बन गई हैं।
बस्तर संभाग कभी कांग्रेस का अविजित गढ़ माना जाता था। अब हाल यह है कि पिछले बीस साल से यहां की एक भी सीट कांग्रेस नहीं जीत पाई है। छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के बाद हुए तीनों लोकसभा चुनाव में भाजपा ही यहां से जीती है। इससे पहले 1999 के चुनाव में भी भाजपा का ही परचम लहराया। 1996 के चुनाव में बस्तर की सीट पर कांग्रेस नेता महेंंद्र कर्मा निर्दलीय के रूप में जीते थे लेकिन कांग्रेस तब भी पीछे ही रही।
बस्तर से लखमा और कांकेर से मनोज के नाम की चर्चा
कांकेर सीट से लगातार जीतने वाले अरविंद नेताम इंदिरा गांधी की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे। उनके दल बदलने के बाद यहां कांग्रेस कमजोर हुई। अरविंद नेताम भी राजनीतिक रूप से हाशिए पर पहुंच गए। अब नेताम फिर से कांग्रेस में हैं और यह संभावना भी उभर रही है कि शायद उन्हें फिर से कांकेर से उतारा जाए।
वैसे पार्टी में अंदरखाने यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि राज्य सरकार के मंत्री कवासी लखमा बस्तर और कांकेर से विधायक मनोज मंडावी को मैदान में उतारा जाएगा। फिलहाल यह तो तय नहीं है कि कौन चुनाव लड़ेगा लेकिन इतना तय है कि इस बार कांग्रेस बस्तर की सीटों पर आरपार की लड़ाई के मूड में है।
बलीराम के बाद बेटे ने संभाली बस्तर की विरासत
बस्तर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के बलीराम कश्यप लगातार जीत दर्ज करते रहे। उनकी मृत्यु के बाद 2011 में हुए उपचुनाव में उनके पुत्र दिनेश कश्यप सांसद चुने गए। 2014 के चुनाव में दिनेश कश्यप एक बार फिर कांग्रेस के कवासी लखमा को हराकर संसद पहुंचे। कांकेर में भी ऐसी ही स्थिति रही है। कांकेर से सोहन पोटाई लगातार सांसद रहे। पिछले चुनाव में सोहन पोटाई की जगह विक्रम उसेंडी को भाजपा ने टिकट दिया। वे भी जीत गए।
कांग्रेस के दिग्गज हारते रहे
बलीराम कश्यप और उनके बेटे दिनेश कश्यप के खिलाफ बस्तर सीट से महेंद्र कर्मा, उनके बेटे दीपक कर्मा, वर्तमान सरकार में मंत्री कवासी लखमा, मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री रहे पूर्व सांसद मानकूराम सोढ़ी के बेटे शंकर सोढ़ी जैसे कांग्रेसी दिग्गज हारते रहे हैं। कांकेर से पिछला चुनाव प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष फूलोदेवी नेताम हार चुकी हैं।
विधानसभा में आगे रहे तब भी हारे
कांग्रेस बस्तर की 12 विधानसभा सीटों में जब आगे रही तब भी लोकसभा हारती रही। 1999 में कांग्रेस ने बस्तर की 11 विधानसभा सीटें जीती थीं, 2003 में 03 सीट, 2008 में एक सीट, 2013 में आठ सीट जीती फिर भी लोकसभा चुनाव हारी। इस बार कांग्रेस ने 11 सीटें जीती हैं। उम्मीद इसलिए ज्यादा है क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है।
अब नहीं तो कब
कांग्रेस इस बार बस्तर की सीटों को हर हाल में जीतने की तैयारी कर रही है। आदिवासी नेता कवासी लखमा को सरकार ने मंत्री बनाकर बस्तर के छह जिलों का प्रभार सौंपा है। निर्दलीय लोकसभा जीत चुके दिग्गज कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा के बेटे को एक दिन पहले ही सरकार ने अनुकंपा नियुक्ति देकर डिप्टी कलेक्टर बनाया है, इसे भी राजनीतिक कदम ही माना जा रहा है।
लखमा लगातार बस्तर का दौरा कर रहे हैं। जगह-जगह संकल्प शिविर का आयोजन किया जा रहा है। बीजापुर के विधायक विक्रम मंडावी ने कहा-पार्टी की क्या रणनीति से यह तो नहीं बताया गया है लेकिन हमसे कहा गया है कि पूरा ध्यान अपने क्षेत्र में दो। पार्टी नेता कह रहे हैं कि अब नहीं जीते तो कब जीतोगे।