ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का शंकराचार्य बनने पर विरोध थमा नहीं है। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य की गद्दी गुरु के बाद शिष्य संभालते हैं। यही मठों की परंपरा है। गुरु के कृपापात्र शिष्य एक से अधिक होने पर उनके बीच शास्त्रार्थ हो सकता है। वह भी मठ का अपना विधान है। इसमें अखाड़ों या परिषद का कोई दखल नहीं है।
हरिद्वार – ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने उनके शंकराचार्य बनने पर विरोध करने के पीछे एक लॉबी विशेष का हाथ बताया। कहा कि कुछ स्वार्थी संत लॉबी के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं जबकि पूरा संत समाज उनके साथ है।
शंकराचार्य बनने के बाद पहली बार हरिद्वार कनखल स्थित शंकराचार्य मठ पहुंचे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने मंगलवार को अमर उजाला से खास बातचीत की। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि एक लॉबी शंकराचार्य की गद्दी पर कब्जा करना चाहती है। संत समाज का उनको समर्थन है लेकिन कुछ स्वार्थी संत लॉबी के इशारे पर भ्रम फैला रहे हैं।
शंकराचार्य परिषद अध्यक्ष आनंद स्वरूप का जिक्र करते हुए कहा कि वह कौन हैं शंकराचार्य के लिए संतों का शास्त्रार्थ करवाने वाले? शंकराचार्य की गद्दी गुरु के बाद शिष्य संभालते हैं। यही मठों की परंपरा है। गुरु के कृपापात्र शिष्य एक से अधिक होने पर उनके बीच शास्त्रार्थ हो सकता है। वह भी मठ का अपना विधान है। इसमें अखाड़ों या परिषद का कोई दखल नहीं है।
17 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में पट्टाभिषेक मामले की होने वाली सुनवाई के सवाल पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि कोर्ट दलील नहीं प्रमाणों के आधार पर फैसला सुनाता है। कोर्ट में उनके अधिवक्ता की ओर से शंकराचार्य परंपरा से जुड़े प्रमाण प्रस्तुत कर दिए हैं।
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