कुछ ऐसे वाकये भी रहे हैं, जिसे लेकर कांग्रेस नेतृत्व की आलोचना होती है। पूर्व पीएम राव के निधन होने के बाद उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस ऑफिस में नहीं आने देना भी एक ऐसा ही वाकया था। इस वाकये का जिक्र हाल ही में देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपनी पुस्तक में किया है। शर्मिष्ठा ने अपने पिता प्रणब मुखर्जी के हवाले से इस बात का जिक्र किया है।
देश के पूर्व राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा ने (प्रणब, माई फादर: ए डॉटर रिमेम्बर्स) किताब में अपने पिता प्रणब मुखर्जी के हवाले से इस घटना का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि प्रणब और नरसिम्हा राव के काफी करीबी संबंध थे। लेकिन उनके दिल में एक कसक हमेशा रही कि राव के निधन के बाद सोनिया गांधी ने उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस दफ्तर में घुसने तक नहीं दिया था। शर्मिष्ठा ने बताया कि प्रणब इस घटना को काफी शर्मनाक बताते थे। उन्होंने कहा कि बाबा कहते थे कि यह सोनिया और उनके बच्चों के लिए बेहद शर्मनाक है। शर्मिष्ठा ने बताया कि प्रणब कहते थे कि गांधी परिवार ने राव के साथ बुरा व्यवहार किया। इसके लिए वह सोनिया को ही जिम्मेदार ठहराते थे।
पीवी नरसिम्हा राव के पौत्र एनवी सुभाष ने बताया था कि उनके दादा के शव के साथ कांग्रेस मुख्यालय पर कैसा व्यवहार किया गया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि कांग्रेस ने हमेशा नेहरू, गांधी परिवार के इतर नेताओं की अनदेखी की है खासकर स्वर्गीय पीवी नरसिम्हा राव की। सुभाष ने कहा, यह बहुत ही स्पष्ट है कि उनके पार्थिव शरीर को दिल्ली में एआईसीसी के मुख्यालय में ले जाने की अनुमति नहीं दी गई थी।
पूर्व पीएम नरसिम्हा राव पर किताब लिखने वाले विनय सीतापति ने अपनी किताब (हाफ लायन, हाउ पीवी नरसिम्हा राव ट्रांसफॉर्म्ड इंडिया) में एक वाकिए का जिक्र किया है कि पहले नरसिम्हा राव सोनिया गांधी से महीने में दो बार मिलने जाते थे। लेकिन बाद में दोनों के बीच इतनी दूरियां बढ़ गईं कि जब राव सोनिया गांधी को फोन करते, तो वे उन्हें 4 से 5 मिनट तक इंतजार करवाती थीं। उस समय राव ने अपने एक नजदीकी को बताया था कि मुझे निजी तौर पर फोन होल्ड करने पर एतराज नहीं है, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री को जरूर है। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर अपनी आत्मकथा में लिखते है कि मुझे जानकारी है कि राव की बाबरी मस्जिद विध्वंस में भूमिका थी। जब कारसेवक मस्जिद को गिरा रहे थे, तब वो अपने निवास पर पूजा में बैठे हुए थे। वो वहां से तभी उठे जब मस्जिद का आखिरी पत्थर हटा दिया गया, लेकिन विनय सीतापति इस मामले में नरसिम्हा राव को क्लीन चिट देते हैं।
सीतापति लिखते हैं, नवंबर 1992 में दो विध्वंसों की योजना बनाई गई थी। एक थी बाबरी मस्जिद की और दूसरी खुद नरसिम्हा राव की। संघ परिवार बाबरी मस्जिद गिराना चाह रहा था और कांग्रेस में उनके प्रतिद्वंद्वी नरसिम्हा राव को। राव को पता था कि बाबरी मस्जिद गिरे या न गिरे, उनके विरोधी उन्हें ज़रूर 7 रेस कोर्स रोड से बाहर देखना चाहते थे। नवंबर 1992 में सीसीपीए की कम से कम पांच बैठकें हुईं। उनमें एक भी कांग्रेस नेता ने नहीं कहा कि कल्याण सिंह को बर्खास्त कर देना चाहिए।
सीतापति आगे लिखते हैं, राव के अफसर उन्हें सलाह दे रहे थे कि आप किसी राज्य सरकार को तभी हटा सकते हैं जब कानून और व्यवस्था भंग हो गई हो, न कि तब जब कानून और व्यवस्था भंग होने का अंदेशा हो, रही बात बाबरी मस्जिद गिरने के समय राव के पूजा करने की कहानी की, तो क्या कुलदीप नैय्यर वहां स्वयं मौजूद थे। वे कहते हैं कि उनको ये जानकारी समाजवादी नेता मधु लिमए ने दी थी, जिन्हें ये बात प्रधानमंत्री कार्यालय में उनके एक सोर्स ने बताई थी। उन्होंने इस सोर्स का नाम नहीं बताया। विनय सीतापति कहते हैं कि उनका शोध बताता है कि ये बात ग़लत है कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के समय नरसिम्हा राव सो रहे थे या पूजा कर रहे थे। नरेश चंद्रा और गृह सचिव माधव गोडबोले इस बात की पुष्टि करते हैं कि वे उनसे लगातार संपर्क में थे और एक-एक मिनट की सूचना ले रहे थे।