Home देश NDA में नौ साल सरकार चलाने के बाद भी सत्ता पक्ष को...

NDA में नौ साल सरकार चलाने के बाद भी सत्ता पक्ष को क्यों अपनानी पड़ी ‘विपक्षी गठबंधन’ वाली राह; जानें सब कुछ

31
0

विपक्ष की बेंगलुरु में बैठक को भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने सत्ता के भूखे दलों का जमावड़ा बताया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इस एकता को खोखला करार दिया है। नड्डा ने कहा कि न विपक्ष के पास नेता है और न निर्णय लेने की इच्छा शक्ति…

नई दिल्ली – नीति आयोग की रिपोर्ट आई है। आंकड़े चौकाने वाले हैं। पिछले पांच साल में 09.89 फीसदी तकरीबन 13.5 करोड़ लोग बुहआयामी गरीबी से बाहर आए हैं। देश की आबादी के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से 3.43 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए हैं। इसके बाद भी सत्ता पक्ष को अगले साल प्रस्तावित लोकसभा चुनाव की सहयोगी दलों पर निर्भरता बढ़ रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दावा किया है कि 19 जुलाई को होने वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में 38 दलों की भागीदारी रहेगी। इसके सामानांतर कांग्रेस ने भी बेंगलुरु में 26 दलों को जमा कर लिया है।

बड़ा सवाल है? आखिर देश में केवल पांच साल में ही 09.89 फीसदी बहुआयामी गरीबों की संख्या होने की रिकार्ड सफलता के बाद भी सत्ता पक्ष को सहयोगियों की संख्या को लेकर इतनी बड़ी बैठक क्यों करनी पड़ रही है? इसके सामानांतर देश में बेरोजगारी अपने शीर्ष स्तर पर है। मंहगाई, घरेलू गैस के सिलेंडर, देश में सांप्रदायिक असमानता बढ़ने, खेती-खलिहानी, सीमा पर तनाव से जुड़े तमाम गंभीर समस्याओं के बाद भी मुख्य विपक्षी दलों को एकजुटता की जरूरत क्यों पड़ रही है?

कांग्रेस-भाजपा बरसे एक-दूसरे पर

विपक्ष की बेंगलुरु में बैठक को भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने सत्ता के भूखे दलों का जमावड़ा बताया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इस एकता को खोखला करार दिया है। नड्डा ने कहा कि न विपक्ष के पास नेता है और न निर्णय लेने की इच्छा शक्ति। जब पटना में विपक्षी दल एकजुट हुए थे, तो इसे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने फोटो सेशन करार दिया था। भाजपा ने अप्रत्यक्ष रूप से इसका सबसे बड़ा माखौल आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल का अध्यादेश पर स्टैंड और महाराष्ट्र में अजित पवार के साथ एनसीपी के नेताओं के सरकार में शामिल होने पर उड़ाया था।

सत्ता पक्ष के इस तरह मखौल उड़ाने को मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने जवाब दिया है। खरगे ने जवाब में कहा कि भाजपा ऐसे 30 से अधिक दलों का कुनबा तैयार कर रही है, जिसमें पता करना चाहिए कि कौन-कौन चुनाव आयोग में राजनीतिक दल के रूप में दर्ज हैं? यह तो टूटे गुटों का गठबंधन है। खरगे यहीं नहीं रुके। वह कहते हैं कि जब प्रधानमंत्री मोदी ने इतना शानदार काम किया है और देश में उनके मुकाबले का नेता नहीं है, तो भाजपा को 30 से अधिक दलों को जुटाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? पार्टी के मीडिया विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने कहा कि पटना में विपक्षी दलों की हुई बैठक ने भाजपा की घबराहट बढ़ा दी है। अब उन्हें एनडीए याद आ रहा है। एनसीपी के अनिल देशमुख कहते हैं कि थोड़ा सा और इंतजार कर लीजिए। हमारे नेता शरद पवार भी बेंगलुरु में हैं। हमें छोड़कर गए अजित पवार रोज माफी मांगने, आशीर्वाद लेने आ रहे हैं। देशमुख कहते हैं कि हम ज्यादा क्यों बोलें? ढोल के अंदर पोल तो सब जानते हैं। अरविंद केजरीवाल से लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बैठक में अपनी अहम मौजूदगी जता रही हैं। कांग्रेस के नेता रोहन गुप्ता कहते हैं कि भाजपा का दुष्प्रचार भी सामने आ जाएगा।

विपक्ष को 2019 की गलतियों का एहसास

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर कहा करते थे कि जब राजनीतिक दल सत्ता पाने के बाद जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाते तो चुनाव नजदीक आने पर उनकी बेचैनी काफी बढ़ जाती है। संभव है कि भाजपा को इस तरह की बेचैनी घेर रही हो। सीएसडीएस के राजनीति पर अच्छी पकड़ रखने वाले रजनी कोठारी ने साक्षात्कार में अमर उजाला से कहा था कि व्यक्ति, राजनेता या संस्था कुछ भी हो, इतिहास हमेशा उसका पीछा करता है। साये की तरह डराता है और संगठन इस डर से उसे तात्कालिक राहत देता है। रजनी कोठारी को याद करके प्रतीत होता है कि विपक्षी दलों की एकता बैठक में कहीं न कहीं इसकी आहट मिल रही है। कोई भी अकेला राजनीतिक दल सत्ता पक्ष के सामने उसकी नाकामियों को नहीं खड़ा कर पा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत पाने वाले प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर भाजपा ने 2019 में लोकसभा सदस्यों की संख्या काफी बढ़ाने में सफलता पाई थी। विपक्ष को इसका अभी भी एहसास है और वह इस बार पूरी सोची समझी रणनीति के साथ एकजुट हो रहा है।