सबसे बड़ा सवाल यही है कि तमाम मतभेदों के बावजूद आखिर वो कौन से कारण हैं, जिनकी वजह से ये सभी विपक्षी दल एकजुट होने के लिए तैयार हैं। वह भी तब जब इसमें शामिल किसी भी दल की आपस में नहीं बनती है। सवाल ये भी है कि इनके एकजुट होने से देश में कैसा सियासी समीकरण तैयार होगा? आइए समझते हैं…
नई दिल्ली – देश की सियासत के लिए आज काफी बड़ा दिन है। एक तरफ दिल्ली में भाजपा की अगुआई में एनडीए की बैठक होने वाली है तो दूसरी ओर बेंगलुरु में विपक्षी दलों का संगम हुआ। विपक्षी दलों की इस बैठक में कुल 26 राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया। इस बैठक में गठबंधन के नाम पर मुहर लग गई। विपक्षी दलों के इस गठबंधन का नाम INDIA रखा गया है।
खैर, इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि तमाम मतभेदों के बावजूद आखिर वो कौन से कारण हैं, जिनकी वजह से ये सभी विपक्षी दल एकजुट होने के लिए तैयार हैं। वह भी तब जब इसमें शामिल किसी भी दल की आपस में नहीं बनती है। सवाल ये भी है कि इनके एकजुट होने से देश में कैसा सियासी समीकरण तैयार होगा? आइए समझते हैं…
विपक्षी दलों की बैठक में क्या-क्या फैसले लिए गए?
- विपक्षी दलों के गठबंधन का नाम INDIA होगा। इसका मतलब इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस है।
- सभी विपक्षी दलों ने लोकतंत्र को बचाने के लिए एकसाथ आने का फैसला लिया है।
- विपक्ष की अगली बैठक अब मुंबई में होगी।
- चुनाव के लिए दिल्ली में सचिवालय स्थापित किए जाएंगे।
- 11 सदस्यों की समन्वय समिति का गठन होगा।
अब जानिए वो पांच कारण, जिनके चलते एकजुट हो रहे हैं विपक्षी दल
1. जांच एजेंसियों की कार्रवाई
इस वक्त जांच एजेंसियां पूरे देश में छापेमारी जैसी कार्रवाई कर रही हैं। सोनिया गांधी-राहुल गांधी से लेकर केसीआर, तेजस्वी यादव, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल तक किसी न किसी तरह के आरोपों से घिरे हुए हैं। ये एक ऐसा मुद्दा है, जिसको लेकर सभी दलों की राय एक है। सभी ने इसके खिलाफ सरकार पर हमला बोला है। विपक्षी राजनीतिक दलों के नेताओं का मानना है कि अगर ये कार्रवाई नहीं रुकी तो आने वाले दिनों में उनकी पार्टियों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके अलावा उनके कई नेता टूट जाएंगे।
2. केंद्र सरकार के दखल से भी परेशान हैं
कई ऐसे राज्य हैं, जो केंद्र सरकार के दखल से परेशान हैं। इसका सबसे ज्यादा असर आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार पर देखने को मिल रहा है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल, बिहार व अन्य राज्यों में भी केंद्र सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए हैं, जिनसे यहां की सरकारें परेशान हैं। यही कारण है कि अब सब मिलकर केंद्र में भाजपा की सरकार बदलना चाहते हैं।
3. भाजपा का बढ़ता ग्राफ और सिकुड़ता विपक्ष
2014 के बाद से भाजपा का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ा है। 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा को 282 सीटों पर जीत मिली थी। 2019 में ये बढ़कर 303 हो गया। वहीं, कई ऐसे क्षेत्रीय दल थे, जो बिल्कुल साफ हो गए। विपक्ष के अन्य बड़े दलों का ग्राफ भी काफी सिकुड़ गया। अब इन दलों को खुद के राजनीतिक करियर पर खतरा लग रहा है। इन्हें लग रहा है कि अगर इस बार भी भाजपा की अगुआई वाली एनडीए की सरकार बन जाती है तो आने वाले दिनों में कई पार्टियां खत्म ही हो जाएंगी। यही कारण है कि ऐसे दल कुछ मतभेदों को दूर रखते हुए एकजुट होना चाहते हैं।
4. फंडिंग
सत्ता में रहते हुए राजनीतिक दलों को खूब फंडिंग मिलती है। बिना पैसों के राजनीति करना संभव नहीं है। यही कारण है कि राजनीतिक पार्टियों का भविष्य उनके बजट पर भी निर्भर करता है। 2014 के बाद से विपक्षी दलों के फंड में बड़ी तेजी से गिरावट हुई है। अगर इस बार भी भाजपा की अगुआई वाली एनडीए की सरकार बन जाती है तो कई दल कंगाल ही हो जाएंगे। इससे बचने के लिए भी सारे दल एक-दूसरे से हाथ मिलाना चाहते हैं।
5. जातीय सियासत पर संकट
भाजपा ने जाति का बैरियर भी तोड़ दिया है। पहले अलग-अलग जाति की अलग-अलग पार्टियां होती थीं। अब भाजपा ने सभी में सेंध लगा दिया है। फिर वह दलित, आदिवासी, महादलित हो या पिछड़े और सवर्ण वोटर्स। हर वर्ग में भाजपा ने अच्छी पकड़ बनानी शुरू कर दी है। इसके चलते जाति के आधार पर राजनीति करने वाले दल कमजोर होने लगे हैं। ये नहीं चाहते हैं कि उनका कोर वोटर्स उनसे दूर हो। उन वोटर्स को फिर से अपने पाले में करने के लिए विपक्ष एकलुट होने को तैयार हैं।