2024 के चुनाव तक पागलपन का यह खेला घर -घर खेला जाएगा। रामलला जी इनको वोट दिला दें, फिर उन्हें अवैतनिक अवकाश पर भेज दिया जाएगा। फिर नया खेला जाएगा, नए पागलपन का नया ब्रांड लांच किया जाएगा। उसे हरी झंडी दिखाई जाएगी।
विष्णु नागर – इस प्राचीन और महान देश में- क्षमा करें – हिंदू राष्ट्र में- आपका हार्दिक स्वागत है। यहां जीने का एक ही उपाय है- पागल हो जाएं । मरने का भी एक ही रास्ता है-अपने को पागल होने से बचाएं। सब नारों, सब भाषणों का एक ही सार है- पागल हो जाएं। पागल नहीं हो सकते तो मर जाएं, सड़ जाएं, भाड़ में जाएं। भाड़ न मिले तो नदी-नाले में डूब जाएं।
हर तरफ पागलपन है। सत्ता का पागलपन है। धर्म का पागलपन है। नफरत का पागलपन है। धन का पागलपन है। खास काट के राष्ट्रवाद का पागलपन है। सत्ता की दलाली का पागलपन है। घर में पागलपन है, बाहर पागलपन है। ऊपर-नीचे, दांए-बांए सब तरफ पागलपन है। पागलपन ही अब हमारा भूत, वर्तमान, भविष्य है। पागलपन ही अब हमारी राष्ट्रीय पहचान है। गांधी जी, नेताजी, भगत सिंह ने इसीलिए तो आजादी की लड़ाई लड़ी थी कि एक दिन, एक शासक आएगा और हिंदुस्तान के अधिकतर लोगों को पागल बनाकर अपना उल्लू सीधा कर जाएगा। धर्म के नशे में गले- गले तक डुबो देगा। मरने से पहले छटपटाने तक न देगा।
इन दिनों राममंदिर का पागलपन प्रायोजित है। इस शो के प्रायोजक सभी हैं-सरकारी और निजी संस्थाएं, पूंजीपति, संविधान और कानून के रक्षक। इसके इतने प्रायोजक हैं कि उनकी गिनती नहीं। कुछ के तो नाम नहीं लेना तक गुनाह है।
2024 के चुनाव तक पागलपन का यह खेला घर -घर खेला जाएगा। रामलला जी इनको वोट दिला दें, फिर उन्हें अवैतनिक अवकाश पर भेज दिया जाएगा। फिर नया खेला जाएगा, नए पागलपन का नया ब्रांड लांच किया जाएगा। उसे हरी झंडी दिखाई जाएगी।
इस खेला के बाद शायद कृष्ण जी की ड्यूटी शुरू हो या शिवजी को काम से लगा दिया जाए। ‘अयोध्या तो बस झांकी है, काशी मथुरा बाकी है।’ विष्णु जी के कलियुगी अवतार तो स्वयं चौबीस घंटे की ड्यूटी पर हैं। ब्रह्मा जी को भी फालतू नहीं रहने दिया जाएगा। पागल बनाने के सौ तरीके हैं। हरेक का समय-समय पर प्रयोग किया जाएगा। पागलपन की हर पैंकिंग पर लिखा होगा- नया भारत।
आजकल टीवी, अखबार, सोशल मीडिया पर, एक ही खबर है, एक ही विज्ञापन है,एक ही धुन है- राममंदिर-राममंदिर। ऐसा है राम मंदिर, वैसा है राम मंदिर। इधर से देखो राम मंदिर, उधर से देखो राममंदिर। आगे से, पीछे से, ऊपर से, नीचे से, दांये से, बांये से, आकाश से, पाताल से देखो तो बस केवल राममंदिर।
ख़बरें ही खबरें हैं। बताया जा रहा है, इस मंदिर का (पता नहीं किन) हिंदूओं को 550 साल से इंतजार था। इसमें मूर्ति श्याम लगेगी या श्वेत? एक लगेगी या तीन? मूल मूर्ति का क्या होगा? गर्भगृह में कौनसी लगेगी? शिलान्यास किस दिन, किस समय, किस मिनट, किस सेकंड पर होगा? उस समय मुहूर्त कौनसा होगा? फलांने जी कितने बजे परिसर में पधारेंगे। अडवाणी और जोशी नहीं बुलाए गए हैं। फिर बताया जाता है- बुलाए गए हैं। भाषण किस -किस का पहले, किसका बाद में किसका? मतलब रोज सिर खाने पूरा और पक्का इंतजाम है।
मंदिर-मंदिर, मंदिर-मंदिर। सुन-सुनकर,पढ़ -पढ़कर ऐसा लगता है,जैसे देश में कोई बड़ी भारी क्रांति होने जा रही है। सबके पेट भर जाएंगे। सबके दुख मिट जाएंगे। रोग, शोक सब हर लिये जाएंगे। 22 जनवरी से ब्रह्माण्ड में हमीं हम होंगे। हमीं हम, हमीं हम। हम होंगे और राममंदिर होगा और हमारे वे सज्जन जी अथवा दुर्जन जी होंगे।
इनके राम भी एकदम अलग परजाति के हैं। इनका तीन सौ से अधिक रामायणों में वर्णित राम से कोई संबंध नहीं हैं। न ये बाल्मीकि के राम हैं, न तुलसी के। न ये बौद्धों के राम हैं, न जैनों के। न ये कन्नड़ में वर्णित राम हैं,न तमिल में वर्णित राम। जिस राम पर करीब ढाई हजार साल से लिखा जा रहा है, उस राम से इनका कोई रिश्ता नहीं। जिस राम पर दुनिया की करीब बीस भाषाओं में लिखा गया है, उस राम के पास ये फटकते भी नहीं। इनके राम पहले अडवाणी ब्रांड थे, अब मोदी ब्रांड हो गए हैं। इस रामायण के राम खुद मोदी हैं और रावण भी यहीं है, जिन्हें ये ‘ बाबर की औलादें’ कहते हैं। ये मंदिर इन्हीं से प्रतिशोध लेने के लिए बनाया गया है। इसकी नींव में बदले की आग है।
इनके इन रामायणकारों को यह नहीं मालूम होगा कि ये खुद कहां पैदा हुए थे पर इन्हें यह पता है कि इनके राम ने पांच हजार या दस लाख साल पहले कहां जन्म लिया था। किस घंटे ,किस मिनट ,किस सेकंड जन्म लिया था। इनकी रामायण में हर मस्जिद के नीचे एक मंदिर पाया जाता है। इनकी रामायण में न सीता, लक्ष्मण, दशरथ, कैकयी आदि का कोई काम नहीं। इनके राम वनवास नहीं भोगते, इनकी तरह केवल राज करते हैं। इन्होंने अपनी तरह अपने राम को भी झूठ और नफरत के दलदल में फंसा दिया है। इनके राम ईडी की तरह चुनावी तीर विपक्ष पर चलाते रहते हैं। वोट इनकी झोली में डालते रहते हैं।
कुल किस्सा यह है कि साहब जी को तीसरी बार जिताना है। लोकतंत्र के मंदिर को मोदी मंदिर बनाना है। लोगों को मूर्ख और नफरती बनाते ही जाना है। अडानी -अंबानी को आगे और आगे बढ़ाते जाना है। जनता से पांच किलो अनाज में पक्का सौदा पटाना है।
बात इतनी सी है मगर फ़साना कितना बड़ा है!