नई दिल्ली – भूकंप की तीव्रता इतनी थी कि पांच मंजिला इमारत ही ढह गई. ये भूकंप धरती की प्लेटें हिलने भर से आ गया था.
कल्पना कीजिए कि यदि पृथ्वी ने अपनी धुरी पर घूमना ही बंद कर दिया तो क्या होगा? यकीनन ऐसा जलजला आएगा कि सब कुछ नष्ट हो जाएगा. चीन के वैज्ञानिकों ने रिसर्च में एक ऐसा ही चौंकाने वाला खुलासा किया है. शोध में सामने आया है कि पृथ्वी का केंद्र पृथ्वी के घूमने की दिशा से विपरीत घूम रहा है. खास बात ये है कि विपरीत दिशा में जाने से पहले ये कुछ देर के लिए थमा भी था.
रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों का दावा है कि पृथ्वी की ये आंतरिक कोर दशकों से एक ही दिशा में घूमते हुए थक चुकी है और अब ये धीरे-धीरे अपनी दिशा बदल रही है. इस रिसर्च को नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित किया गया है.
भूकंप के आधार पर किया गया शोध
चीन के पीकिंग विश्वविद्यालय के शियाओडोंग सोंग और झी यांग ने यह शोध किया है. इसके लिए उन्होंने 1960 से लेकर अब तक आए भूकंपों के आधार पर शोध किया. इस रिसर्च में सामने आया कि धरती की तीन परतें हैं, इसमें सबसे नीची परत ने उल्टी दिशा में घूमना शुरू कर दिया है. वैज्ञानिकों के मुताबिक यह एक झूले की तरह है जो आगे और पीछे की दिशा में घूमता है और हर 70 साल में अपनी दिशा बदलता है. अनहोनी का संकेत ये है कि अपनी दिशा बदलने से पहले धरती का ये केंद्र कुछ पल के लिए थम भी गया था. समाचार एजेंसी AFP से बातचीत में वैज्ञानिकों ने बताया कि 2009 के आसपास धरती के इस केंद्र ने कुछ देर या दिन के लिए घूमना बंद कर दिया था.
भूकंप-ज्वालामुखी से बदलाव का संकेत देती है पृथ्वी
शोधकर्ताओं के मुताबिक धरती के भीतर होने वाली हलचलों को तब तक महसूस नहीं किया जा सकता, जब तक धरती खुद इसके बारे में जानकारी न दे. वैज्ञानिकों के मुताबिक कई बार ये बदलाव भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी के तौर पर नजर आते हैं. शोधकर्ताओं के मुताबिक धरती के केंद्र के घूमने का एक चक्र तकरीबन सात दशक में पूरा होता है. हर बार बदलाव के बारे में धरती ज्वालामुखी और भूकंप से ही संकेत देती है, हालांकि धरती के अलग-अलग स्थानों पर सतह तक आने के बीच इन संकेतों के ट्रैवल टाइम में कई माह या कई वर्ष का अंतर भी हो सकता है.
धरती से 3 से 4 हजार किमी अंदर है केंद्र
तकरीबन एक दशक पहले ही वैज्ञानिक शियोडोंग सांग और उनके फेलो पॉल रिचर्ड ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी में किए गए शोध में इस बात की पुष्टि की थी की धतरी का केंद्र सतह से तकरीबन 3 से 4 हजार किमी नीचे है जो आंतरिक रूप से किसी भी दिशा में घूम सकता है. इस बारे में पता लगाने के लिए साउथ अटलांटिक और अलास्का में 1967 से 1995 के बीच आए भूकंपों को आधार बनाया गया था. इस शोध में भी वैज्ञानिकों ने पाया कि सारे भूकंपों के उत्पन्न होने का केंद्र एक ही था, लेकिन सतह तक आने में उनका ट्रैवल टाइम अलग हो गया था. शोध में यह भी सामने आया था कि धरती का ये केंद्र तकरीबन 7 हजार किमी तक चौड़ा है जो चारों तरफ ठोस मेटल के कवर में है. वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती के केंद्र का दिशा परिवर्तन का संकेत देना खतरनाक है, हालांकि सीधे तौर पर इससे सिर्फ दिन की लंबाई प्रभावित होती है. आने वाले समय में धरती को इससे क्या खतरे हो सकते हैं इस बारे में पता लगाया जा रहा है.
… तो मच जाएगी तबाही
साइंस जर्नल में कुछ महीनोंं पहले प्रकाशित हुए एक अन्य शोध में धरती का केंद्र कमजोर होने के बारे में बताया गया था. इस शोध के मुताबिक धरती के केंद्र में ही मेग्नेटिक फील्ड बनी है जो धरती का गुरुत्वाकर्षण बढ़ाती है. यदि धरती की कोर खत्म हो जाएगी तो धरती की गुरुत्व शक्ति प्रभावित होगी. यदि ऐसा हुआ तो वायुमंडल खत्म हो जाएगा जो धरती से जिंदगी का नामोनिशां भी मिट जाएगा.