Home छत्तीसगढ़ इस विधि से करें पूर्णिमा का श्राद्ध, पितृ होंगे तृप्त

इस विधि से करें पूर्णिमा का श्राद्ध, पितृ होंगे तृप्त

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शास्त्रों में ऐसा वर्णित है की जो व्यक्ति विधिपूर्वक शांत चित्त होकर श्रद्धा के साथ श्राद्ध कर्म करते हैं, वह सर्व पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होते हैं। उनका संसार में चक्र छूट जाता है। “श्राद्धकल्पता”

प,अरविन्द मिश्रा रायपुर – शास्त्रों में ऐसा वर्णित है की जो व्यक्ति विधिपूर्वक शांत चित्त होकर श्रद्धा के साथ श्राद्ध कर्म करते हैं, वह सर्व पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होते हैं। उनका संसार में चक्र छूट जाता है। “श्राद्धकल्पता” अनुसार पितरों के उद्देश्य से श्रद्धा एवं आस्तिकतापूर्वक पदार्थ-त्याग का दूसरा नाम ही श्राद्ध है। ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि ‘देशे काले च पात्रे च श्राद्धया विधिना चयेत। पितृनुद्दश्य विप्रेभ्यो दत्रं श्राद्धमुद्राहृतम॥’

क्यों करें श्राद्ध

सनातन धर्म में मृत पूर्वजों को पितृ कहा गया है। शास्त्रानुसार पितृ अत्यंत दयालु तथा कृपालु होते हैं, वह अपने पुत्र-पौत्रों से पिण्डदान तथा तर्पण की आकांक्षा रखते हैं। श्राद्ध तर्पण आदि द्वारा पितृ को बहुत प्रसन्नता एवं संतुष्टि मिलती है। पितृगण प्रसन्न होकर दीर्घ आयु, संतान सुख, धन-धान्य, विद्या, राजसुख, यश-कीर्ति, पुष्टि, शक्ति, स्वर्ग एवं मोक्ष तक प्रदान करते हैं। भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म में पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए अपने माता-पिता व परिवार के मृतकों के निमित श्राद्ध करने की अनिवार्यता प्रतिपादित की गई है। श्राद्ध कर्म को पितृकर्म भी कहा गया है व पितृकर्म से तात्पर्य पितृपूजा भी है।

श्राद्धपक्ष का ज्योतिष महत्व

हर वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से आश्विन माह की अमावस्या तिथि तक 15 दिन श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। आज पूर्णिमा का श्राद्ध है। अतः पूर्णिमा का श्राद्ध ठीक मध्यान के समय करना उचित है।

कैसे करें पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म

आज पूनम होने के लिहाज से दूध में पकाए हुए चावल में शक्कर एवं सुगंधित द्रव्य जैसे इलायची, केसर और शहद मिलाकर खीर तैयार कर लें। गाय के गोबर के कंडे को जलाकर पूर्ण प्रज्वलित कर लें। उक्त प्रज्वलित कंडे को शुद्ध स्थान में किसी बर्तन में रखकर, खीर से तीन आहुति दें। भोजन में से सर्वप्रथम गाय, काले कुत्ते और कौए के लिए ग्रास अलग से निकालकर उन्हें खिला दें। इसके पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराएं फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें। पश्चात ब्राह्मणों को यथायोग्य दक्षिणा दें। गाय, काला कुत्ता, कौआ, यह सब करते हुआ याद रखे आप का मुख दक्षिण दिशा की तरफ होना चाहिए साथ ही जनेऊ (यज्ञोपवित ) सव्य (बाई तरह यानि दाहिने कंधे से लेकर बाई तरफ होना चाहिए।