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कश्मीरी पंडितों की संपत्ति पर सरकार खेलेगी दांव, क्या होगा 600 से अधिक संपत्तियों का?

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नई दिल्ली  –  भारत का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर पर सरकार एक अहम फैसला लेने जा रही है। दरअसल, यह फैसला पूरे कश्मीर के लोगों के लिए नहीं लिए बल्कि कश्मीर छोड चुके पंडितों के पक्ष में होगा। एक ओर कश्मीर घाटी से विस्थापित पंडित अपनी अचल संपत्ति सरकार को किराए पर दे सकेंगे इस बात को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय घाटी के बाहर रह रहे पंडितों से इसी महीने से किराए पर संपत्ति लेने की तैयारी में जुट गई है। पहले सरकार द्वारा 692 ऐसे पंडितों की अचल संपत्ति किराए पर लेने पर विचार हो रहा है। तो वहीं आज यानि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में कश्मीरी हिंदुओं और सिखों के पुनर्वास की मांग वाली याचिका पर सुनवाई होना है।

जानकरी के लिए बता दूं कि यह ऐसी संपत्ति है जिन्हें आर्टिकल 370 रद्द करने के बाद कब्जे से मुक्त कराकर असली मालिकों को सौंपा गया है। वहीं गृहमंत्रालय ने बयान देते हुए कहा कि जम्मू और कश्मीर प्रवासी अचल संपत्ति अधिनियम 1997 के तहत, जिलाधिकारी विस्थापितों की अचल संपत्ति के लीगल गार्जियन होते हैं। इस संपत्ति से विस्थापितों को कोई आर्थिक लाभ जैसे कि किराया, पट्टा आदि नहीं मिलता। संपत्ति का फायदा कब्जेधारी को होता रहा है।

जानकारी अनुसार 5 अगस्त 2019 के बाद केंद्र सरकार ने विस्थापितों की अचल संपत्ति को कब्जे से मुक्त कराना शुरू किया। अब तक ऐसी 2414 कनाल यानी 302 एकड़ जमीन कब्जामुक्त करा दी गई है।अब सरकार ने यह योजना बनाई है कि विस्थापित कश्मीरी पंडित अपने मकान या जमीन को सरकार को किराए या पट्टे पर उपयोग के लिए दे सकते हैं। इससे उन्हें आर्थिक लाभ मिलेगा।

 सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को घाटी में कश्मीरी हिंदुओं और सिखों के पुनर्वास की मांग वाली याचिका पर सुनवाई होगी। यह जनहित याचिका एक NGO की ओर से दायर की गई है। इसमें 1990 में हुए नरसंहार की SIT जांच और घाटी छोड़ चुके पंडितों की जनगणना करवाने की भी मांग की गई है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच इस पर सुनवाई करेगी। NGO ‘वी द सिटिजन्स’ ने अधिवक्ता बरुण कुमार सिन्हा के माध्यम से याचिका दायर की है। इसमें उन्होंने केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार से 90 के दशक में केंद्र शासित प्रदेश में हुए नरसंहार के बाद भारत के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले हिंदुओं और सिखों की जनगणना करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने साल 2017 में 1989-90 में कश्मीरी पंडितों की हत्याओं की जांच की मांग वाली पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी। इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। कोर्ट ने आदेश में कहा था कि नरसंहार के 27 साल बाद सबूत जुटाना मुश्किल है। मार्च में दायर नई याचिका में कहा गया कि 33 साल बाद 1984 के सिख दंगों की जांच करवाई जा सकती है तो ऐसा ही इस मामले में भी संभव है।