वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा, आदिवासियों को झूठे केसों में बंद किया गया। आदिवासियों के साथ ऐसा क्यों हो रहा है। एक केस सुप्रीम कोर्ट में है। एक बड़े उद्योगपति को कोयले की खान देने के लिए नियम ताक पर रखे जा रहे हैं…
नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों में अपने एक फैसले में सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। यह मामला 2009 का है, जिसमें छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के गचनपल्ली, गोम्पड और बेलपोचा क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय के लोगों के साथ बलात्कार, लूटपाट और मर्डर की घटना सामने आई थी। हिमांशु कुमार ने इन घटनाओं में 16 ग्रामीणों की मौत का दावा किया था। उन्होंने खुद के रिकॉर्ड किए गए बयान के आधार पर सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने की है। केंद्र सरकार ने अदालत में याचिकाकर्ता को झूठे सबूत पेश करने का दोषी ठहराने की प्रार्थना की थी। इस बाबत हिमांशु का कहना है कि वे जुर्माने की राशि जमा नहीं कराएंगे। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला नहीं मानेंगे, क्योंकि ये ठीक नहीं है। ‘गन-रेप-मर्डर’ के पीड़ित आदिवासियों की ये लड़ाई, अब बस्तर से बाहर निकलकर दिल्ली पहुंचेगी। अगले सप्ताह पीड़ित आदिवासी दिल्ली आएंगे और अदालत के सामने अपने साथ हुए पुलिस एवं सुरक्षा बलों के जुल्मों की सच्ची तस्वीर पेश करेंगे। ये फैसला, चंद उद्योगपतियों के हितों के लिए आदिवासियों के संघर्ष को खत्म करने का प्रयास है।
क्या बदनाम करने के लिए लगाई गई थी याचिका?
आदिवासियों के लिए संघर्षरत सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी, नंदिनी सुंदर, प्रो. लक्ष्मण यादव, भीम आर्मी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद, लेखिका अरुंधति राय और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इस मुद्दे पर शुक्रवार को प्रेस क्लब में अपना पक्ष रखा। केंद्र सरकार ने सर्वोच्च अदालत के समक्ष हिमांशु कुमार की दलीलों को पूरी तरह से झूठी, मनगढ़ंत और धोखा देने वाली बताया था। याचिकाकर्ता का मकसद वामपंथी चरमपंथियों को सुरक्षा बलों द्वारा नरसंहार किए गए निर्दोष जनजातीय पीड़ितों के तौर पर दिखाना है। उस वक्त पुलिस ने गोम्पड गांव के बाहरी क्षेत्र से सात लोगों के शव बरामद किए थे। सर्वोच्च अदालत ने हिमांशु कुमार के खिलाफ, सरकार को कार्रवाई की अनुमति दी है। सरकार, याचिकाकर्ता के खिलाफ केस दर्ज कर सकती है। हिमांशु कुमार ने अपनी याचिका में मौतों की जांच कराने की मांग की थी। सर्वोच्च अदालत में कहा, क्या उन्होंने जानबूझकर सुरक्षाकर्मियों को बदनाम करने और वामपंथी चरमपंथियों की मदद करने के लिए जनहित याचिका दायर की थी।
आदिवासियों की लड़ाई को कमजोर किया जा रहा है: सोनी
सोनी सोरी ने कहा, आदिवासियों की लड़ाई कमजोर की जा रही है। पांच लाख जुर्माना लगाया गया। इसकी चिंता करने की जरूरत है। आने वाले समय में दूसरे लोगों पर भी जुर्माना होगा। मुझे झूठे केसों में 11 साल तक लड़ाई लड़नी पड़ी। मेरा केस भी सुप्रीम कोर्ट में है। बतौर सोनी सोरी, मुझे असहनीय पीड़ा दी गई। करंट दिया गया। प्राइवेट पार्ट में पत्थर डाले गए। हम सच्चाई की लड़ाई लड़ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट तो कल मेरे खिलाफ भी जुर्माना लगा देगा कि मैं झूठा केस लड़ रही हूं। गोम्पड में जिस बच्चे का हाथ काटा गया, वह नौवीं कक्षा में पढ़ता है। आज भी बस्तर में महिलाओं के साथ रोजाना बलात्कार हो रहा है। पुलिस कुछ नहीं करती। गर्भवती महिलाओं को भी नहीं छोड़ते। पुलिस और सुरक्षा कर्मी, उनके वीडियो बनाते हैं। क्या ये घटना सुप्रीम कोर्ट को नहीं दिखाई दे रही।
नंदराज पहाड़ को बचाने वालों के साथ क्या किया गया
बतौर सोनी सोरी, 2019 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में बैलाडीला की पहाड़ियों को बचाने के लिए आदिवासी बाहर निकले। नंदराज पहाड़, उनके जीवन के कष्ट दूर कर रहा था, उसके चलते वहां बरसात आती थी। पानी बचता था। उद्योगपतियों के हितों के लिए पहाड़ को खत्म करने का प्रयास किया गया। वहां से महिलाओं को उठाकर ले गए। पहले उनके पैरों में गोली मारी जाती है, उसके बाद बलात्कार की घटनाएं होती हैं। ये आदिवासी लड़ाई को कमजोर करने का एक तरीका ही तो है। डीआरजी और बस्तर बटालियन वाले कहते हैं कि हम शिकारी हैं। शिकार करने आए हैं। महिलाओं व लड़कियों को ले जाते हैं। हम नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात करेंगे कि वे बस्तर के लोगों से बात करें। 2017 में सुकमा जिले के बुर्कापाल गांव के पास नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए थे। 121 आरोपियों को जेल में ठूंसा गया। अब वे सब बरी हो गए हैं। वे लोग अब क्या करेंगे। उनका कुछ नहीं बचा है। क्या अदालत, केंद्र और राज्य सरकार, उनके लिए कोई आदेश दे सकती है।