प.अरविन्द मिश्रा रायपुर – नरक और स्वर्ग यूं तो कर्मों का प्रतिफल है। कुछ लोग नरक और स्वर्ग को कोरी कल्पना मानते हैं, उनका मानना है कि नरक और स्वर्ग व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार इसी पृथ्वी पर अपने जीते-जी भोगना पड़ता है। नरक चतुर्दशी या यम चौदस को यम को खुश करने की मान्यता है। कहते हैं कि प्रातःकाल स्नान कर यम को तर्पण (दान) कर शाम को दीपदान करने से मनुष्य अकाल मृत्यु और नरक में जाने से बच जाता है। यह कुछ ऐसा ही है जैसे यह कहना कि दिवाली पर पटाखे नहीं जलाने से प्रदूषण से मुक्ति मिल जाएगी। नरक में जाने से सिर्फ और सिर्फ आपके कर्म ही आपको बचा सकते हैं।
फिर भी आज नरक चौदस है तो स्वर्ग और नरक को लेकर धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक आख्यानों के बारे में जान लेते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, नरक वह स्थान है जहां पापियों की आत्मा को दंड भोगने के लिए भेजा जाता है। दंड के बाद कर्मानुसार आत्मा दूसरी योनियों में जन्म लेती है।
अब सवाल यह है कि नरक है कहां? कहते हैं कि स्वर्ग धरती के ऊपर है जिसे उर्ध्वलोक कहते हैं। नरक धरती के नीते पाताल लोक में है। इसे अधोलोक भी कहते हैं। मध्य लोक में हमारा ब्रह्मांड है। जो लोग स्वर्ग और नरक के विचार को सत्य मानते हैं, उनकी मान्यता है कि मति से गति तय होती है कि आप अधोलोक में गिरेंगे या उर्ध्वलोक में पहुंचेंगे।
पुराणों के अनुसार जब मनुष्य की मृत्यु होती है और आत्मा शरीर को त्यागती है तो उसे तीन मार्ग मिलते हैं, ये तीन मार्ग हैं-अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति विनाश मार्ग। आत्मा को किस मार्ग पर चलाया जाएगा यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है। अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए होता है, वहीं धूममार्ग पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नरक की यात्रा के लिए है। अब सवाल उठता है कि कौन जाता है उत्पत्ति-विनाश मार्ग पर?
कहते हैं कि महाज्ञानी, महा-आस्तिक, घोर नास्तिक और प्रकांड विद्वानों को भी नरक का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि ज्ञान, विचार आदि से तय नहीं होता है कि आप अच्छे हैं या बुरे। आपकी अच्छाई आपके नैतिक बल में छिपी होती है।
आपकी अच्छाई यम और नियम का पालन करने में निहित है। अच्छे लोगों में ही चेतना का स्तर बढ़ा हुआ होता है और वे देवताओं की नजर में श्रेष्ठ बन जाते हैं। इसीलिए लाखों लोगों के सामने अच्छे होने से भी अच्छा है स्वयं के सामने अच्छा बनना। अच्छा कार्य करने और अच्छा भाव एवं विचार करने से अच्छी गति मिलती है। निरंतर बुरी भावना में रहने वाला व्यक्ति कैसे स्वर्ग जा सकता है भला?
अब सवाल उठता है कि नरक में कौन लोग जाते हैं? मान्यता है कि धर्म, देवता और पितरों का अपमान करने वाले, तामसिक भोजन करने वाले, पापी, मूर्छित, क्रोधी, कामी और अधोगामी गति के व्यक्ति नरक में जाते हैं। पापी आत्मा जीते जी तो नरक झेलती ही है, मरने के बाद भी उसके पाप अनुसार उसे अलग-अलग नरक में कुछ काल तक रहना पड़ता है।
पुराणों में नरक, नरकासुर और नरक चतुर्दशी, नरक पूर्णिमा का वर्णन है। नरकस्था अथवा नरक नदी वैतरणी को कहते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन तेल से मालिश कर स्नान करना चाहिए। इसी तिथि को यम का तर्पण किया जाता है, जो पिता के रहते हुए भी किया जा सकता है। पाताल के नीचे बहुत अधिक जल है और उसके नीचे नरकों की स्थिति बताई गई है। जिनमें पापी जीव गिराए जाते हैं।
श्रीमद्भागवत और मनुस्मृति में नरकों के नामों का उल्लेख है। इनमें प्रमुख निम्न हैं-
1.तमिस्त्र, 2.अंधसिस्त्र, 3.रौवर, 4, महारौवर, 5.कुम्भीपाक, 6.कालसूत्र, 7.आसिपंवन, 8.सकूरमुख, 9.अंधकूप, 10.मिभोजन, 11.संदेश, 12.तप्तसूर्मि, 13.वज्रकंटकशल्मली, 14.वैतरणी, 15.पुयोद, 16.प्राणारोध, 17.विशसन, 18.लालभक्ष, 19.सारमेयादन, 20.अवीचि, और 21.अय:पान, इसके अलावा…. 22.क्षरकर्दम, 23.रक्षोगणभोजन, 24.शूलप्रोत, 25.दंदशूक, 26.अवनिरोधन, 27.पर्यावर्तन और 28.सूचीमुख ये सात (22 से 28) मिलाकर कुल 28 तरह के नरक माने गए हैं जो सभी धरती पर ही बताए जाते हैं। हालांकि कुछ पुराणों में इनकी संख्या 36 तक है।
वायु पुराण और विष्णु पुराण में भी कई नरककुंडों के नाम लिखे हैं- वसाकुंड, तप्तकुंड, सर्पकुंड और चक्रकुंड आदि। इन नरककुंडों की संख्या 86 है। इनमें से सात नरक पृथ्वी के नीचे हैं और बाकी लोक के परे माने गए हैं। उनके नाम हैं- रौरव, शीतस्तप, कालसूत्र, अप्रतिष्ठ, अवीचि, लोकपृष्ठ और अविधेय हैं।
हालांकि नरकों की संख्या पचपन करोड़ है; किन्तु उनमें रौरव से लेकर श्वभोजन तक इक्कीस प्रधान माने गए हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- रौरव, शूकर, रौघ, ताल, विशसन, महाज्वाल, तप्तकुम्भ, लवण, विमोहक, रूधिरान्ध, वैतरणी, कृमिश, कृमिभोजन, असिपत्रवन,कृष्ण, भयंकर, लालभक्ष, पापमय, पूयमह, वहिज्वाल, अधःशिरा, संदर्श, कालसूत्र, तमोमय-अविचि, श्वभोजन और प्रतिभाशून्य अपर अवीचि तथा ऐसे ही और भी भयंकर नर्क हैं।
कुछ ऐसे लोग हैं जिन्होंने मनमाने यज्ञकर्म, त्योहार, उपवास और पूजा-पाठ का अविष्कार कर लिया है तथा जो मनघड़ंत तांत्रिक कर्म भी करते हैं। ऐसे दूषित भावना से तथा शास्त्रविधि के विपरीत यज्ञ आदि कर्म करने वाले पुरुष कृमिश नरक में गिराए जाते हैं। इस प्रकार के शास्त्र निषिद्ध कर्मों के आचरणरूप पापों से पापी सहस्त्रों अत्यंत घोर नरकों में अवश्य गिरते हैं।
बहुत से मनुष्य भोजन करते समय किसी का स्मण नहीं करते और भोजन के नियमों को नहीं मानते हैं जिसका प्रभाव उनके जीवन पर पड़ता है। पुराणों में कहा गया है कि जो देवताओं तथा पितरों का भाग उन्हें अर्पण किए बिना ही अथवा उन्हें अर्पण करने से पहले ही भोजन कर लेता है, वह लालभक्ष नामक नरक में यमदूतों द्वारा गिराया जाता है। *पुरणों अनुसार झूठी गवाही देने वाला मनुष्य रौरव नरक में पड़ता है।
गायों और सन्यासियों को कहीं बंद करके रोक रखने वाला पापी रोध नरक में जाता है। मदिरा पीने वाला शूकर नरक में और नर हत्या करने वाला ताल नरक में गिर जाता है।
गुरु पत्नी के साथ व्यभिचार करने वाला पुरुष तप्तकुम्भ नामक नरक में तड़पाया जाता है।
जो अपने भक्त की हत्या करता है उसे तप्तलोह नरक में तपाया जाता है।
गुरुजनों का अपमान करने वाला पापी महाज्वाल नरक में डाला जाता है।
गरुण पुराण अनुसार वेद शास्त्रों का अपमान करने और उन्हें नष्ट करने वाला लवण नामक नरक में गलाया जाता है।
धर्म मर्यादा का उल्लंघन करने वाला विमोहक नरक में जाता है।
देवताओं से द्वेष रखने वाला मनुष्य कृमिभक्ष नरक में जाता है।
सब जीवों से व्यर्थ बैर रखने वाला तथा छल पूर्वक अस्त्र-शस्त्र का निर्माण करने वाला विशसन नरक में गिराया जाता है।
असत्प्रतिग्रह ग्रहण करने वाला अधोमुख नरक में और अकेले ही मिष्ठान्न ग्रहण करने वाला पूयवह नरक में पड़ता है।
बहुत से लोग जानवरों को पालकर उनके बल पर जीवन यापन करते हैं। बकरा, मुर्गा, कुत्ता, बिल्ली तथा पक्षियों को जीविका के लिए पालने वाला मनुष्य भी पूयवह नरक में पड़ता है।
कुछ लोग दूसरों के प्रति बैर भाव रखते हैं और उनका अहित करने की ही सोचते रहते हैं। पुराणों में कहा गया है कि दूसरों के घर, खेत, घास और अनाज में आग लगाता है, वह रुधिरान्ध नरक में डाला जाता है।
ज्योतिष विद्या का आजकल ज्यादा चल रही है। झूठ बोलकर धंधा करने वाले ज्योतिषियों की तो भरमार हो चली है। पुराणों अनुसार नक्षत्र विद्या तथा नट एवं मल्लों की वृत्ति से जीविका चलाने वाला मनुष्य वैतरणी नामक नरक में जाता है।
धन, ताकत और जवानी में अंधे और उन्मुक्त होकर दूसरों के धन का अपहरण करने वाले पापी को कृष्ण (अंधकार) नामक नरक में गिराया जाता है।
पुराणों अनुसार वृक्षों को काटने वाला मनुष्य असिपत्रवन में जाता है। वृक्षों में भी पीपल, बढ़, नीम, केल, अनार, बिल्व, आम, अशोक, शमी, नारियल, अनार, बांस आदि पवित्र वृक्षों को काटना तो घोर पाप माना गया है।
जो कपटवृत्ति से अपनी आजीविका चलाते हैं, वे सब लोग बहिज्वाल नामक नरक में गिराए जाते हैं।
पराई स्त्री और पराए अन्न का सेवन करने वाला पुरुष संदर्श नरक में डाला जाता है।
जो लोग में सोते हैं तथा वृत का लोप किया करते हैं और जो शरीर के मद से उन्मत्त रहते हैं, वे सभी श्वभोज नामक नरक में गिरते हैं।
जो भगवान् शिव और विष्णु को नहीं मानते, उन्हें अवीचि नरक में गिराया जाता है।
दरअसल मनुष्य अपने कर्मों से ही नरकों में गिरते हैं। जैसी मति वैसी गति, जैसी गति वैसा नरक। नरकों से छुटकारा माने के लिए विद्वान लोग वेदों का पालन करने की सलाह देते हैं। लेकिन सबसे असरदार उपाय यही है कि सत्य और संयम का जीवन जियें, मनोबल ऊंचा रखें ताकि कभी असत्य का सहारा लेने की जरूरत न पड़े। गीता के कर्म सिद्धांत पर चलें। नरक चतुर्दशी या यम चौदस को हम यम को प्रसन्न करने के कितने भी उपाय कर लें, लेकिन यदि जीवन सत्य और संयम का ट्रेक से भटक रहा है तो जीते जी और मरने के बाद भी नरक भोगने के लिए तैयार रहें।