छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने ग्रामीणों को राहत देने के लिए रात 11 बजे सुनवाई की। 75 साल से रह रहे ग्रामीणों को 24 घंटे में मकान खाली करने का नोटिस जारी हुआ था। हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है।
बिलासपुर – छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में गुरुवार को आधी रात को सुनवाई हुई। यह भी साफ हो गया कि जरूरतमंद को न्याय देने के लिए कोर्ट किसी भी समय खुल सकता है। कोर्ट ने ग्रामीणों को अंतरिम राहत देते हुए 11 अगस्त तक उन्हें घर से बाहर निकालने पर फिलहाल रोक लगा दी है।
मामला महासमुंद जिले के बागबहरा का है। वहां जंगल में सालों से रह रहे ग्रामीणों को तहसीलदार ने बेदखली का वारंट जारी किया था। घबराए ग्रामीणों ने रात आठ बजे हाईकोर्ट में अर्जी लगाई। याचिकाकर्ता के वकील ने रजिस्ट्री के माध्यम से अर्जेंट सुनवाई का हवाला दिया। अनुरोध किया कि मामले की गंभीरता के मद्देनजर जस्टिस पी सेम कोशी ने रात 11 बजे सुनवाई करते हुए कार्यवाही पर रोक लगा दी। इससे ग्रामीणों को फौरी राहत मिली है। इस मामले की अगली सुनवाई 10 अगस्त को होगी।
देर शाम को पहुंचा प्रशासनिक अमला
महासमुंद जिले के बागबहरा क्षेत्र के लालपुर में 75 साल से सरकारी जमीन पर ग्रामीण रह रहे थे। उनके मकान तोड़ने प्रशासन का अमला देर शाम पहुंचा। तोड़फोड़ शुरू कर दी थी। ग्रामीण फूलदास कोसरिया व योगेश के अधिवक्ता वकार नैय्यर, शांतम अवस्थी, प्रांजल शुक्ला, फैज काजी व अभिषेक बंजारे ने रजिस्ट्री के अधिकारियों को बताया कि महासमुंद जिले के ग्रामीणों की याचिका पर अर्जेंट सुनवाई होनी चाहिए। रजिस्ट्री के अफसरों ने चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी से संपर्क किया। उनके निर्देश पर जस्टिस पी. सैम कोशी ने के सकी सुनवाई की और याचिका को स्वीकार करते हुए स्टे दे दिया।
आजादी से पहले से ग्रामीणों का कब्जा
वकीलों ने कोर्ट को बताया कि ग्रामीण आजादी के पहले यानी 75 साल से अधिक समय से सरकारी जमीन पर रह रहे हैं। उनसे 1982 से टैक्स भी लिया जा रहा है। इसके बाद भी प्रशासन ने नोटिस देकर 24 घंटे का ही समय दिया। कब्जा खाली करने का फरमान जारी कर दिया। गुरुवार शाम 5.30 बजे बेदखली के लिए पहुंच गए। तहसीलदार ने 8 जुलाई और CMO ने 12 जुलाई को नोटिस जारी किया। उन्हें 24 घंटे में कब्जा खाली करने के निर्देश दिए गए। जब गांव के लोगों ने कब्ज खाली नहीं किया तब प्रशासन की टीम पहुंची।