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चंपई सोरेन – ऐसे ‘फकीर’ जिनके पूर्व सीएम भी छूते हैं पांव, संघर्षों में बीता पूरा जीवन, जानिए ‘टाइगर’ की कहानी

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रांची – तमाम अटकलों और कयासों के बीच चंपई सोरेन ने झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली. आज वह विधानसभा में अपनी सरकार के लिए विश्वासमत पेश करने जा रहे हैं. जानकार बताते हैं कि उनके पास गठबंधन के सहयोगियों के साथ बहुमत का आंकड़ा है और वह विश्वासमत प्राप्त भी कर लेंगे. मीडिया से बातचीत करते हुए नवनियुक्त मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने कहा भी है कि दायित्व को अच्छे से निभाएंगे. चंपई सोरेन झारखंड के सीएम पद लिए अचानक उदय हुआ नाम हैं और उनकी की राजनीति यात्रा के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं. ये एक फकीर की कहानी है जो आज राजा बन गया.

चंपई सोरेन ‘कोल्हान के टाइगर’ कहे जाते हैं. बहुत सारे लोग उन्हें प्यार से ‘चंपई दा’ भी कहते हैं. उनका जीवन काफी संघर्षों में बीता है पूरा राजनीतिक सफर एक फकीर के रूप में रहा, आज वे झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच चुके हैं. अपने जीवन में चंपई सोरेन ने कई उतार-चढ़ाव देखे. एक समय ऐसा भी आया जब बच्चों की फीस देने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. इस कठिन परिस्थिति के बावजूद वे कभी हार नहीं माने.

किसान परिवार में जन्मे चंपई सोरेन को झारखंड टाइगर भी कहा जाता है. सीएम चंपई सोरेन के पिता का नाम सेमल सोरेन है. उनके पिता खेती किसानी करते थे. जब चंपई सोरेन थोड़े बड़े हुए तो पिता के साथ वे भी खेती किसानी मे लग गए. बाद में वे झारखंड आंदोलन में कूद पड़े. 1990 के दशक में अलग झारखंड राज्य की मांग जोर पकड़ा हुआ था. अलग राज्य के लिए लंबी लड़ाई लड़ी गई. उसी समय वे आंदोलन में शामिल हो गए.

पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन के सहयोगी रहे हैं. झारखंड आंदोलन के समय चंपई सोरेन ने शिबू सोरेन का साथ दिया था. आज की तारीख में चंपई शिबू सोरेन के काफी करीबी हैं. पूर्व सीएम हेमंत सोरेन भी कई बार सार्वजनिक मंचों पर चंपई सोरेन के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हुए दिखे हैं. हेमंत सोरेन रिश्ते में उन्हें चाचा मानते हैं. कहा जाता है कि मामला चाहे सरकार का हो या पार्टी के अहम मुद्दों पर को निर्णय लेना हो, हेमंत सोरेन हमेशा चंपई सोरेन से सलाह करते थे.

चंपई सोरेन को झामुमो का वफादार सिपाही माना जाता है. उनका कहना है कि उन्होंने अपने पिता के साथ खेतों में भी काम किया है. अब किस्मत ने मुझे एक अलग भूमिका निभाने का मौका दिया है. मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने सबसे पहले 1991 में पहली बार उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की थी. वे सरायकेला से उपचुनाव जीते थे. वो जीत इसलिए बड़ी थी क्योंकि चंपई सोरेन ने कद्दावर सांसद कृष्णा मार्डी की पत्नी को हराया था.

इसके बाद चंपई सोरेन ने 1995 में झामुमो के टिकट पर जीत हासिल की. साल 2000 में बीजेपी के अनंतराम टुडू से चंपई सोरेन चुनाव हार गए थे. लेकिन 2005 से लगातार चंपई सरायकेला से विधायक हैं. 2019 में उन्होंने बीजेपी के गणेश महाली को हराया था. वे सात बार के विधायक हैं. हेमंत कैबिनेट में दूसरी बार मंत्री बनाए गए थे.