मुंबई – एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना के युवा नेता आदित्य ठाकरे अब अपनी पार्टी को बचाने में जुट गए हैं। इसके पूर्व उनकी इस बात के लिए आलोचना होती थी कि वे मुंबई में बॉलीवुड सितारों व हस्तियों के साथ व्यस्त रहते हैं, बजाय पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ वक्त बिताने के, लेकिन बदले हालातों में वे पार्टी की बिगड़ी सुधारने में लग गए हैं।
शिंदे खेमे की बगावत के बाद शिवसेना बहुत कमजोर नजर आ रही है। पार्टी पर कब्जे के कानूनी दांवपेच भी जारी हैं। उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। ऐसे में आदित्य ठाकरे शिवसेना का जनाधार फिर मजबूत करने के लिए खासतौर से बागियों के गढ़ों के दौरे कर रहे हैं। बागी शिवसेना विधायकों के इलाकों में दौरे कर वे पार्टी पर ठाकरे परिवार का कब्जा और पार्टी की खोई हुई प्रतिष्ठा बरकरार रखना चाह रहे हैं।
शिवसेना की स्थापना ठाकरे परिवार के पितृ पुरुष स्व. बाल साहब ठाकरे ने की थी। उद्धव ठाकरे ठाकरे परिवार की दूसरी पीढ़ी के तो आदित्य ठाकरे तीसरी पीढ़ी के नेता हैं। स्थापना के बाद से पार्टी में वैसे तो कई बार बगावत हुई, लेकिन इस बार बड़ी बगावत से जूझ रही है। आदित्य के समक्ष न केवल पार्टी की विरासत को बचाने की जिम्मेदारी है, बल्कि खुद के भविष्य की राजनीति को भी आकार देना है।
बदले आदित्य के सुर, ‘निष्ठा यात्रा’ और ‘शिव संवाद’ अभियान चला रहे
आमतौर पर शांत रहने वाले 32 वर्षीय आदित्य ठाकरे के स्वर पिछले डेढ़ माह में बदल गए हैं और वे आक्रामक तेवर दिखाने लगे हैं। वे मुंबई की वर्ली विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। शिवसेना के युवा क्षत्रप पार्टी का डगमगाता जनाधार मजबूत करने के लिए ‘निष्ठा यात्रा’ और ‘शिव संवाद’ अभियान चला रहे हैं।
सिर पर लगा रहे लाल तिलक
आदित्य ठाकरे जब मंत्री थे, तब वे अक्सर पतलून और शर्ट में देखा गया था। कभी-कभी एक ही रंग के जूतों के साथ एक काली जैकेट पहने हुए रहते थे। लेकिन, अब माथे पर लाल तिलक लगाने लगे हैं। इसका मतलब है कि शिवसेना न केवल हिंदुत्व की राह पर लौट रही है, बल्कि कांग्रेस व राकांपा के साथ गठबंधन व सरकार बनाने से पैदा हुए पहचान के संकट को खत्म कर असल रूप में आ रही है।
जून में की पार्टी के 40 विधायकों ने बगावत
शिवसेना के 55 विधायकों में से 40 ने जून में पार्टी नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह किया। इससे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई। इसी तरह पार्टी के 18 लोकसभा सांसदों में से 12 ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट के साथ जोड़ लिया है। यानी विधानसभा के साथ ही लोकसभा में भी पार्टी बड़े नुकसान की ओर बढ़ रही है। हालांकि, शीर्ष कोर्ट के बाद ही शिवसेना के भविष्य पर फैसला होगा। इस बीच, शिवसेना के कई पूर्व पार्षदों और पार्टी पदाधिकारियों ने भी पाला बदल लिया है। ऐसे में आदित्य ने बगावत रोकने, पार्टी की साख बचाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। उन पर शिवसेना से पलायन रोकने की जिम्मेदारी इसलिए भी बड़ी है, क्योंकि उद्धव ठाकरे स्वास्थ्य कारणों से ज्यादा यात्राएं नहीं कर पाते हैं। वे कार्यकर्ताओं और नेताओं से अपने आवास ‘मातोश्री’ पर ही मुलाकात कर रहे हैं।
शिवसेना ‘शाखाओं’ में जाने लगे आदित्य
21 जून को पार्टी में बगावत शुरू होने के बाद से आदित्य ठाकरे मुंबई और उसके आसपास लगने वाली शिवसेना की ‘शाखाओं’ में जाने लगे हैं और स्थानीय पार्टी कार्यालयों के भी दौरे कर रहे हैं। मुंबई और क्षेत्र के अन्य बड़े शहरों में होने वाले नगरपालिका चुनावों से पहले वे कार्यकर्ताओं को रैलियां करने की कोशिश भी कर रहे हैं। स्थानीय शाखाओं में उनके द्वारा इस तरह के दौरे पहले कभी नहीं सुने गए थे।
कोंकण व मराठवाड़ा तक पहुंचे
आदित्य ठाकरे मुंबई से बाहर निकलर कोंकण और मराठवाड़ा में शिवसेना के गढ़ों, जहां से ज्यादातर बागी हैं, का भी दौरा कर रहे हैं। वे निराश कार्यकर्ताओं में जोश जगाने की कोशिश कर रहे हैं और बागियों को इस्तीफे देकर चुनाव लड़ने की चुनौती भी दे रहे हैं।