केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय को मिले हुए 48 घंटे भी नहीं हुए और आज बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी मिलने पहुंचे। नित्यानंद राय ने भतीजे की चाचा से मुलाकात कहा था। अब जानें, क्यों यह चाचा भाजपा के लिए अहम हो गए।
गुरुवार की देर शाम केंद्रीय गृह राज्यमंत्री और बिहार भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से मिलने पहुंचे। मुलाकात के मायने पूछे गए तो कहा- “भतीजा तो चाचा से मिलने आता ही रहता है। पहले भी आता रहा हूं, आज भी वैसे ही आया।” अब आज, यानी शनिवार को बिहार प्रदेश भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष सम्राट चौधरी भी जीतन राम मांझी से मिलने पहुंचे। जब मांझी बार-बार भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में आस्था जता रहे हैं तो भाजपा के अंदर बेचैनी क्यों? जवाब मिल गया है। पढ़ें आगे।
मांझी के पास चार विधायक, सांसद एक भी नहीं
बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की पार्टी (हिन्दुस्तानी आवामी मोर्चा- सेक्युलर) के पास चार विधायक हैं और सांसद एक नहीं। बेटे संतोष सुमन पिछले साल जून के दूसरे हफ्ते तक बिहार सरकार में मंत्री थे, लेकिन विपक्षी एकता के सूत्रधार नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ देशभर के भाजपा-विरोधी दलों को एकजुट किए जाते समय यह आशंका जताई कि मांझी कुनबा साथ रहकर भाजपा की मदद कर सकता है। जीतन राम मांझी ने कहा कि नीतीश कुमार हिन्दुस्तानी आवामी मोर्चा का जदयू में विलय चाहते थे, जिसे नकारने पर आरोप लगाया गया तो हमने बाहर निकलने का फैसला लिया। पीएम मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के प्रति आस्था वह कई बार जता चुके हैं। लेकिन, इस समय नित्यानंद राय से लेकर सम्राट चौधरी तक एक डर की वजह से उनसे मिलने पहुंच रहे हैं।
डर की खबर राबड़ी आवास से निकल रही है
जिस डर से मांझी को इतनी तवज्जो मिल रही है, उसकी खबर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास से निकली है। ‘अमर उजाला’ ने गुरुवार को ही सामने लाया था कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव मौजूदा सरकार को बचाने के लिए आपदा प्रबंधन की जगह तेजस्वी यादव के नेतृत्व में नई सरकार के गठन का भी गणित बैठा रहे हैं। अब यह बात पक्की होती नजर आ रही है, क्योंकि उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी नीतीश से दूर-दूर दिख रहे हैं। तो, बात मांझी की कर रहे थे। मांझी के पास चार विधायक हैं। राजद के पास अपने 79 विधायक हैं। कांग्रेस के 19 और वाम दल के 16 मिलाकर संख्या 114 पहुंच रही है। असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी के पांच में से चार विधायक पहले ही राजद अपने में मिला चुका है। अब शेष एक विधायक अगर राजद के साथ आ गए तो इनकी संख्या 115 पहुंच रही है। यह बहुमत के आंकड़े से सात दूर है। राजद के अंदर दावा किया जा रहा है कि निर्दलीय होकर भी मंत्री बने सुमित कुमार सिंह भी उसके पास आ सकते हैं। उस दावे को सही मान भी लें तो निर्दलीय जोड़कर भी आंकड़ा 116 होता है। मतलब, अब भी छह की दूरी है। ऐसी परिस्थिति में मांझी की पार्टी को डिप्टी सीएम का एक पद दिए जाने की बात कहते हुए उसके चार विधायकों को मिलाने का राजद प्रयास कर रहा है।
जदयू के चार विधायकों का इस्तीफा भी टारगेट
यह दावे हैं, वह भी अनधिकृत। फिर भी सही मानें तो 120 के बाद दो विधायक राजद कहां से लाएगा? इसका भी जवाब राजद से ही मिल रहा है। कहा जा रहा है कि जदयू के चार विधायकों का इस्तीफा कराने पर खेल हो सकता है। तब आंकड़ों की बाजीगरी में भाजपा के 78 और जदयू के 45 की जगह 41 हो जाएंगे। इस तरह, उस तरफ 119 विधायक रहेंगे। राजद की तरफ 120 रहेंगे। राज्यपाल के सामने परेड कराना संभव होगा। तब, बहुमत के समय राजद खेमे के विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी तात्कालिक रूप से अपनी पार्टी की गाड़ी बढ़ा देंगे। फिर उपचुनाव होगा तो ताकत झोंककर सरकार बचा ली जाएगी।