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प्रेमानंद महाराज से मह‍िला ने पूछा सवाल, सुनते ही झल्‍लाए, ‘ये कैसी उल्‍टी बुद्ध‍ि है…’ और फिर जो हुआ

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 प्रेमानंद महाराज इस दौर के सबसे प्रस‍िद्ध संतों में से एक हैं, ज‍िनके प्रवचन लोगों को भक्‍ति मार्ग पर ले जाते हैं. हाल ही में एक मह‍िला प्रेमानंद महाराज के सामनें ‘सम्‍मान’ से जुड़ा एक सवाल लेकर पहुंचीं.

प्रेमानंद महाराज इस दौर के ऐसे संत हैं, ज‍िनके दरबार में लोग अपने जीवन के कठ‍िन से कठ‍िन सवालों के जवाब लेने पहुंचते हैं. वृंदावन के प्रसिद्ध ये संत लोगों को भक्‍ति का ऐसा सच्‍चा मार्ग द‍िखाते हैं कि उन्‍हें सुनने के बाद कई लोगों की डोर सीधे राधा रानी से बंध गई है. लेकिन हाल ही में जब एक मह‍िला प्रेमानंद महाराज के यहां अपनी दुव‍िधा का हल लेने पहुंची, तो प्रेमानंद महाराज ने उसका सवाल सुनते ही बीच में बोला, ‘तुम व‍िष पीना चाहती हो…?’ इस मह‍िला ने प्रेमानंद महाराज से ‘सम्‍मान’ से जुड़ा सवाल पूछा था.

जब मह‍िला ने पूछा, ‘सम्‍मान कैसे म‍िले?’
इस महि‍ला का प्रश्‍न था, ‘महाराज जी, सम्‍मान कैसे म‍िले? अच्‍छा कर्म करने के बावजूद भी अपमान…’ सवाल सुनते-सुनते ही प्रेमानंद महाराज बीच में बोल पड़े, ‘सम्‍मान? सम्‍मान चाहती हो? व‍िष पीना चाहती हो? ये कैसी उल्‍टी बुद्ध‍ि है. सम्‍मान चाहती हो. ये तो नर्क ले जाने वाली बात है. सम्‍मान चाहने वाला कभी संतुष्‍ट नहीं हो सकता. सम्‍मान चाहने वाला कभी परमार्थ का पथ‍िक नहीं हो सकता. जो परमार्थ का पथ‍िक नहीं, वह अशांत है, जो अशांत है वो कभी सुखी नहीं हो सकता. इसको छोड़ो, अपमान को अमृत के समान समझो. सम्‍मान को व‍िष के समान समझो.’

‘यहां सम्‍मान की धज्‍ज‍ियां उड़ाई जाती हैं’
प्रेमानंद महाराज आगे कहते हैं, ‘तुम सम्‍मान की खोज कर रहे हो? भगवान की खोज करो, तुम्‍हारा सम्‍मान ही सम्‍मान हो जाएगा. सम्‍मान की खोज करोगे तो फिर ये तो नर्क पहुंचा देगा. रोग-द्वेष बढ़ जाएगा, अंदर से असंतुष्‍ट रहोगे. ये तो बहुत गलत बात आपके द‍िमाग में बैठी हुई है कि सम्‍मान चाहिए. आपने गलत जगह सवाल पूछ ल‍िया. यहां सम्‍मान की धज्‍ज‍ियां उड़ाई जाती हैं और अपमान का आदर क‍िया जाता है. ये अध्‍यात्‍म का स्‍थान है. अध्‍यात्‍म में सम्‍मान का आदर नहीं. मानरह‍ित हो जाना ही जीवन का परम लाभ है.’