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उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर: क्यों खुलता है सिर्फ साल में एक दिन हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा

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राजेंद्र चंदाकर रायपुर – हिंदू धर्म में नाग की पूजा करने की परंपरा सदियों से रही है। इस धर्म में आस्था रखने वाले लोग सांपों को भगवान का आभूषण मानते हैं। हमारे देश में नागों के कई मशहूर मंदिर भी हैं। इन्हीं मंदिरों में से एक उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर है। उज्जैन के महाकाल मंदिर के तीसरी मंजिल पर ही नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसे सिर्फ नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खोला जाता है।

उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर क्यों खुलता है सिर्फ साल में एक दिन हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का, जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर ही स्थित है।

मान्यताओं के अनुसार, नागराज तक्षक स्वयं इस मंदिर में मौजूद हैं। इस वजह से केवल नागपंचमी के दिन मंदिर को खोलकर नाग देवता की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके साथ ही कई मायनों में नागचंद्रेश्वर मंदिर हिंदू धर्म के लोगों के लिए खास है।इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं।know mysterious about nagchandreshwar mandir ujjain

नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।

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मान्यताओं के अनुसार, नागराज तक्षक स्वयं इस मंदिर में मौजूद हैं। इस वजह से केवल नागपंचमी के दिन मंदिर को खोलकर नाग देवता की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके साथ ही कई मायनों में नागचंद्रेश्वर मंदिर हिंदू धर्म के लोगों के लिए खास है।

पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।know mysterious about nagchandreshwar mandir ujjain

नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की प्रतिमा मौजूद है, जिसको लेकर दावा किया जाता है कि ऐसी प्रतिमा दुनिया में और कहीं नहीं है। इस प्रतिमा को नेपाल से यहां लाया गया था।

नागचंद्रेश्वर मंदिर में भगवान विष्णु की जगह शंकर भगवान सांप के शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में जो प्राचीन मूर्ति स्थापित है उस पर शिव जी, गणेश जी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सर्पराज तक्षक ने घोर तपस्या की थी। सर्पराज की तपस्या से भगवान शंकर खुश हुए और फिर उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को वरदान के रूप में अमरत्व दिया। उसके बाद से ही तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो इस वजह से सिर्फ नागपंचमी के दिन ही उनके मंदिर को खोला जाता है।
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इस प्राचीन मंदिर का निर्माण राजा भोज ने 1050 ईस्वी के आसपास कराया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने साल 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उसी समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया गया था। इस मंदिर में आने वाले भक्तों की यह लालसा होती है कि नागराज पर विराजे भगवान शंकर का एक बार दर्शन हो जाए। नागपंचमी के दिन यहां लाखों भक्त आते हैं।