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मां चिटमिट्टीन के दर्शन के लिए पहुंचे श्रद्धालु, मेले में दिखा आदिवासी संस्कृति और परंपरा का संगम

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सुकमा – जिला मुख्यालय से 9 किमी दूर रामाराम गांव में मंगलवार को ऐतिहासिक एवं दक्षिण बस्तर के प्रसिद्ध मेला लगा। यहां मां चिटमिट्टीन देवी के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। सुकमा राजपरिवार के सदस्यों द्वारा सबसे पहले सुबह देवी मां की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की गई। इसके बाद लोगों द्वारा माई के दर्शन व पूजा-अर्चना करने का सिलसिला शुरू हुआ, जो देर शाम तक जारी रहा। दोपहर बाद श्रद्धालुओं की भीड़ ऐसी उमड़ी की मंदिर परिसर व उसके बाहर पैर रखने के लिए जगह नहीं थी। जिले के गांव-गांव से देवी-देवता, लाट, भैरम, सिरहा, मांझी, मुखिया, चालकी एवं पुजारी रामाराम मेले में पहुंचे। दोपहर 3 बजे तक 23 गांव से देवी देवता और लाट भैरम शामिल हुए।

माई की डोली आज होगी वापस, सुकमा में लगेगा मेला
सोमवार शाम को नगर के राजवाड़ा स्थित मंदिर पूजा विधान के बाद गाजे-बाजे व आतिशबाजी के साथ मां चिटमिट्टीन देवी की छत्र व डोली रामाराम मेले में शामिल होने के लिए राजवाड़ा स्थित मंदिर से रवाना हुई थी। मंगलवार को रामाराम मेला लगने के बाद आज सुबह माईंजी की डोली व छत्र की वापसी होगी। यहां राजवाड़ा मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद यहां मेला लगेगा।

1834 में हुई थी स्थापना
बताया जाता है कि सन 1834 में मंदिर की स्थापना सुकमा के तत्कालीन शासक रामराज देव ने की थी। रामाराम के पास होने की कारण देवी रामारामिन देवी के नाम से सहज रूप से प्रसिद्ध है। यह प्राचीन मंदिर पहाड़ी की तलहटी पर स्थित है। पहाड़ी के ऊपर आज भी करीब 400—500 वर्ष पुराने भग्नावशेष विद्यमान है। मान्यता यह भी है कि श्री राम अपने वनवास काल के दौरान रामाराम मंदिर में भू—देवी की आराधना की थी। इसलिए राज्य सरकार ने रामाराम मंदिर को राम वन गमन पथ प्रोजेक्ट में शामिल कर मंदिर को संवारने का काम कर रही है।

मंदिर से जुड़ी कहानी
रामारामिन देवी मां चिटमिट्टीन माता मंदिर से एक प्राचीन कहानी भी जुड़ी है। देवी मां के प्रति गहरी आस्था रखने वालों का मानना है कि प्राचीन काल में वर्तमान की तरह ही वार्षिक पूजा और मेला इत्यादि का आयोजन होता था। पूजा के बाद रात्रि विश्राम रामाराम ग्राम होता था। एक बार जल्दबाजी में शाम में पुजारी पूजन के बाद स्वर्ण कलश वापस रामाराम ले जाना भूल गया। रात्रि में उसे अचानक याद आया और वह तत्काल पहाड़ी पर स्थित पूजा स्थल पर पहुंचा। तब उसने देखा कि दो सिंह दोनों ओर विराजमान हैं एवं बली का रसास्वादन कर रहे हैं। तभी उसे देवी के दर्शन हुए। देवी मां ने गुस्से से उसे इतनी रात में आने का कारण पूछा तो उसने आने का कारण बताया। इस दौरान माता ने कहा कि मेरे रहते हुए तुम्हें कलश के विषय में चिंता करने की आवश्यकता कैसे महसूस हो गई और इतना कहते ही देवी ने कलश पर अपने चरण से प्रहार किया। कलश लुढ़कता हुआ पहाड़ी के नीचे आ पहुंचा और तब से उसी स्थान पर देवी का नया मंदिर का निर्माण किया गया जो मंदिर के वर्तमान स्वरूप में विद्यमान है।

आस्था का केन्द्र है रामाराम – कवासी लखमा
प्रदेश के कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा दोपहर 3 बजे रामाराम मेला पहुंचे। यहां उन्होंने सबसे पहले माता चिटमिट्टीन की पूजा व आरती कर प्रदेश की खुशहाली व शांति की प्रार्थना की। उसके बाद मंदिर के प्रांगण में पूजा कर रहे है पुजारियों से मुलाकात की और बाहर से आऐ देवी-देवताओं के दर्शन किए। साथ ही राजपरिवार के सदस्य व मंदिर कमेटी के ट्रस्टी मनोज देव व किरण देव से चर्चा की। मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि रामाराम जिले का सबसे बड़ा मेला होता है और ये आस्था का केन्द्र है। आज के बाद जिले में मेलों का आयोजन शुरू होता है। प्रदेश सरकार द्वारा यहां सौदर्यं कार्य कराये जा रहे हैं। जिससे रामाराम और खूबसूरत हो गया है।au