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‘कांग्रेस गठबंधन 300 पार तो BJP सिमट जाएगी 200 के भीतर’.. पार्टी ने जारी किया अपना फाइनल सर्वे.. आप भी देख ले..

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 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उभार के बाद बीजेपी कितनी ही शक्तिशाली क्यों न हो गई हो, उसे भी 400 पार के नारे को साकार करने के लिए 27 सहयोगियों की जरूरत पड़ी है. वहीं कांग्रेस भी टक्कर देने के लिए 20 साझेदारों की सेना सजा कर खड़ी है. आखिर 543 लोकसभा सीटों के संग्राम में कांग्रेस और बीजेपी को लक्ष्य साधने के लिए गठबंधन के साथ किसे, कहां और कितनी सीटों की कुर्बानी देनी पड़ी?

नई दिल्ली – इस साल की शुरुआत में कई मीडिया रिपोर्टों में कांग्रेस को लेकर ये आकलन किया गया था कि इंडिया गठबंधन के कारण पार्टी 2024 लोकसभा चुनाव में महज 255 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी. परंतु कई राज्यों में बात बनने और कुछ एक में बिगड़ने के बाद कांग्रेस पार्टी ने जो सीट समझौते को अंतिम रूप दिया, उसमें कांग्रेस के हिस्से कम से कम 325 सीटें आती हुई नजर आ रही हैं.

चूंकि बीजेपी अपने चुनाव चिह्न पर कम से कम 446 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है, ऐसे में कांग्रेस इस मोर्चे पर 120 पायदान पीछे दिखती है. इसका एक मतलब ये भी हुआ कि भाजपा के सहयोगी तकरीबन 97 से 100 सीटों पर जबकि कांग्रेस के गठबंधन साझेदार 220 के करीब सीटों पर जोर आजमाइश करते दिखेंगे.

यहां ये भी दर्ज किया जाना चाहिए कि महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी के बीच सीट बंटवारे का औपचारिक ऐलान अब तक नहीं हो सका है और पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश में कांग्रेस निश्चित तौर पर कितने सीटों पे चुनाव लड़ रही है, यह भी पूरी तरह साफ नहीं है. हालांकि ये मामला सुलझ जाने के बाद भी मोटे तौर पर कांग्रेस, बीजेपी की अपने बदौलत चुनाव लड़ने वाली सीटों की संख्या 325, 446 ही के अल्ले-पल्ले रहेगी. 5 सीटें ऊपर या नीचे मुमकिन हैं.

अब की जब इंडिया ब्लॉक और एनडीए के साथियों के बीच सीटों का बंटवारा हो चुका है, इस स्टोरी में हम दोनों गठबंधन के अगुआ कांग्रेस और बीजेपी की नजर से सीट समझौते की 5 बड़ी बातों को समझने का प्रयास करेंगे. एक चीज खासकर देखेंगे कि कांग्रेस और बीजेपी को अपने सहयोगियों के सामने कहां और कितना झुकना पड़ा है.

1. बीजेपी, कांग्रेस: कौन, कहां, कितना झुका?

255 सीटों के अनुमान से तकरीबन 70 सीटें अधिक लड़ने के बावजूद आजादी के बाद ये पहला ऐसा लोकसभा चुनाव है जब कांग्रेस इतनी कम सीटों (325) पर अपने उम्मीदवार उतार रही है. कांग्रेस पिछले 17 आम चुनावों में कभी भी 400 सीटों के नीचे नहीं लड़ी पर इस बार ‘बड़ा दिल दिखाते हुए, मोदी को हराने के वास्ते, लोकतंत्र बचाने के लिए, तानाशाही के खिलाफ, न्याय की खातिर’ साढ़े तीन सौ सीटों से भी नीचे चुनाव लड़ने को तैयार हुई है.

कांग्रेस अपने चुनावी इतिहास मे सबसे कम सीटों पर 2004 में लड़ी थी. ये ‘इंडिया शाइनिंग’ के स्लोगन वाला चुनाव था. तब पार्टी ने 417 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. इस तरह अगर देखें तो 2024 के आम चुनाव में 2004 के अपने सबसे न्यूनतम रिकॉर्ड से भी कांग्रेस लगभग 100 सीट कम पर चुनावी मैदान में है. इसके ठीक उलट, भारतीय जनता पार्टी 1996 के बाद 2024 में सबसे ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रही है.

कभी 1996 में बीजेपी ने कमल के निशान पर 471 प्रत्याशियों को उतारा था लेकिन इसके बाद अगले तीन चुनावों (1998, 1999, 2004) में बीजेपी के अपने कैंडिडेट्स की संख्या 400 के नीचे ही रही. 2009 में पार्टी ने इस पहलू पर नए सिरे से मंथन किया और अपने बलबूते पर लड़ने की ठानी. 2009 में 433 सीटों पर लड़ने वाली बीजेपी नरेंद्र मोदी के उभार के बाद मजबूत होती चली गई और इस बार 446 सीटों पर अपने दम पर बैटिंग कर रही है.

अब आते हैं कांग्रेस और बीजेपी के सहयोगी दल से समझौते और उनके लिए सीटों का एक बड़ा हिस्सा छोड़ने वाले सवाल पर.

जहां BJP को झुकना पड़ा

बड़े राज्यों में बीजेपी को सबसे ज्यादा आंध्र प्रदेश और बिहार में झुकना पड़ा है. आंध्र प्रदेश में कुल 25 में से 19 सीटें (76 फीसदी) बीजेपी को अपने सहयोगियों के लिए छोड़नी पड़ी है जबकि बिहार में जदयू से 1 सीट अधिक पर चुनाव लड़ने के बावजूद 40 में से 23 सीटें (57.5 प्रतिशत) गठबंधन के साझेदारों को देना सूबे में बीजेपी की अपनी ताकत बताने को काफी है.

जहां BJP की चल गई

वहीं, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के सीट बंटवारे में बीजेपी की अच्छी खासी चली है. उत्तर प्रदेश में 4 सहयोगियों के होते हुए लगभग 95 फीसदी सीटें (80 में 75) और तमिलनाडु, महाराष्ट्र में दमदार सहयोगियों के होते हुए भी 60 फीसदी तक सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करने के लिए गठबंधन को राजी कर लेना अपने आप में बड़ी बात है.

जहां कांग्रेस की नहीं चली

कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु में इन राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों की सरपरस्ती में चुनाव लड़ रही है. उत्तर प्रदेश में लगभग 78 फीसदी सीटें (80 में 63), बिहार में भी 78 फीसदी सीटें (40 में 31), महाराष्ट्र में 65 फीसदी सीटें (48 में 31) और तमिलनाडु में 77 फीसदी सीटें (39 में 30) गठबंधन सहयोगियों को देना इन राज्यों में पार्टी के घटते जनाधार, जर्जर संगठन, साझेदारों पर हद से ज्यादा निर्भरता की तरफ इशारा करती है.

कांग्रेस के लिए सम्मानजनक

हां, केरल में कांग्रेस अपने हितों को बरकरार रखने में बहुत हद तक सफल रही है. दक्षिण भारत के इस राज्य में राहुल गांधी के चुनाव लड़ने के बाद कांग्रेस पिछले लोकसभा चुनाव में बेहतर कर पाई थी. इस बार भी पार्टी 20 में से 16 सीटों (80 फीसदी) पर खुद एक सम्मानजनक लड़ाई लड़ रही है.

2. बीजेपी, कांग्रेस: सहयोगियों के बगैर किन राज्यों में?

बीजेपी – 23 (16 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश)

16 राज्य जहां भाजपा सूबे की सभी सीटों पर बगैर किसी सहयोगी के चुनाव लड़ रही है- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा.

7 केंद्र शासित प्रदेशों जहां बीजेपी ने पूरी तरह एकला चलो का मार्ग चुना है- दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, पुड्डुचेरी, चंडीगढ़, दमन दीव और दादर नागर हवेली.

इन 16 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में लोकसभा सीटों की कुल संख्या 229 है.

कांग्रेस- 18 (12 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश)

12 राज्य ऐसे हैं जहां कांग्रेस अपने प्रतिद्वंदी का मुकाबला अपने दम पर कर रही है- उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम.

केंद्र शासित प्रदेशों पर गौर किया जाए तो दिल्ली में कांग्रेस आम आदमी पार्टी और जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ ताल ठोक रही है.

बाकी के सभी 6 केंद्र शासित प्रदेश – लक्षद्वीप, अंडमान निकोबार, लद्दाख, पुड्डुचेरी, चंडीगढ़, दमन दीव और दादरा नागर हवेली में कांग्रेस अकेले ही चुनाव लड़ रही है.

इन 12 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में सीटों की कुल संख्या 79 है.

सत्तारूढ़ क्षेत्रीय पार्टियां – 4 राज्य

ओडिशा की सत्ताधारी पार्टी बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस सभी लोकसभा सीटों पर अपने बलबूते चुनाव लड़ रहे हैं.

वहीं, केंद्र के स्तर पर एनडीए में शामिल होते हुए भी सिक्किम में सरकार चला रही सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा और इंडिया ब्लॉक का हिस्सा होने के बावजूद पश्चिम बंगाल की सत्तासीन तृणमूल कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ रही है.

इन 4 राज्यों की कुल सीटों की संख्या 89 है. यहां बीजेपी हो या कांग्रेस, दोनों को इन क्षेत्रीय क्षत्रपों ही से टकराना होगा.

3. कितने सहयोगी दलों के भरोसे कौन?

लोकसभा चुनाव की पेशबंदी के लिए पिछले साल जुलाई में जब इंडिया ब्लॉक के नेता बेंगलुरू में इकठ्ठा हुए तब उनके सहयोगियों की संख्या 26 थी. इनमें बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जेडीयू और उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी की आरएलडी खेमा अब एनडीए का हिस्सा है जबकि महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी और पल्लवी पटेल की अपना दल कमेरावादी इंडिया ब्लॉक से इतर अपने-अपने बैनर तले चुनाव लड़ रहे हैं. साथ ही, 2023 में इंडिया ब्लॉक के साथ कदम दाल कर रही केरल कांग्रेस (एम) राज्य की सत्ताधारी पार्टा एलडीएफ की तरफ से अपनी चुनावी किस्मत आजमा रही है.

पर ये पूरा का पूरा निचोड़ नहीं है. इंडिया ने केवल सहयोगियों को गंवाया ही नहीं है, कुछ नए साथी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा भी बने हैं. जिनमें राजस्थान में राजकुमार रोत की भारत आदिवासी पार्टी और हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अलावा बिहार में मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी तो असम में लुरिनज्योति गोगोई की असम जातीय परिषद इंडिया ब्लॉक से जुड़ी है. इस तरह 12 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में गठबंधन धर्म का पालन करती हुई चुनाव लड़ रही कांग्रेस पार्टी सीधे तौर पर करीब 20 राजनीतिक दलों के साथ चुनाव लड़ रही है.

भारतीय जनता पार्टी की तरफ नजर दौड़ाई जाए तो इंडिया ब्लॉक के एकजुट होने की कवायद के दौरान 2023 में एनडीए ने तकरीबन 38 पार्टियों के साथ दिल्ली में शक्ति प्रदर्शन किया था. हालांकि, तब से अब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका है. तमिलनाडु में एआईएडीएमके (अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम) और हरियाणा में जेजेपी (जननायक जनता पार्टी) जैसी सहयोगी को बीजेपी खो चुकी है. मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट और सिक्किम में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा केंद्र के स्तर पर एनडीए के सहयोगी होते हुए भी आम चुनाव में बीजेपी के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं.

एआईएडीएमके, जेजेपी से बीजेपी अगर अलग हुई है तो वह बिहार में जदयू और उत्तर प्रदेश में आरएलडी और दूसरे क्षेत्रीय दलों को अपने साथ भी ले आई है. 16 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में गठबंधन में चुनाव लड़ रही बीजेपी कम से 27 सहयोगियों के साथ 2024 लोकसभा चुनाव लड़ रही है. बीजेपी और कांग्रेस, दोनों को सबसे ज्यादा गठबंधन सहयोगियों की तलाश तमिलनाडु में करनी पड़ी है. यहां दोनों ही दल 7-7 क्षेत्रीय दलों के आसरे चुनावी वैतरणी पार कर लेना चाहते हैं.

4. गठबंधन में भी और आमने-सामने भी

इंडिया गठबंधन में शामिल होते हुए भी पश्चिम बंगाल की सभी सीटों और उत्तर पूर्व की चुनिंदा सीटों पर तृणमूल कांग्रेस सहयोगियों से चुनावी मुकाबले में है.

ऐसे ही दिल्ली, हरियाणा और गुजरात की सीटों पर समझौता करने वाली आम आदमी पार्टी और कांग्रेस इंडिया गठबंधन में होते हुए भी पंजाब में एक-दूसरे का डट कर मुकाबला करती नजर आएंगी.

जम्मू-कश्मीर में भी महबूबा मुफ्ती की पीडीपी और कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे पर बात नहीं बनी. लिहाजा, कश्मीर की तीनों सीटों पर महबूबा की पार्टी इंडिया गठबंधन के साझेदारों के खिलाफ लड़ेगी.

पश्चिम बंगाल, उत्तर पूर्व से लेकर बिहार, झारखंड, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कई दूसरे राज्यों में लेफ्ट के साथ गठबंधन होते हुए भी केरल में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूडीएफ, सीपीआई-एम के नेतृत्व वाली एलडीएफ को टक्कर दे रही है.

यानी कम से कम 80 सीटों पर इंडिया ब्लॉक के सहयोगी एक-दूसरे को हराने की फिराक में होंगे या फिर उनके लफ्जों में कहें तो दोस्ताना मुकाबला (Friendly Contest) करेंगे.

5. जहां बीजेपी-कांग्रेस का सीधा मुकाबला

15 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों में बीजेपी और कांग्रेस सीधे तौर पर आमने-सामने हैं.

देश की सबसे बड़ी दो राष्ट्रीय पार्टियों के बीच ये चुनावी मुकाबला 15 राज्य – उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, गोवा, उत्तर पूर्व के 4 राज्य – असम, अरूणाचल प्रदेश, मिजोरम और सिक्किम में देखने को मिलेगा.

इसी तरह 8 केंद्रशासित प्रदेशों में से 5 – चंडीगढ़, लद्दाख, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, पुड्डुचेरी, दमन-दीव और दादर-नागर हवेली में चुनाव कांग्रेस और बीजेपी ही के बीच हो रहा है.

ऐसे में, इन 20 (15 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों) की तकरीबन 190 सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी एकदम आमने-सामने हैं.

नोट– मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, असम में जरूर दो-एक सीटों को कांग्रेस ने सहयोगियों के लिए छोड़ा है मगर बहुतायत सीटें कांग्रेस ही के पास है.

तो ये तो हो गई 5 अहम बातें. अब थोड़ा बोनस

आपको जानकर हैरानी होगी कि अपने राजनीतिक यात्रा के शीर्ष पर खड़ी और अनगिनत बार कांग्रेस मुक्त भारत का आह्लान करने वाली बीजेपी इस चुनाव में भी देश के 2 राज्य और 1 केंद्र शासित प्रदेश में खुद पूरी तरह चुनावी मुहिम से बाहर है. यहां उसकी नाव सहयोगियों के भरोसे है.

भाजपा मेघालय, नागालैंड और पुड्डुचेरी में अपने बूते चुनाव नहीं लड़ रही है. लक्षद्वीप में अजित पवार की एनसीपी, नागालैंड में एनडीपीपी, मेघालय में एनपीपी के आसरे अबकी बार, 400 पार के नारे के लिए जरुरी तीन ‘ईंट’ जुटाने की जुगत में है.

दूसरी तरफ, कांग्रेस देश की वाहिद ऐसी पार्टी है जो किसी न किसी रूप में, कम सीटों पर ही सही लेकिन देश के सभी 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में चुनाव लड़ रही है.tv9