नए साल का आगाज होने वाला है. भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में नए साल के जश्न की तैयारी की जा रही है. ये नया साल ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से मनाया जाता है. कुछ दशकों पहले तक भारत में भी इसका उत्साह ऐसा नहीं था जैसा अब है. ये कहा जा सकता है कि नए साल का जश्न साल 2000 से पहले तक भारत के बड़े शहरों और पश्चिमी देशों तक ही सीमित था.
भारत में संस्कृति और धर्म को बेहद अहमियत दी जाती है. भारत के सबसे बड़े धर्म हिंदू धर्म का नया साल नव संवत्सर कैलेंडर के हिसाब से और दूसरे बड़े धर्म इस्लाम का नया साल हिजरी कैलेंडर से मनाया जाता है.
भारत में ग्रेगोरियन कैलेंडर से नए साल मनाने वाले लोगों पर, धार्मिक कट्टरता की वकालत करने वालों का सवाल उठाना कोई चौकाने वाला नहीं है. हाल ही में बरेली के दारूल इफ्ता के हेड मुफ्ती और मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने फतवा जारी कर नए साल का जश्न मनाना, मुबारकबाद देना और पार्टी करना इस्लाम में नाजायज बताया. ऐसा ही बयान रविवार को सहारनपुर में जमीयत दावतुल मुसलमीन के संरक्षक मौलाना कारी इस्हाक गोरा ने भी दिया.
नए साल की मुबारकबाद देना कैसा?
नया साल मनाने और मुबारकबाद देने से रोकने के बयानों पर उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के चेयरमैन मुफ्ती शमून ने TV9 को बताया कि इस्लाम सबकी दिल-जोई की बात करता है और सबको साथ लेकर चलने की बात करता है, इस लिहाज से किसी की खुशी और दुख में शामिल होने की इस्लाम इजाजत ही नहीं, बल्कि हिदायत भी देता है.
मुफ्ती शमून ने कहा, “इन मौलानाओं के बयान कुआ और समुद्र की तरह हैं, कि हम कुआ तुम समुद्र. इस्लाम पूरे आलम को साथ लेकर चलने की बात करता है. ऐसे फतवों से तो और दूरी आएगी, ऐसी बात करने वालों ने इस्लाम को पूरी तरह समझा ही नहीं. इस्लाम पूरे आलम को साथ लेकर चलने वाला धर्म है.” उन्होंने आगे कहा कि मेरी नजर में मुबारकबाद देना और खुशी मनाना गलत नहीं है.
न्यू ईयर सेलिब्रेशन और गैर इस्लामी जश्न
अक्सर नए साल की पार्टियों में म्यूजिक, डांस और शराब का चलन होता है. इस सवाल पर मुफ्ती शमून ने कहा कि ये सब तो इस्लामी बेसिक्स के खिलाफ है, इसकी इजाजत किसी हाल में नहीं दी जा सकती. मुबारकबाद देना और खुशी मनाने का ये मतलब नहीं है कि गैर इस्लामी चीजें की जाएं.
मुस्लिम देशों में नए साल का जश्न
इस्लाम धर्म के मुताबिक नया साल हिजरी या मुस्लिम चंद्र कैलेंडर के पहले महीने मोहर्रम को माना जाता है. मुसलमान इस महीने का जश्न नहीं बल्कि शोक मनाते हैं, क्योंकि इसी महीने में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को कर्बला की जंग में शहीद किया गया था.
ज्यादातर मुस्लिम देशों में ग्रेगोरियन कैलेंडर के नए साल पर कोई खास रौनक देखने नहीं मिलती है. हालांकि, सेंट्रल एशिया के मुस्लिम देश, किर्गिस्तान, अज़रबैजान, कजाकिस्तान आदि में नया साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. क्योंकि ये देश USSR से 1991 के बाद ही अलग होकर मुस्लिम देश के तौर पर अस्तित्व में आए हैं और यहां की परंपराओं में पश्चिमी असर खूब देखने मिलता है.
मुबारकबाद देते हुए रखें इस बात का ध्यान
वहीं दारुल इफ्ता कनाडा से जुड़े मुफ्ती फैसल बिन अब्दुल हमीद अल-महमुदी का पक्ष है कि अगर कोई गैर-मुसलमान नए साल की मुबारकबाद दे या हम ऐसे किसी कार्यक्रम में हो, तो हमें किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने से बचना चाहिए.
उन्होंने कहा, “जब इस तरह की शुभकामनाएं दी जा रही हों, तो यह ध्यान रखना चाहिए कि वह इस नए साल के लिए किसी भी तरह की श्रद्धा या सम्मान का उदाहरण न दे, नहीं तो वह फुकाहा में बताई गई सजा के अकाउंटेबल होगा. हम मुसलमान हैं, और हमें अपने जीवन के हर संभव क्षेत्र में अपनी पहचान बनाए रखनी चाहिए.”
अगर आसान भाषा में समझा जाए तो नए साल की मुबारकबाद देना हराम नहीं है, बस इस दौरान ऐसे किसी भी काम, एक्शन से बचना जरूरी है, जो इस्लाम की मूल भावनाओं से टकराता हो.