सोचिए ऑल्ट न्यूज़ न होता तो मुख्यधारा की मीडिया की सच्चाई का दैनिक बुलेटिन न सामने आता। प्रचुर संसाधनों से लैस ये संस्थान पत्रकारों के जीवन से खेल रहे हैं और यहाँ काम करने वाले अपने पेशे से। न तो किसी का जीवन समृद्ध हो रहा है और न मीडिया का पेशा।
आख़िर कब तक ऐसे पर्दाफ़ाश होते रहेंगे। आप ऐसे कितने प्रसंग भूल चुके होंगे। कितने तो नज़र भी नहीं आते होंगे। 2017 का यह वीडियो है। क्या आपकी नज़र से गुज़रा था? ANI पर कैरवान का अंक भी देखिए। इस प्रसंग में ANI का संवाददाता चरण स्पर्श कर रहा है। आदर्श स्थिति में इसी को ऐसा करने का मन नहीं करता लेकिन संस्थान भी रिपोर्टर को यह सब करने के लिए मजबूर करता है। यही सब जगह होता है। अपवाद कहीं नहीं है। बस कहीं चरण स्पर्श है तो कहीं कुछ और।
आप इस भ्रम में हैं कि टीवी और अख़बार से सूचना मिल रही है। आपके भरोसे के अनुपात में तो बिल्कुल नहीं मिल रहा है।
इन माध्यमों को एक दिन घर से भगाना होगा। टीवी देखना बंद करना ही होगा। यह माध्यम अब अपवाद के रूप में काम आता है। नियम से यह आपके समय को बिना कंटेंट दिए बर्बाद कर रहा है। कुछ हफ़्तों के लिए तो टीवी देखने की अपनी आदत को चेक कीजिए। समझिए कि टीवी क्या दिखा रहा है और आप क्या देख रहे हैं। हैरान होता हूँ कि लोग अभी भी डिबेट के कार्यक्रम देख रहे हैं। टीवी देखना बंद कर दीजिए। कम से कम टीवी के बारे में सोचना तो शुरू कीजिए आप इसी नतीजे पर पहुँचेंगे।