ब्रिमाटो तकनीक से किसान कम जगह में दो फसलें उगा सकते हैं. इससे बैंगन और टमाटर की पैदावार एक साथ मिलती हैं. ये तकनीक शहरी बागवानी और छोटे किसानों के लिए फायदेमंद है.
- ब्रिमाटो तकनीक से बैंगन-टमाटर एक साथ उगाए गए.
- ग्राफ्टिंग विधि से कम जगह में दो फसलें उगाना संभव.
- शहरी बागवानी और छोटे किसानों के लिए फायदेमंद तकनीक.
गाजीपुर – खेती में अभिनव प्रयोगों में दिलचस्पी रखने वाले किसानों के लिए अच्छी खबर है. गाजीपुर में एक रिसर्चर ने कमाल का काम कर दिखाया है. गाजीपुर के रहने वाले और वाराणसी के Indian Institute of Vegetable Research (IIVR) सेंटर में शोध कर रहे अनीश कुमार सिंह ने खेती की दुनिया में नया कमाल कर दिखाया है. उन्होंने डॉ. अनंत कुमार बहादुर की ओर से विकसित ब्रिमाटो नामक तकनीक की मदद से एक ही पौधे पर बैंगन और टमाटर दोनों उगा दिए हैं. ये नई तकनीक छोटे किसानों और शहरी बागवानी के लिए वरदान साबित हो सकती है.
कैसे तैयार होता है ब्रिमाटो
लोकल 18 से बात करते हुए वो कहते हैं कि ब्रिमाटो बनाने के लिए ग्राफ्टिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. इसमें दो अलग-अलग पौधों को जोड़कर एक नया पौधा तैयार किया जाता है. अनीश ने हमें इस प्रक्रिया को आसान भाषा में समझाया. वे कहते हैं कि सबसे पहले सही पौधों का चुनाव किया जाता है. उन्होंने बैंगन का पौधा चुना क्योंकि इसकी जड़ें मजबूत होती हैं और यह ज्यादा दिनों तक जिंदा रहता है. साइयन यानी ऊपरी हिस्सा टमाटर के पौधा का लिया क्योंकि ये जल्दी और ज्यादा फल देता है. इसके बाद बैंगन के पौधे का ऊपरी हिस्सा और टमाटर का निचला हिस्सा काटा दिया और दोनों हिस्सों को साइड ग्राफ्टिंग या टंग ग्राफ्टिंग तकनीक से जोड़ा गया ताकि पोषक तत्व और पानी आसानी से एक से दूसरे में जा सकें. एक क्लिप या टेप की मदद से दोनों को मजबूती से पकड़कर रखा जाता है ताकि वे आपस में जुड़ जाएं.
कुछ हफ्तों में फल
ग्राफ्टिंग के बाद इस पौधे को छायादार जगह पर रखा जाता है और हल्का पानी दिया जाता है. करीब 7 से 10 दिनों में पौधा जुड़ जाता है और धीरे-धीरे बढ़ने लगता है. कुछ हफ्तों में ही इसमें नीचे बैंगन और ऊपर टमाटर उगने लगते हैं. ब्रिमाटो तकनीक किसानों के लिए कम जगह में ज्यादा उत्पादन का मारक तरीका है. इससे लागत कम आती है, पानी की बचत होती है और फसल भी जल्दी तैयार होती है. अगर डॉ. अनंत कुमार बहादुर की इस तकनीक को बड़े स्तर पर अपनाया जाए, तो यह खेती में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है.