जैजैपुर – ग्राम घिवरा के नेतराम साहू के निवास में राजेंद्र महाराज के सुपुत्र व्यासपीठ आचार्य देवकृष्ण के श्रीमद्भागवत कथा कहते हुए कहा कि भरत महाराज नदी के किनारे बैठे थे पालकी चलने के लिए भरत जी महाराज उचक उचक के चल रहे थे नीचे ताकि कोई कीड़ा न मर जाये कहारों ने कहा कि नया व्यक्ति उचक उचक के चल रहा है जिसके कारण बैलेंस बिगड़ गया है
राजा राघव सोचते है संगति के कारण पूरा बिगड़ जाता है कभी भी कथा सुनने जाना है तो संगति की इंताजर नही करना चाहिए क्योंकि संगति में ही ध्यान नही रहते है संसार में सबका मन एक नही होता सत्संग में तुम और भगवान ही हो।
पूण्य का संसार मे कोई बटवारा नही होता है मरने पर भी कफ़न साथ नही जाता पुण्यतिथि कह जाता है लोगो को जाने से पहले पूण्य कर लेना चाहिए आत्मा की भार नही होता है शरीर से होता है राजन तुम सत्संग करने जा रहे हो तो पैरो में चलकर जाना चाहिये पालकी पर नही चलना चाहिये मरने की बाद शरीर की किम्मत केवल पच्चीस रुपये की है शरीर की चाबी अगर है तो तुम्हारे मन ही है मन रूपी चाबी को भगवान की द्वार खोल देते है