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स्वामी प्रसाद का इस्तीफा – राज्यसभा सीट ना मिलने की नाराजगी या पार्टी में खत्म होता समर्थन

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लखनऊ – स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है। यह इस्तीफा उन्होंने पार्टी फोरम में राष्ट्रीय अध्यक्ष को निजी तौर पर ना देकर सोशल मीडिया में शेयर किया। इस पत्र में उन्होंने दलितों, पिछड़ों की आवाज बनने की कोशिश करने की बात कही है। साथ ही उन्होंने पार्टी के व्यवहार पर नाखुशी जताई है। स्वामी प्रसाद मौर्य के इस पत्र की भाषा में एक नाराजगी दिख रही है। इसकी दो वजहें मानी जा रही हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार मौर्य पार्टी से उम्मीद कर रहे थे कि उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा। वह अंतिम समय तक इसकी उम्मीद में थे। आज राज्यसभा के नामांकन हो जाने के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप उन्होंने इस्तीफा दिया। दूसरी बड़ी वजह उनके बयानों की पार्टी में होने वाली प्रतिक्रिया है। स्वामी लगातार हिंदू धर्म, उसके देवी-देवताओं और कर्मकांड पर टिप्पणी करते रहते हैं। पार्टी में अंदर से उन्हें किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिलता है। पार्टी के वरिष्ठ नेता जिसमें खुद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं उनके बयानों पर नाखुशी जाहिर करते रहे हैं।

मेरे आने के बाद 110 सीटें हुईं 

अखिलेश यादव को भेजे गए इस्तीफा पत्र में उन्होंने कहा कि जबसे मैं सपा में शामिल हुआ तब से ही पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कोशिश की है। यही कारण है कि जिस सपा के पास पहले सिर्फ 45 विधायक थे वहीं विधानसभा चुनाव 2022 के बाद यह संख्या 110 हो गई।

उन्होंने कहा कि मैंने पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए अपने तरीके से प्रयास किए। इसी क्रम में मैंने आदिवासियों, दलितों व पिछड़ों को जो जाने-अनजाने भाजपा के मकड़जाल में फंसकर भाजपामय हो गए उनके सम्मान व स्वाभिमान को जगाकर व सावधान कर वापस लाने की कोशिश की।

इस पर पार्टी के कुछ छुटभईये नेताओं ने इसे मौर्य जी का निजी बयान कहकर धार कुंद करने का प्रयास किया। मुझे हैरानी तब हुई जब पार्टी के वरिष्ठतम नेता इस पर चुप रहे। उन्होंने कहा कि पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव का बयान पार्टी का होता है जबकि मेरा बयान निजी हो जाता है। ऐसे में इस भेदभावपूर्ण और महत्वहीन पद पर रहने का कोई औचित्य नहीं। मैं पार्टी महासचिव के पद से इस्तीफा दे रहा हूं। कृपया इसे स्वीकार करें।

अगर पार्टी से अलग होते हैं तो कहां जाएंगे स्वामी

स्वामी प्रसाद मौर्या बीते कुछ सालों में बसपा, भाजपा और सपा में रह चुके हैं। सपा में आने से पहले वह बीजेपी में थे। उनकी बेटी संघमित्रा मौर्या वर्तमान में बीजेपी से सांसद हैं। स्वामी ने अभी सपा से इस्तीफा नहीं दिया है। वह सिर्फ पद से अलग हुए हैं। राजनीतिक गलियारों में सवाल यह उठ रहा है कि स्वामी कहां जा सकते हैं? क्या वो अपनी पुरानी पार्टी बीजेपी में लौट जाएंगे या उससे पुरानी पार्टी रही बीएसपी का दामन थाम लेंगे? क्या कांग्रेस का विकल्प भी उनके लिए खुला है।

स्वामी के बयानों को गौर करें तो उनकी भाषा बीजेपी के राजनीतिक स्टैंड के बिल्कुल विपरीत है। तो सबसे कम संभावनाएं बीजेपी में जाने की हैं। हालांकि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बसपा के साथ उनके रिश्ते ऐसे नहीं बचे हैं कि वह वहां लौट सकें। हालांकि मायावती को लेकर स्वामी किसी प्रकार के निजी कमेंट से बचते रहे हैं। तो संभावनाओं से यहां भी इंकार नहीं किया जा सकता।

कांग्रेस का विकल्प भी उनके लिए खुला है। सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन होने की स्थिति में वह किसी एक सीट से कांग्रेस कोटे से दावेदार हो सकते हैं। हालांकि यह सभी अटकलें ही हैं। हो सकता है कि स्वामी सिर्फ पाटी पर दबाव बनाने के लिए इस्तीफे का खेल, खेल रहे हों।