नख से शिख तक भभूत। शिव और शक्ति का प्रतीक। क्षणभंगुर जीवन की सत्यता का आभास कराती है। इसे मस्तक से कंठ, कंठ से नाभि और नाभि से अंगुष्ठ तक लगाया जाता है। धुनी लगाने का मतलब होता है हमारी दिशा ही अंबर है और हम दिगंबर हैं। पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण जिसका दिग अर्थात वस्त्र ही अंबर हो ऐसा दिगंबर। भभूत को लोक लज्जा के निवारण के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। ये बताती है कि सब कुछ एक दिन राख हो जाएगा।
प्रयागराज – नागा अपने शरीर पर केवल उन चीजों का इस्तेमाल करते हैं जो उनके इष्टदेव महादेव से जुड़ी होती हैं। इसी का एक हिस्सा है उनके शरीर पर लगने वाली भभूत। वैसे तो चिता की राख को मुक्ति की राख माना जाता है लेकिन जब ये उपलब्ध नहीं होती है तो इसे नागाओं द्वारा एक विशेष विधि से तैयार किया जाता है।