भारत में महिला साधु कभी सिला हुआ वस्त्र नहीं पहनतीं. हमेशा एक भगवा सूती साड़ी को बदन लपेटती हैं. इस वस्त्र को पूरे शरीर पर बांधने का उनका तरीका भी खास होता है. क्या है इसकी खास वजह. किन मामलों में पुरुष नागा साधुओं से होती हैं ये अलग

कुंभ और महाकुंभ के दौरान नागा साधुओं का जब रैला निकलता है तो उन्हें देखने वालों की भीड़ लग जाती है. वो जहां चलते हैं नग्न रहते हैं. इसके उलट महिला नागा साधु सार्वजनिक तौर पर कभी नग्न नहीं रहतीं. बल्कि वो एक बगैर सिला कपड़ा पहनती हैं और इसमें भी गांठ का खास महत्व होता है.

ये सवाल लाजिमी है कि अगर पुरुष नागा साधु सार्वजनिक तौर पर नग्न रह सकते हैं तो महिला नागा साधुओं के साथ ऐसा क्यों नहीं है. इसके पीछे एक खास वजह है. अखाड़ों में जो नियम बनाए गए हैं, वो यही कहते हैं कि शुचिता के चलते अखाड़ों ने महिला नागा साधुओं के लिए ये नियम बना रखा है कि उन्हें एक वस्त्र पहनना ही होगा. इसी के साथ वो सार्वजनिक तौर पर आएंगी.

हालांकि कहा जाता है अखाड़े के इस नियम से कुछ महिला नागा साधु मुक्त होती हैं लेकिन वो बहुत नाममात्र की हैं या एक्का-दुक्का. वैसे भी महिला नागा साधु ताजिंदगी कभी सिले कपड़े नहीं पहनतीं. उन्हें एक वस्त्र में ही कुंभ आदि में भी स्नान करना होता है.

महिला नागा साधुओं के वस्त्र में गांठ लगाने का भी खास महत्व है. क्योंकि एक वस्त्र को वो इस तरह से पहनती हैं कि ये केवल एक गांठ के सहारे ही उनके बदन पर ना केवल टिका होता है बल्कि इसे ढंका भी रहता है.

महिलाओं का नागा साधु बनना कई कठिन चुनौतियों से गुजरने के बाद होता है. वर्तमान में कई अखाड़ों मे महिलाओं को भी नागा साधु की दीक्षा दी जाती है. इनमें विदेशी महिलाओं की संख्या भी काफी है. जूना संन्यासिन अखाड़ा में तीन चौथाई महिलाएं नेपाल से आई हुई हैं. नेपाल में ऊंची जाति की विधवाओं के दोबारा शादी करने को समाज स्वीकार नहीं करता. ऐसे में ये विधवाएं अपने घर लौटने की बजाए साधु बन जाती हैं

पुरुषों की तरह ही महिला नागा साधुओं का जीवन भी पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित होता है. और उनके दिन की शुरुआत और अंत दोनों ही पूजा-पाठ के साथ ही होता है. जब एक महिला नागा साधु बन जाती है, तो सारे ही साधु और साध्वियां उसे माता कहने लगती हैं. महिला नागा साधुओं को अपने मस्तक पर एक तिलक लगाना होता है.

नागा साधु बनने से पहले महिला को 6 से 12 साल की अवधि तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. जब महिला ऐसा कर पाने में सफल हो जाती है. तब उसे उसके गुरु नागा साधु बनने की अनुमति देते हैं. नागा साधु बनाने से पहले महिला की पिछली जिंदगी के बारे में जानकारी हासिल की जाती है ताकि यह पता चल सके कि वह पूरी तरह से ईश्वर के प्रति समर्पित है या नहीं और कहीं उसके नागा साधु बनकर कठिन साधना को निभा पाएगी या नहीं.

एक नागा साधु बनने के दौरान, एक महिला को यह साबित करना होता है कि वह पूरी तरह से ईश्वर के प्रति समर्पित हो चुकी है. और अब उसका सांसारिक खुशियों से कोई भी लगाव नहीं रह गया है.नागा साधु बनने से पहले, महिला साधु को अपना पिंडदान करना होता है और पिछली जिंदगी को पीछे छोड़ना होता है.

महिला नागा साधु बनने के दौरान महिलाओं को पहले अपने बाल छिलवाने होते हैं, इसके बाद वे नदी में पवित्र स्नान करती हैं. यह उनके साधारण महिला से नागा साधु बनने की प्रक्रिया होती है.

महिला नागा साधुओं को भी पुरुष नागा साधुओं के जितनी ही इज्जत मिलती है. वे भी नागा साधुओं के साथ ही कुंभ के पवित्र स्नान में पहुंचती हैं. हालांकि वे उनके नहाने के बाद नहाने के लिए नदी में उतरती हैं.

महिला नागा आमतौर पर अखाड़ों में ही रहती हैं. कुंभ के दौरान ही नजर आती हैं. उनकी दिनचर्या भी कठिन होती है. सुबह जल्दी उठना और फिर सुबह-शाम उपासना. भोजन उनका साधारण और कम ही होता है.न्यूज़18