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पद्म सम्मान: छत्तीसगढ़ के इन तीन विभूतियों को मिलेगा पद्मश्री अलंकरण, सीएम भूपेश ने ट्वीट कर दी बधाई

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रायपुर – केंद्र सरकार ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर इस बार छत्तीसगढ़ के तीन विभूतियों को पद्मश्री अलंकरण देने की घोषणा की है। इससे प्रदेश में हर तरफ हर्ष की लहर है। प्रदेश के मुखिया सीएम भूपेश बघेल ने ट्वीट कर तीनों विभूतियों बधाई और शुभकामनाएं दी हैं।

सीएम ने ट्वीट कर लिखा कि ‘अपनी काष्ठ कला से पथभ्रष्ट लोगों को मुख्य धारा में जोड़ने वाले कलाकार अजय कुमार मंडावी जी, छत्तीसगढ़ी नाट्य नाच कलाकार डोमार सिंह कुंवर जी, पंडवानी गायिका उषा बारले जी को कला के क्षेत्र में पद्म श्री से सम्मानित किए जाने पर बधाई। छत्तीसगढ़ को आप सब पर गर्व है।

106 लोगों को मिलेगा पद्मश्री 
केंद्र सरकार ने इस साल कुल 106 लोगों को पद्मश्री अलंकरण देने की घोषणा की है। इसमें छत्तीसगढ़ के 3 हस्तियां शामिल हैं, जिन्हें पद्म श्री से नवाजा जाएगा। इसमें कांकेर के अजय कुमार मंडावी,  बालोद जिले के ग्राम लाटा बोड़ के निवासी डोमार सिंह कुंवर और दुर्ग जिले की उषा बारले का चयन किया गया है।

जानें कौन हैं ये तीनों हस्तियां …

डोमार सिंह कुंवर

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश की राष्ट्रपति द्रौपति मुर्मू ने देश को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने पद्म पुरस्कारों की घोषणा की। छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिले के निवासियों के लिए गणतंत्र दिवस की इस पूर्व संध्या ने खुशियों से भर दिया। बालोद जिले के ग्राम लाटा बोड़ के निवासी नृत्य कला के साधक एवं मशहूर कलाकार डोमार सिंह कुंवर को पद्म श्री से सम्मानित करने का ऐलान किया है। इस खबर के बाद से बालोद जिले में हर्ष व्याप्त है। डोमार ने छत्तीसगढ़ की विलुप्त होती नाचा की कला को देश से लेकर विदेशों तक ख्याति दिलाई। इन्होंने 5 हजार से भी ज्यादा मंचन किया है।

12 साल की उम्र में मंच पर उतरे
डोमार सिंह 12 साल की उम्र में ही मंच पर उतर गए थे। उन्होंने लुप्त होते छत्तीसगढ़ी हास्य गम्मत नाचा कला विधा को एक कलाकार 47 साल से परी व डाकू सुल्तान की भूमिका निभाकर जिंदा रखे हुए हैं। बालोद ब्लॉक के ग्राम लाटाबोड़ निवासी 74 साल के डोमार सिंह कुंवर ने नाचा गम्मत को न सिर्फ जीया बल्कि अपने स्कूल से लेकर दिल्ली के मंच पर मंचन किया है। अब नाचा गम्मत और संस्कृति की अनोखी विरासत को छोटे बच्चों को सिखाकर इसे सहेजने का प्रयास कर रहे हैं। डोमार छत्तीसगढ़ के अलावा देशभर में 5 हजार से ज्यादा मंचों पर प्रस्तुति दे चुके हैं। इसके अलावा प्रेरणादायक लोक गीत, पर्यावरण, नशामुक्ति, कुष्ठ उन्मूलन के गीत लिख चुके हैं।

एक्टर, गम्मतिहा के साथ फिल्म डायरेक्टर भी
डोमार सिंह के बारे में स्थानीय लोगों ने बताया कि वे नाचा गम्मत की प्रस्तुति के साथ ही 150 से ज्यादा प्रेरणाप्रद गीत भी लिख चुके हैं। इसके अलावा मन के बात मन म रहिगे जैसी तीन छत्तीसगढ़ी फिल्म का निर्माण और उसमें काम कर चुके हैं। इनके लिखे गाने की प्रस्तुति आकाशवाणी एवं नाचा का प्रसारण बीबीसी लंदन से भी ब्रॉडकास्ट हुआ था।

करते हैं कार्यशाला का आयोजन
डोमार सिंह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में राज्योत्सव, राजिम कुंभ सहित दिल्ली सहित देश के लगभग हर राज्यों में नाचा की प्रस्तुति दे चुके हैं। अब नाचा लुप्त न हो जाए, इसलिए 10 साल से जगह-जगह कार्यशाला आयोजित कर 100 से अधिक छोटे बच्चों को नाचा व लोकगीत सिखा रहे हैं। साथ ही उनके बारीकी और महत्व भी बता रहे हैं। उन्होंने बताया कि जब नाचा की प्रस्तुति करते हैं, तब कार्यक्रम के अंत में सभी को शराबखोरी नहीं करने व अपराध नहीं करने का संकल्प दिलवाते हैं।

अजय कुमार मंडावी

कांकेर जिले के ग्राम गोविंदपुर के रहने वाले अजय कुमार मंडावी ने काष्ठ शिल्प कला में गोंड ट्राईबल कला का समागम किया है। उन्होंने नक्सली क्षेत्र के प्रभावित और भटके हुए लोगों को काष्ठ शिल्प कला से जोड़ते हुए क्षेत्र के 350 से ज्यादा लोगों के जीवन में बदलाव लेकर आने के साथ-साथ लकड़ी की अद्भुत कला से युवाओं को जोड़ा है। युवाओं क हाथ से बंदूक छुड़ाकर छेनी उठाने के लिए प्रेरित करने जैसे कार्यों के लिए मंडावी को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया जाएगा।

कई रचनाएं को लकड़ी पर उकेरा
बीते दिनों लकड़ी पर कलाकारी करते हुए इन्होंने बाइबल, भगवत गीता, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, प्रसिद्ध कवियों की रचनाएं को उकेरने का काम किया। मंडावी का पूरा परिवार आज किसी न किसी कला से जुड़ा हुआ है। कहीं न कहीं उन्हें यह कला विरासत में मिली है। उनके पिता आरती मंडावी मिट्टी की मूर्तियां बनाने का काम करते थे, जबकि उनकी मां सरोज मंडावी पेंटिंग का काम किया करती थीं। इतना ही नहीं उनके भाई विजय मंडावी एक अच्छे अभिनेता व मंच संचालक भी हैं।

200 से अधिक बंदीकाष्ठ  कला में पारंगत 
कांकेर के जेल में 200 से अधिक बंदी आज काष्ठ कला में पारंगत हो चुके हैं, जो अजय कुमार मंडावी की मेहनत है। आज उस क्षेत्र के बंदी भी इस बात को मानते हैं कि यह कला नहीं बल्कि एक तपस्या है। काष्ठ कला ने बंदी नक्सलियों के विचारों को पूरी तरीके से बदल कर रख दिया है, इसीलिए यह माना जाता है कि सभी बंदूकों की भाषा बोलने वाले आज अपनी कला से कमाई से ऐसे-ऐसे अनाथ और गरीब बच्चों की मदद कर रहे हैं, जो कि आज नक्सल प्रभावित क्षेत्र में रहते हैं।

उषा बारले 
दुर्ग जिले की सुश्री उषा बारले को पंडवानी गायन के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। इन्होंने प्रख्यात पंडवानी गायिका पद्मविभूषण तीजनबाई से पंडवानी का प्रशिक्षण लिया है। बारले न केवल भारत बल्कि लंदन और न्यूयार्क जैसे शहरों में पंडवानी की प्रस्तुति दे चुकी हैं।  बारले का जन्म 2 मई 1968 को भिलाई में हुआ था। उनकी पिता स्व. खाम सिंह जांगड़े और माता माता श्रीमती धनमत बाई हैं। उनका विवाह अमरदास बारले के साथ बाल विवाह 1971 में हुआ। सात वर्ष की उम्र में उन्होंने गुरु मेहत्तरदास बघेलजी से पंडवानी गायन की शिक्षा ली।

खुर्शीपार में दिया पहला कार्यक्रम
बारले ने अपना पहला कार्यक्रम दुर्ग जिले के भिलाई खुर्सीपार में दिया। पदम् विभूषण डा. तीजन बाई से प्रशिक्षण लिया। तपोभूमि गिरौदपुरी धाम में स्वर्ण पदक से 6 बार सम्मानित हो चुकी हैं। उनकी अंतिम इच्छा है कि मंच पर पंडवानी गायन करते हुए उनके प्राण जाए। वो अपनी संस्था की ओर से सेक्टर 1 भिलाई में निशुल्क पंडवानी प्रशिक्षण देती हैं।अमर उजाला