नई दिल्ली – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में इस बार उन पर गठबंधन के दो सहयोगियों जेडीयू और टीडीपी की और से एक प्रेशर जबरदस्त रहने वाला है. जेडीयू बिहार के लिए और टीडीपी आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा हासिल करने के लिए दबाब डाल सकती हैं. लेकिन मौजूदा हालातों में केवल एक कारण के चलते बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा मिलना दूर की कौड़ी साबित हो सकता है.
आज ‘विशेष दर्जा’ सांवैधानिक है भी या नहीं?
मौजूदा प्रावधानों के हिसाब से राज्यों के लिए स्पेशल स्टेटस का दर्जा मौजूद ही नहीं है. अगस्त 2014 में 13वें योजना आयोग को खत्म कर दिया गया. इसी के साथ 14वें वित्त आयोग ने ‘विशेष और सामान्य श्रेणी’ के राज्यों के बीच कोई फर्क नहीं किया है. तब ही सरकार ने 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया. इसी के सात 1 अप्रैल 2015 से केंद्र से राज्यों को कर हस्तांतरण भी बढ़ा दिया गया. यह जो पहले 32 प्रतिशत था, इसे बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दिया. एक और प्रावधान भी जोड़ा गया, जिसके अनुसार यदि कोई राज्य संसाधनों में कमी की सामना कर रहा है तो उनके लिए ‘राजस्व घाटा अनुदान’ दिया जाएगा. बता दें पुराने प्रावधान के तहत जिन राज्यों को स्पेशल स्टेट का दर्जा मिल चुका है, वे हैं- असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर. इन्हें 2015 से पहले विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया गया था.
नए प्रावधान से कितना हुआ फायदा!
नए प्रावधान के तहत, 2015-16 में राज्यों को कुल कर हस्तांतरण 5.26 लाख करोड़ रुपये हो गया था. यह 2014-15 में 3.48 लाख करोड़ रुपये था. यानी नए प्रावधान के बाद इसमें 1.78 लाख करोड़ रुपये का इजाफा हुआ. राज्यों का हिस्सा एक फार्मूले से तय किया जाता है और हर राज्य अपने खुद के कर राजस्व को जुटाने का प्रयास करता है. यह फॉर्मूला भौगोलिक आधार, वन क्षेत्र और राज्य की प्रति व्यक्ति आय के आधार पर यह होता है.
मार्च 2015 तक लागू प्रावधान के मुताबिक, विशेष श्रेणी के राज्यों को सभी केंद्र की स्पॉन्सर्ड योजनाओं के लिए केंद्र की ओर से 90 प्रतिशत वित्तीय मदद मिलती और इनमें राज्यों का योगदान केवल 10 प्रतिशत तक होता था.
क्या कर सकती है मोदी सरकार…