गोपेश्वर – पर्यावरणवादी चंडी प्रसाद भट्ट ने सोमवार को कहा कि भूगर्भीय कारकों के अलावा, जोशीमठ और आसपास के क्षेत्रों में संभावित खतरों के बारे में विशेषज्ञों द्वारा दी गई चेतावनियों पर कार्रवाई करने में क्रमिक सरकारों की विफलता भूमि धँसने के संकट का एक प्रमुख कारण है.
‘चिपको आंदोलन’ से संबद्ध रहे भट्ट ने कहा कि दरकते शहर में संकट से जुड़ी स्थिति की उपग्रह तस्वीरों की मदद से वैज्ञानिक अध्ययन के लिए राज्य सरकार द्वारा एक और प्रयास किया गया है. उन्होंने कहा कि हालांकि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में हिमालय के एक विस्तृत क्षेत्र मानचित्रण और जोशीमठ में गुप्त खतरों की चेतावनी दो दशक पहले राज्य सरकार को दी गई थी.
भट्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेंसी (एनआरएसए) सहित देश के लगभग बारह प्रमुख वैज्ञानिक संगठनों द्वारा सुदूर संवेदन और भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) का उपयोग करके किए गए अध्ययन को 2001 में राज्य सरकार को प्रस्तुत किया गया था.जोशीमठ सहित पूरे चार धाम और मानसरोवर यात्रा मार्गों को कवर करने वाले क्षेत्र का मानचित्रण उस समय देहरादून, टिहरी, उत्तरकाशी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, नैनीताल और चमोली के जिला प्रशासन को भी प्रस्तुत किया गया था.
भट्ट ने कहा कि इस क्षेत्र मानचित्रण रिपोर्ट में जोशीमठ के 124.54 वर्ग किमी क्षेत्र को भूस्खलन की संवेदनशीलता के अनुसार छह भागों में विभाजित किया गया था. उन्होंने कहा कि मानचित्रित क्षेत्र के 99 प्रतिशत से अधिक हिस्से को अलग-अलग श्रेणी में भूस्खलन-संभावित क्षेत्र के रूप में दिखाया गया था.
भट्ट ने बताया कि 39 प्रतिशत क्षेत्र को उच्च जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में, 28 प्रतिशत को मध्यम-जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में, 29 प्रतिशत को कम जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में और शेष क्षेत्र को सबसे कम जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में दिखाया गया था. उन्होंने कहा कि तत्पश्चात् अध्ययन को लेकर देहरादून में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों, विशेषज्ञों, जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक दिवसीय बैठक भी हुई जिसमें संबंधित जिलाधिकारियों ने अध्ययन के आलोक में आवश्यक सुरक्षा उपाय करने पर सहमति व्यक्त की.
रेमन मैग्सेसे, पद्म भूषण और गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित भट्ट ने कहा कि हालांकि कुछ भी नहीं किया गया और चार हजार से अधिक लोगों की जान लेने वाली 2013 केदारनाथ आपदा- ‘हिमालयी सुनामी’ के मद्देनजर अध्ययन पर कार्रवाई नहीं करने के चलते राज्य सरकार को बहुत अधिक आलोचना का सामना करना पड़ा.
उन्होंने कहा, “विशेषज्ञों की चेतावनियों पर कार्रवाई करने में क्रमिक सरकारों की विफलता जोशीमठ संकट की जड़ प्रतीत होती है.” भट्ट ने कहा, “एक के बाद एक अध्ययन तब तक मदद नहीं करेगा जब तक कि सरकारें सुझावों पर कार्रवाई शुरू नहीं करतीं.” आपदाओं के प्रति क्षेत्र की संवेदनशीलता पर सलाहकार के रूप में सरकार के साथ हुई विभिन्न चर्चाओं का हिस्सा रहे भट्ट ने कहा, “अध्ययन के नाम पर एक बार फिर समस्या की अनदेखी की जा रही है.”
उन्होंने कहा, “2001 में प्रस्तुत एनआरएसए की भूस्खलन जोखिम क्षेत्र मानचित्रण और मिश्रा समिति की 1976 की रिपोर्ट, जिसमें मैं भी शामिल था, में जोशीमठ जैसे शहरों और उनके निवासियों को बचाने के लिए अपनाए जाने वाले सुरक्षा उपायों के बारे में पर्याप्त सुझाव शामिल हैं.” भट्ट ने कहा, “कार्रवाई की जरूरत है, सिर्फ एक और अध्ययन की नहीं.”