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जम्मू कश्मीर में 34 लाख करोड़ के लिथियम ख़ज़ाने की होगी नीलामी…

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इतनी भारी मात्रा में लिथियम मिलने से नॉन फेरस मेटल के क्षेत्र में अब भारत की निर्भरता दूसरे देशों से कम होने की उम्मीद है। ऐसे में सवाल है कि आखिर इससे देश को कितना फायदा मिलेगा? हमें और आपको इसका क्या लाभ मिलेगा? चीन इससे क्यों परेशान हो रहा है? आइए जानते हैं…. 

 नई दिल्ली – भारत के हाथ एक ऐसा खजाना लगा है, जो पूरे देश की तकदीर बदलने की ताकत रखता है। ये खजाना है ‘लिथियम’ का। जम्मू कश्मीर में लिथियम का भंडार मिला है। इसकी क्षमता 59 लाख टन है। इसे ‘व्हाइट गोल्ड’ भी कहा जाता है। भारत में पहली बार इतनी बड़ी मात्रा में लीथियम मिला है।

विशेषज्ञों के अनुसार, यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा लिथियम भंडार हो सकता है। इतनी भारी मात्रा में लिथियम मिलने से नॉन फेरस मेटल के क्षेत्र में अब भारत की निर्भरता दूसरे देशों से कम होने की उम्मीद है। ऐसे में सवाल है कि आखिर इससे देश को कितना फायदा मिलेगा? हमें और आपको इसका क्या लाभ मिलेगा? चीन इससे क्यों परेशान हो रहा है? आइए जानते हैं…. 

पहले जान लीजिए पूरा मामला क्या है? 
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के विशेषज्ञ तीन साल से जम्मू कश्मीर के रियासी जिले के सलाल कोटली गांव में सर्वे कर रहे थे। इस दौरान यहां छह हेक्टेयर जमीन में सबसे हल्के खनिज लीथियम का 59 लाख टन भंडार पाया गया। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि लीथियम खनिज भंडार का घनत्व भी बहुत अधिक है। यानी जिस क्षेत्र में यह खनिज पाया गया है, उसमें लीथियम को ज्यादा मात्रा में निकाला जा सकेगा। 

लीथियम की मौजूदगी की पुष्टि होने के बाद अब संभावना जताई जा रही है कि जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर बसे सलाल गांव के पहाड़ों में कई प्रकार के अन्य महत्वपूर्ण खनिज पदार्थ हो भी सकते हैं। कश्मीर में खनन सचिव अमित शर्मा ने बताया कि सामान्यत: लिथियम 220 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) ग्रेड पर मिलता है, लेकिन माता वैष्णो देवी तीर्थ की पहाड़ियों के नीचे मिला लीथियम 500 पीपीएम से ज्यादा ग्रेड का है।  

आखिर ये लिथीयम है क्या?  
लिथियम एक तरह का रेअर एलिमेंट है। इसका इस्तेमाल मोबाइल-लैपटॉप, इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) समेत दूसरे चार्जेबल बैटरियों को बनाने में किया जाता है। लिथियम (Li) एक नरम और चाँदी जैसी-सफेद धातु होता है। लिथियम का प्रयोग कई उत्पादों में किया जाता है और इसका भंडार मिलना भारत के लिए बड़ी क्रांति साबित हो सकती है। 

लिथियम का इस्तेमाल थर्मोन्यूक्लियर रिएक्शन में भी किया जाता है। लिथियम का इस्तेमाल एल्युमीनियम और मैग्नीशियम के साथ मिश्र धातु बनाने के साथ ही मिश्र धातुओं की क्षमता बढ़ाने में भी किया जाता है। मैग्नीशियम-लिथियम मिश्र धातु का इस्तेमाल कवच बनाने के लिए भी किया जाता है। एल्युमीनियम-लिथियम मिश्र धातु का इस्तेमाल साइकिलों के फ्रेम , एयरक्राफ्ट और हाई-स्पीड ट्रेनों में भी किया जाता है। मूड स्विंग और बाइपोलर डिसऑर्डर जैसी बीमारियों के इलाज में भी लिथियम का इस्तेमाल किया जाता है।   

अब आगे क्या? 
इसे समझने के लिए हमने कश्मीर में खनन सचिव अमित शर्मा से बात की। उन्होंने कहा, ‘जीएसआई ने लीथियम की तलाश के लिए जी-3 स्तर के अध्ययन करवाए हैं। अब जी-2 और जी-1 स्तर के सर्वे होंगे। लीथियम उत्खनन में कितना समय लगेगा, यह इन सर्वे पर ही निर्भर करता है। विभाग की कोशिश है कि जल्द उत्खनन के लिए बचे हुए काम समय से पूरे हों।’ 

लिथियम का भंडार मिलने से क्या होगा?

  • फिलहाल भारत 96 प्रतिशत लिथियम का आयात चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, चिली, चीन, अर्जेंटीना और बोलीविया से करता है। इतने बड़े पैमाने पर लिथियम के निर्यात से भारत की काफी विदेशी मुद्रा खर्च होती है। लिथियम भंडार भारत में मिलने से भारत की विदेशी मुद्रा खर्च होने से तो बचेगी ही। साथ ही भारत लिथियम का निर्यात कर अपना राजस्व भी बढ़ा सकेगा। 
  • लिथियम का सबसे बड़ा भंडार चिली में 93 लाख टन का है। ऑस्ट्रेलिया में 63 लाख टन, अर्जेंटीना में 27 लाख टन और चीन में 20 लाख टन लिथियम उत्पाद किया जाता है। भारत चीन से सबसे ज्यादा लिथियम आयात करता है। जो पूरे आयात का 80 प्रतिशत है। साल 2020 -21 के बीच भारत ने लिथियम ऑयन बैटरी के आयात पर 8,984 करोड़ रुपये खर्च किए थे। वहीं साल 2021-22 में लिथियम के आयात पर 13,838 करोड़ रुपये खर्च किए थे।  
  • मौजूदा समय में एक टन लिथियम की कीमत करीब 57.36 लाख रुपये है। भारत में 59 लाख टन लिथियम का भंडार मिला है। ऐसे में आज के समय इसकी कीमत लगभग 3,384 अरब रुपये होगी। बता दें कि कमोडिटी मार्केट हर दिन मेटल की कीमत तय करता है। 
  • लिथियम का भंडार मिलने से देश में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिकल व्हीकल, एनर्जी, बैटरी बनाने वाली विदेशी कंपनियां भी आएंगी। इससे देश में ही रोजगार सृजन होगा।
  • भारत ने साल 2070 तक अपने उत्सर्जन को पूरी तरह से इनवायरमेंट फ्रेंडली करने का संकल्प लिया है। इसके लिए इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बैटरी में लिथियम का एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप होना जरूरी है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के मुताबिक देश को साल 2030 तक 27 GW ग्रिड-स्केल बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम की जरूरत होगी, जिसके लिये भारी मात्रा में लिथियम की जरूरत पड़ेगी। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी यानी IEA का अनुमान है कि साल  2025 तक दुनिया को लिथियम की कमी का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में भारत में लिथियम का भंडार मिलना पूरी दुनिया के लिए एक अच्छी खुशखबरी है। 

कुछ और सवालों के जवाब भी जान लीजिए…

1. क्या लिथियम भंडार मिलने से बैटरियों की कीमत पर असर पड़ेगा? 
एनर्जी सेक्टर की जानकारी रखने वाले प्रो. मनोज शुक्ला कहते हैं, ‘अगर भारत अपने भंडार से जरूरत के मुताबिक लिथियम का उत्पादन कर लेता है तो जाहिर है कि बैटरियों के दाम कम होंगे। साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों के दामों में भी कमी आ सकती है।’ 

2. जलवायु परिवर्तन पर कितना असर होगा? 
प्रो. शुक्ला के अनुसार, ‘जलवायु परिवर्तन को देखते हुए ही पूरी दुनिया में प्रदूषण कम करने की दिशा में काम हो रहा है। इसके चलते इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग तेजी से बढ़ रही है। भारत में  भी इसपर जोर दिया जा रहा है। इलेक्ट्रिक वाहनों में लिथियम आयन बैटरियों का ही इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में पूरी दुनिया को लिथियम बैटरियों से बड़ी उम्मीदें हैं। अगर भारत जरूरत के जितना लिथियम उत्पाद कर लेता है और दूसरे देशों में निर्यात करने लगे तो पूरी दुनिया में बढ़ रहा प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को काबू किया जा सकता है।’