Home मध्यप्रदेश हबीब तनवीर – खास होते हुए भी बेहद आम थे आम आदमी...

हबीब तनवीर – खास होते हुए भी बेहद आम थे आम आदमी के नाटककार हबीब तनवीर

36
0

भोपाल – ‘लोगों का, लोगों के द्वारा, लोगों के लिए’ लोकतंत्र की इस अवधारणा भारतीय रंगकर्म में धरातल पर अगर किसी ने साकार या प्रतिपादित किया, तो वो थे हबीब तनवीर. यूं तो उनसे मेरी कई बार मुलाकातें, बातचीत और सलाम-दुआ हुई, लेकिन वो दिन मेरी जिंदगी का सबसे खास मौका था, जब भारत भवन में 1987 में एक नाट्य कार्यशाला के दौरान अलखनंदन के निर्देशन में तैयार हबीब जी के लिखे नाटक ‘आगरा बाजार’ का मंचन हुआ. मैं भी उस नाटक का एक अहम कलाकार था. मंचन के बाद हबीब जी मंच पर आए और अभिनय के लिए मेरी पीठ थपथपाई और बोले-अच्छा किरदार निभाया. उस वक्त मैं हबीब जी जैसी शख्सियत से शाबासी पाकर फूला नहीं समाया था.

भारतीय रंगकर्म की नई और खास परिभाषा गढ़ने और रास्ता दिखाने वाले हबीब तनवीर की आज 14वीं पुण्यतिथि है. आज ही के दिन यानी 8 जून 2009 में 85 बरस की आयु में उन्होंने भोपाल में आखिरी सांस ली थी. नया थियेटर के बैनर तले तैयार मैंने उनके कई नाटक देखे और पाया कि वास्तव में वह आम आदमी के नाटककार थे. ऐसे नाटककार, जिन्होंने रंगकर्म में लोकशैली, लोक परंपराओं को समाहित किया. उनके नाटकों के किरदार भी आमलोग होते थे, आम लोग ही उन्हें निभाते थे और आम लोगों की जिंदगी और उनकी समस्याएं होती थीं. आम आदमी के लिए उन्होंने ही रंगकर्म का दरवाजा खोला.

बेहद कम खर्च में तैयार होते थे हबीब जी के नाटक
वह केवल नाटक करने के लिए ही नाटक नहीं करते थे, बल्कि उनके रंगकर्म का मकसद सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और आर्थिक चेतना जगाना भी था. उनके नाटक लोगों की जिंदगी, उनके संघर्ष, उनके सपने और उनकी आकांक्षाओं के अलावा सिस्टम की विद्रूपताओं का आईना भी होते थे. उनके नाटक बेहद कम खर्च में किए जाने वाले होते थे, न कोई भव्य सेट, न महंगी पोशाकें, न महंगी रंगसामग्री. वह मानते थे कि आमआदमी तक ज्यादा से नाटक की पहुंच हो, इसके लिए जरूरी है कि ऐसी सामग्री का इस्तेमाल हो,जो आसानी से जुटाई जा सकें.

ब्रेख्त से प्रभावित, लेकिन प्रस्तुति का अनूठा अंदाज
देश के पहले जनवादी शायर नजीर अकबराबादी की नज्मों को पिरोकर ‘आगरा बाजार‘ जैसा महान नाटक तैयार करने वाले हबीब तनवीर जी के अन्य नाटक वह चाहे ‘मिट्टी की गाड़ी’ हो या ‘गांव का नाम ससुराल, मोर नाम दामाद’, ‘चरनदास चोर’ हो या ‘हिरमा की अमर कहानी’ जैसे नाटक मुझे हमेशा जर्मनी के नाटककार बर्तोल्त ब्रेख्त की थ्योरी ऑफ एलियनेशन यानी अलगाव का सिद्धांत से प्रभावित दिखे. जहां दर्शक नाटक के साथ बह जाने या एकात्म हुए बिना यह जानता है कि जो वह देख रहा है वह पहले हुई कोई घटना है, नाटक उसे विचार की प्रक्रिया का अवसर देता है, चेतना को विकसित करता है.