याचिकाकर्ता को इस आधार पर परिवीक्षा के दौरान सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था कि उसके द्वारा हत्या (धारा-302) के एक मामले में दोषी को पांच साल कारावास की सजा सुनाई थी।
नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मध्य प्रदेश की एक महिला अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा प्रोबेशन (परिवीक्षा) के दौरान गलत न्यायिक आदेश पारित करने के लिए उसकी सेवा समाप्त करने को चुनौती देने वाली रिट याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने माना कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्ण पीठ द्वारा की गई सिफारिश पर न्यायाधीश की सेवाओं को समाप्त करने के मध्य प्रदेश सरकार के निर्णय में कुछ भी गलत नहीं था। लिहाजा पीठ ने पूर्व जज की रिट याचिका को खारिज कर दिया, जो व्यक्तिगत रूप से पेश हुई थीं।
हत्या के मामले में पांच साल कारावास की सुनाई थी सजा
याचिकाकर्ता को इस आधार पर परिवीक्षा के दौरान सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था कि उसके द्वारा हत्या (धारा-302) के एक मामले में दोषी को पांच साल कारावास की सजा सुनाई थी। मालूम हो कि हत्या में न्यूनतम सजा उम्रकैद है। बाद में उन्होंने हत्या के अपराध को ‘गैर इरादतन हत्या’ में बदल दिया था। इस अनियमितता का हवाला देते हुए पूर्ण पीठ ने उन्हें बर्खास्त करने की सिफारिश की, जिसे राज्य सरकार ने स्वीकार कर लिया।
पहली पोस्टिंग व पहला फैसला होने को लेकर मांगी थी रियायत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमारी तरफ से आपके लिए हर तरह सहानुभूति है और हम आपको भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देते हैं। याचिकाकर्ता का कहना था कि उन्हें नोटिस नहीं मिला था और एक गलती बर्खास्तगी का आधार नहीं हो सकता। उनका कहना था, वह मेरी पहली पोस्टिंग थी और पहला फैसला था। मैं अभी भी सीख रही हूं। यह केवल एक गलती थी और मुझे निकाल दिया गया था। मुझे खुद को साबित करने का मौका नहीं दिया गया।
दीवानी मामलों में अधिकार के गैरजरूरी इस्तेमाल से बचें हाईकोर्ट : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि उच्च न्यायालयों को निचली अदालतों की देख-रेख के सांविधानिक अधिकार का इस्तेमाल दीवानी अपीलों को सुनने में नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यदि दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के तहत याचिकाकर्ता के पास विकल्प उपलब्ध हों तो उच्च न्यायालयों को अपने इस अधिकार का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के 2021 के फैसले को दरकिनार करते हुए यह बात कही। इस फैसले में मद्रास हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए एक याचिकाकर्ता को भूमि विवाद में राहत दी थी। संविधान का अनुच्छेद 227 हर हाईकोर्ट को अपने न्यायक्षेत्र में आने वाली सभी निचली अदालतों और न्यायाधिकरणों की देख-रेख का अधिकार देता है।