16 जून, 2013 यानी ठीक 10 साल पहले उत्तराखंड में बादल फटने से आई विनाशकारी बाढ़ ने कई शहरों और गांवों को तबाह कर दिया.
केदारनाथ – 15-16 जून 2013 से केदारनाथ घाटी में भारी बारिश शुरू हुई। ऐसी बारिश वहां के लोगों ने पहले कभी नहीं देखी थी। 16 जून को भी बारिश जारी रही। इस दौरान केदारनाथ के आसपास के पहाड़ों पर झीलों में भारी मात्रा में पानी भर गया था और ग्लेशियर भी पिघलने लगे थे। केदारनाथ में तीर्थयात्रियों, पुजारियों समेत अन्य लोगों की भारी भीड़ थी और वे बारिश रुकने का इंतजार कर रहे थे लेकिन किसी को यह खबर नहीं थी कि 16 जून की शाम में क्या होनेवाला है?
कयामत की रात से अंजान थे लोग केदारनाथ में शाम ढल चुकी थी और बारिश जारी थी। केदारनाथ के आसपास बहने वाली नदियां मंदाकिनी और सरस्वती उफान पर थी। खासकर मंदाकिनी की गर्जना डराने वाली थी। इसका स्रोत केदारनाथ के पास के पहाड़ पर चोराबाड़ी झील थी जिसमें पानी लबालब भर गया था। केदारनाथ के आसपास पहाड़ों पर बादल फट रहे थे। सभी तीर्थयात्री केदारनाथ मंदिर के आसपास बने होटलों और धर्मशालाओं में आराम कर रहे थे। पुजारी समेत अन्य स्थानीय लोग भी इस बात से अंजान थे कि केदारनाथ के लिए वो रात भारी गुजरने वाली थी।
करीब 8.30 बजे केदारनाथ में पहली बार मौत के भयानक मंजर से लोगों का सामना हुआ। लैंडस्लाइड के मलबे के साथ आया पहला सैलाब दो दिनों से पहाड़ों पर हो रही भारी बारिश और बादल फटने से लैंडस्लाइड शुरू हो गए। केदारनाथ में 16 जून 2013 की रात में करीब 8.30 बजे लैंडस्लाइड हुआ और मलबे के साथ पहाड़ों में जमा भारी मात्रा में पानी तेज रफ्तार से केदारनाथ घाटी की तरफ बढ़ा और बस्ती को छूता हुआ गुजरा। जो बह गए, सो बह गए लेकिन इसमें कई लोग जो बाल-बाल बच गए वो जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। जहां बाबा केदारनाथ की जय की गूंज थी, वहां रात के सन्नाटे में लोगों की चीखें गूंज रही थी। जान बचाने के लिए लोग होटलों व धर्मशालाओं की तरफ भागे।
केदारनाथ मंदिर के आसपास बसा शहर चारों तरफ से गर्जना करती नदियों से घिर गया था। मौत के खौफ से लोग कुछ समझ नहीं पा रहे थे और वे सुबह का इंतजार करने लगे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि उन्होंने सैलाब का पहला आघात झेला है, सुबह इससे भी ज्यादा भयानक कुछ होने वाला है। सुबह 6.30 बजे आया महाप्रलय रातभर केदारनाथ बस्ती के आसपास से गर्जना के साथ नदियां बहती रहीं। लोग बचने के रास्ते खोज रहे थे। वे दहशत से भरे थे लेकिन केदारनाथ में फंसे ये लोग बारिश रुकने के इंंतजार में थे। रातभर लगातार बारिश होती रही। मंदिर, होटलों, रेस्ट हाउसों में जाग रहे लोग यही सोच रहे थे कि अब पता नहीं क्या होने वाला है? अचानक मंदाकिनी की भयानक गर्जना के बीच चोराबाड़ी ताल के एक तरफ के पत्थर का तटबंध जोरदार आवाज के साथ टूटा और कयामत आ गई। आ गया…आ गया सैलाब…कहकर लोग भागने लगे। ताल का सारा पानी, मलबा, पत्थर, बड़ी-बड़ी चट्टानों के साथ तेज गति से बहता हुआ केदारनाथ बस्ती को तहस-नहस करता हुआ होटलों, घरों, रेस्ट हाउसों, दुकानों को मिट्टी में मिलाता निकल गया और पीछे सैकड़ों मौतों का ऐसा मंजर छोड़ गया जिसको देखने वालों की रूह कांप गई।
पानी के साथ बह गई केदारनाथ बस्ती करीब 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से 100 मीटर ऊंची पानी की लहरों में बड़ी-बड़ी चट्टानें थी। इस सैलाब में कई रेस्ट हाउस, होटल बह गए और यह अपने साथ कई लोगों को बहाकर ले गया। केदारनाथ बस्ती में किस्मत से जिंदा बच गए लोगों के कई रिश्तेदार सैलाब में बह गए थे। इनमें से कइयों का आज तक कोई पता नहीं चला। कुछ मिनटों में ही केदारनाथ बस्ती में मकानों की जगह पत्थरों का मलबा था। इंसानों की लाशें जहां-तहां बिखरी थीं। चोराबाड़ी ताल से निकले तबाही के सैलाब के रास्ते में जो भी गांव आया, वहां भारी तबाही हुई। रामबाड़ा और गौरीकुंड के इलाकों में जान-माल का भारी नुकसान हुआ। इस तबाही में केदारनाथ मंदिर बच गया जिसके पीछे एक बहुत बड़ी चट्टान आकर रुक गई और सैलाब किनारे से गुजर गया।
18 जून को मौसम हुआ साफ तो केदारनाथ बना था कब्रिस्तान पांच से दस मिनट में केदारनाथ मिट्टी में मिल गया। आंखों के सामने जिगर के टुकड़े बहते चले गए और सैलाब में ओझल हो गए। एक-दूसरे को बचाने के लिए वे हाथ पकड़े हुए थे लेकिन सैलाब की ताकत उनके रिश्तों की डोर की ताकत से कहीं ज्यादा थी। चंद मिनटों में सैंकड़ों परिवार उजड़ गए। एक-एक परिवार को कई-कई लोग लापता हो गए। सैलाब मौत का तांडव करता गुजरा लेकिन बारिश थमी नहीं। केदारनाथ में बचे-खुचे जिंदा लोग बारिश रुकने और मौसम साफ होने का इंतजार करने लगे। खाना-पानी कुछ नहीं था। 17 जून 2013 की सुबह में सैलाब आया और दिन-रात बारिश होती रही। 18 जून को जब बारिश थमी और मौसम साफ हुआ केदारनाथ शहर से कब्रिस्तान बन चुका था जिसमें जहां-तहां लाशों के चिथड़े पड़े थे। कहीं सर था तो कहीं धड़ था, किसी के बदन पर कपड़ा नहीं था। जगह-जगह पत्थरों और खंडहरों में लाशें फंसी थीं। जिन लाशों का पता नहीं चल पाया उनके रिश्तेदार आज भी उनके लौट आने का इंतजार कर रहे हैं। केदारनाथ त्रासदी अपने पीछे ऐसी अनेक दर्दनाक जिंदगियां और कहानियां छोड़ गया जिसे पढ़कर आज भी इंसान रो देता है।
16 जून 2013 की वह रात कुदरत के कहर की ऐसी रात है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। पांच साल गुजर गए लेकिन उस तबाही के मंजर देखकर आज भी लोग दहशत से भर जाते हैं। तबाही के बाद की तस्वीर से सहम गए लोग केदारनाथ में हुई तबाही की खबर से देश सन्न रह गया। सैटेलाइट से जारी तस्वीर में केदारनाथ का नजारा डरा देने वाला था। जहां पूरी बस्ती बसी थी, वहां सिर्फ मलबे नजर आ रहे थे। पांच से दस मिनट के अंदर केदारनाथ इंसानों की बस्ती से लाशों का कब्रिस्तान बन गया था। तबाही के बाद राहत और बचाव काम काफी दिनों तक चला। एनडीआरएफ, भारतीय सेना और वायु सेना ने हजारों लोगों को बचाया। इस महाप्रलय में कितने लोग मारे गए इसका सही-सही आंकलन नहीं हो पाया है। बताया जाता है कि इसमें 12 हजार से ज्यादा लोग मारे गए। सरकारी आंकड़े 4000 से ज्यादा मौतों की गवाही देते हैं। त्रासदी के महीनों बाद केदारनाथ के आसपास के इलाकों से मिले कंकाल भी बताते हैं कि प्रलय का वो मंजर कितना भयानक था।