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बस्तर टाइगर का बेटा बोला- लखमा जी बचकर आते हैं, नक्सलियों का ऐसा क्या प्रेम; बचे लोगों का हो नार्को

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छविंद्र कर्मा ने सवाल उठाते हुए कहा, कोंटा से कवासी लखमा जी विधायक हैं। उनके विधानसभा क्षेत्र से यात्रा निकाल रही थी। ऐसे में उनकी जवाबदारी है। लखमा जी आप बचके आ जाते हैं। बाकी लोग शहीद होते हैं। क्यों भैया! नक्सलियों का ऐसा क्या प्रेम है लखमा जी से। 

छत्तीसगढ़ में झीरम घाटी नरसंहार के गुरुवार को 10 साल पूरे हो गए हैं। इस सबसे बड़े नक्सली हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस की प्रथम पंक्ति के कई नेता मारे गए। कई जवान शहीद हुए, लेकिन इसकी जांच और उस पर सियासत अभी तक बेनतीजा है। ऐसे में हमले में शहीद कांग्रेस नेता और बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा के बेटे छविंद्र कर्मा ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। उन्होंने हमले में जीवित बचे नेताओं का नार्को टेस्ट कराने की मांग की है। साथ ही कहा है कि नक्सलियों का ऐसा क्या प्रेम, जो कवासी लखमा जी बचकर आ जाते हैं। 

हमले में बचे कांग्रेस लीडर्स का हो टेस्ट
दंतेवाड़ा में पत्रकारों से चर्चा करते हुए छविंद्र कर्मा ने अपनी ही पार्टी के नेताओं को कटघरे में खड़ा किया है। छविंद्र कर्मा ने कहा कि प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा, तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी के पुत्र व जेसीसीजे के नेता अमित जोगी पर सवाल उठाए हैं। साथ ही कहा कि, इन सभी लोगों और आईजी मुकेश गुप्ता, दोनों थानों के तत्कालीन प्रभारी व हमले में बचे लोगों का नार्को टेस्ट कराया जाना चाहिए। जो कांग्रेस लीडर्स थे उनका होना चाहिए। 

अजीत जोगी और अमित जोगी पर आरोप
छविंद्र कर्मा ने आरोप लगाया कि, घटना से कुछ समय पहले अमित जोगी की अंदर नक्सलियों के साथ बैठक की सूचना हमको मिली थी। मेरे फादर महेंद्र कर्मा, पटेल साहब सारे लोग जानते थे कि अमित कोंटा एरिया में लगातार घूम रहा है। जब परिवर्तन यात्रा हमारी हो रही थी। उन्होंने कहा कि, अजीत जोगी जी, खुले मंच से पिता जी का, विद्याचरण जी का, बाकी सभी बड़े नेताओं का नाम बता रहे थे। जबकि उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया। आरोप लगाया कि भीड़ के सामने नेताओं की पहचान करा रहे थे। 

कठघरे में आबाकरी मंत्री
कर्मा ने सवाल उठाते हुए कहा, कोंटा से कवासी लखमा जी विधायक हैं। उनके विधानसभा क्षेत्र से यात्रा निकाल रही थी। ऐसे में उनकी जवाबदारी है। लखमा जी आप बचके आ जाते हैं। बाकी लोग शहीद होते हैं। क्यों भैया! नक्सलियों का ऐसा क्या प्रेम है लखमा जी से। भई, अगर लखमा जी की जगह छविंद्र कर्मा भी होता, बाकी लोग मारे जाते और छविंद्र कर्मा बच जाता तो सवाल उठता। मेरे फादर नहीं रहे। मेरा नुकसान हुआ। मैं अभी भी डंके की चोट पर कहता हूं कि नार्को होना चाहिए। बिल्कुल होना चाहिए। लखमा जी का होना चाहिए।