क्या आपका भी बच्चा दिनभर स्मार्टफोन और दूसरे गैजट्स पर बिताता है? क्या इंटरनेट यूज के लिए मना करने पर चिड़चिड़ापन दिखाता है? अगर इन सवालों का जवाब हां है तो आपके बच्चे को भी इंटरनेट की लत लग चुकी है. इसे दूर करने के लिए क्या कर सकते हैं, यहां जानें.
पहले जहां पैरंट्स बच्चों और किशोरों को नशे की लत से बचाने के लिए परेशान रहते थे वहीं आज के दौर के पैरंट्स अपने बच्चों को इंटरनेट की लत से बचाने की कोशिश में लगे रहते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि आजकल इंटरनेट का नशा इस कदर बच्चों के सिर पर चढ़ रहा है कि बड़ी संख्या में बच्चों का इलाज और काउंसलिंग तक करवानी पड़ रही है. एक सर्वे के मुताबिक, देश में 8 से 12 साल तक के बच्चे हर दिन औसतन 4 घंटे 40 मिनट तक इंटरनेट पर बिता रहे हैं. किशोरों में तो यह लत और भी ज्यादा चिंताजनक है. किशोर प्रतिदिन 7 घंटे 22 मिनट तक इंटरनेट पर बिता रहे हैं.
मानसिक रोग का शिकार हो रहे हैं बच्चे
सर्वे के मुताबिक, इसमें स्कूल या होमवर्क के लिए इंटरनेट पर बिताया गया समय नहीं शामिल है. इस कारण बच्चे मानसिक रोग का शिकार भी हो रहे हैं. इंटरनेट का इस्तेमाल करने के मामले में मेट्रो शहर के बच्चे काफी आगे हैं. टेक्नॉलजी को लेकर बच्चों की आदतों को ट्रैक करने वाली गैर सरकारी संस्था कॉमन सेंस मीडिया के सर्वे में सामने आया है कि अधिकांश बच्चे टीवी, स्मार्टफोन और अन्य गैजेट्स से चिपके रहते हैं. वीडियो देखने के लिए बच्चे प्रतिदिन कम से कम 1 घंटे यूट्यूब का इस्तेमाल करते हैं.
10 में से 9 पैरंट्स चाहते हैं कि बच्चे नेट पर समय न बिताएं
नैशनल ट्रस्ट सर्वे के अनुसार, 83 प्रतिशत माता-पिता का मानना है कि उनके बच्चे टेक्नॉलजी का इस्तेमाल करना सीखें, लेकिन उसके आदी न बनें. हालांकि 10 में से 9 माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे इंटरनेट पर समय बिताने की बजाय लोगों से मिले-जुलें और खेलकूद पर जोर दें. बच्चों की देखरेख और उनके साथ समय बिताकर इस लत को छुड़ाया जा सकता है. यदि यह मानसिक बीमारी का रूप ले तो डॉक्टर से उचित परामर्श जरूरी है. उनको अन्य गतिविधियों में शामिल कर भी इससे बचाया जा सकता है.
बच्चों को आउटडोर ऐक्टिविटी में शामिल होना चाहिए. इसके अलावा, माता-पिता को खुद बच्चों के सामने मोबाइल से दूरी बनाए रखनी चाहिए, क्योंकि बच्चे आखिरकार माता-पिता से ही सीखते हैं.
बच्चों के लिए वक्त निकालें
बच्चों में इंटरनेट की लत छुड़ाने में माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों का रोल काफी अहम है. माता-पिता बच्चों को धार्मिक कहानियों के साथ पुराने किस्से सुनाकर उनका ध्यान मोबाइल से दूसरी तरफ कर सकते हैं. परिवार के सदस्य उन्हें ऐसी कहानियां सुनाएं, जो न केवल बच्चों को प्रोत्साहित करें, बल्कि रिश्ते में भी मजबूती लाएं.
संगीत, नाटक, नृत्य पर जोर
बच्चों में क्रिएटिविटी बढ़ाने के लिए गाने, नृत्य और आर्ट जैसे शौक को प्रोत्साहित करें. ये बच्चों को भावनात्मक रूप से विकसित करने का सबसे सशक्त माध्यम बन सकते हैं. इससे बच्चों में कल्पनाशीलता और रचनात्मकता बढ़ती है.
आउटडोर खेल पर जोर दें
मोबाइल से दूर रखने में आउटिंग काफी मददगार साबित हो सकती है. बच्चों को ट्रेकिंग, लंबी पैदल यात्रा, नए खेल और अन्य गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. घर से दूर कैंप में जाने से बच्चों के दिमाग और शरीर पर सकारात्मक असर पड़ता है. बच्चों में खेलों का काफी प्रभाव पड़ता है. उन्हें फुटबॉल, क्रिकेट, बॉस्केटबॉल, साइकलिंग जैसे खेलों के लिए उत्साहित करना चाहिए.
आर्ट में बढ़ाएं भागीदारी
बच्चों और किशोरों का दिमाग काफी कोमल होता है. उनमें अच्छी या बुरी आदतें काफी तेजी से अपनाने की क्षमता होती है, इसलिए परिजन को समय-समय पर बच्चों को आर्ट ऐंड क्राफ्ट के लिए उत्साहित करना चाहिए. इससे बच्चे लीक से हटकर कुछ रचनात्मक करने की कोशिश करते हैं. इससे उनका एक नया दृष्टिकोण विकसित होता है.
क्या आप भी उन लोगों में से हैं जो बेवजह अपना फोन स्क्रॉल करते रहते हैं या फिर किसी से बात करते वक्त भी फोन की तरफ ही देखते रहते हैं? क्या आप 2 मिनट के लिए भी अपने स्मार्टफोन से दूर नहीं रह पाते? क्या आप भी हर थोड़ी थोड़ी देर में अपने स्मार्टफोन पर फेसबुक, वॉट्सऐप और इंस्टाग्राम चेक करते रहते हैं? अगर इन सभी सवालों का जवाब हां है तो आपको भी दुनियाभर के लाखों लोगों की तरह स्मार्टफोन की लत लग चुकी है. लेकिन परेशान होने की जरूरत नहीं, हम आपको बता रहे हैं इस अडिक्शन से छुटकारा पाने का तरीका…
एम्स की एक स्टडी में 14 प्रतिशत लोग मोबाइल अडिक्शन के शिकार पाए गए, जिन्हें इलाज की जरूरत महसूस की गई. ये 14 प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जो मोबाइल अडिक्शन साबित करने वाले 3 से 6 लक्षण खुद कबूल कर रहे हैं. डॉक्टरों के अनुसार अगर किसी में अडिक्शन के 3 लक्षण पाए जाते हैं तो उन्हें मोबाइल का अडिक्ट माना जाता है और सबसे ताज्जुब की बात यह है कि 19 प्रतिशत लोग चाहकर भी स्मार्टफोन की लत को छोड़ नहीं पा रहे हैं.
फोन अडिक्शन की वजह से दूसरी चीजों से मोह हुआ भंग
एम्स की इस स्टडी में 24.8 प्रतिशत लोगों ने माना कि मोबाइल के बिना उन्हें खालीपन महसूस होता है. इसके बाद 21.4 प्रतिशत लोगों ने मोबाइल के यूज को जुनून करार दिया. 19.4 प्रतिशत ने माना कि वे मोबाइल की लत को छोड़ना चाहते हैं लेकिन इससे बाहर नहीं निकल पा रहे. यही नहीं 19.7 प्रतिशत ने इस सवाल पर सहमति जताई कि लत इतनी हो गई है कि दूसरी चीजों से मोह भंग हो गया है. यही नहीं 13 पर्सेंट ने यह भी माना कि वे मोबाइल की वजह से आपसी संबंध को इग्नोर करने लगे हैं.
बेवजह फोन स्क्रॉलिंग का ये है कारण
आखिर क्यों हम बेवजह फोन स्क्रॉल करते रहते हैं? तो इसका जवाब ये है कि पहले जब स्मार्टफोन और इंटरनेट नहीं था तब लोग खुद को और अपने ब्रेन को इंगेज रखने के लिए आउटडोर गेम्स खेलते थे, गॉसिपिंग करते थे, रीडिंग, राइटिंग, कलरिंग, सिंगिंग, डांसिंग, गार्डनिंग जैसी हॉबीज को टाइम देते थे जिससे हमारा ब्रेन हर वक्त इंगेज रहता था. लेकिन अब स्मार्टफोन के दौर में बेवजह फोन स्क्रॉल करने की बुरी आदत लोगों को लग चुकी है. ऐसे में कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखकर आप इस बुरी आदत से छुटकारा पा सकते हैं.
ऐसे करें खुद पर काबू
– सबसे पहले खुद पर संयम बनाये रखें, खुद को गैजेट्स से जुड़ी गतिविधियों से दूर रखने की कोशिश करें.- फोन से दूर रहने के लिए प्लानिंग करें. परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं. – जरूरी होने पर ही अपने फोन का इस्तेमाल करें. दिनभर ऑनलाइन रहने की बजाय सिर्फ काम के वक्त ही ऑनलाइन रहें. – खुद को रिलैक्स रखने के लिए वॉक पर जाएं. ऐसे कामों में अपना मन लगाएं, जिसमें आपको खुशी मिलती हो.
इन 2 बातों से करें शुरुआत
सबसे पहले फोन को खुद से दूर रखें और दूसरा फोन चेक करने का शेड्यूल बनाएं.- स्मार्टफोन को हर वक्त आंखों के सामने रखने की बजाए खुद से दूर दूसरे कमरे में, बैग में या ड्रॉअर में रख दें ताकि वह आपको नजर न आए. ऐसे में जब फोन आपके सामने नहीं होगा तो इस बात की संभावना अधिक होगी कि आप उसे बेवजह स्क्रॉल नहीं करेंगे.- फोन पर सोशल मीडिया या दूसरी चीजें चेक करने का एक शेड्यूल बनाएं और अगर आप लिमिटेड टाइम से ज्यादा फोन यूज नहीं करते हैं तो खुद को इसके लिए रिवॉर्ड भी दें.
एम्स की इस स्टडी में 24.8 प्रतिशत लोगों ने माना कि मोबाइल के बिना उन्हें खालीपन महसूस होता है. इसके बाद 21.4 प्रतिशत लोगों ने मोबाइल के यूज को जुनून करार दिया. 19.4 प्रतिशत ने माना कि वे मोबाइल की लत को छोड़ना चाहते हैं लेकिन इससे बाहर नहीं निकल पा रहे. यही नहीं 19.7 प्रतिशत ने इस सवाल पर सहमति जताई कि लत इतनी हो गई है कि दूसरी चीजों से मोह भंग हो गया है. यही नहीं 13 पर्सेंट ने यह भी माना कि वे मोबाइल की वजह से आपसी संबंध को इग्नोर करने लगे हैं.
आखिर क्यों हम बेवजह फोन स्क्रॉल करते रहते हैं? तो इसका जवाब ये है कि पहले जब स्मार्टफोन और इंटरनेट नहीं था तब लोग खुद को और अपने ब्रेन को इंगेज रखने के लिए आउटडोर गेम्स खेलते थे, गॉसिपिंग करते थे, रीडिंग, राइटिंग, कलरिंग, सिंगिंग, डांसिंग, गार्डनिंग जैसी हॉबीज को टाइम देते थे जिससे हमारा ब्रेन हर वक्त इंगेज रहता था. लेकिन अब स्मार्टफोन के दौर में बेवजह फोन स्क्रॉल करने की बुरी आदत लोगों को लग चुकी है. ऐसे में कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखकर आप इस बुरी आदत से छुटकारा पा सकते हैं.
– सबसे पहले खुद पर संयम बनाये रखें, खुद को गैजेट्स से जुड़ी गतिविधियों से दूर रखने की कोशिश करें.- फोन से दूर रहने के लिए प्लानिंग करें. परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं. – जरूरी होने पर ही अपने फोन का इस्तेमाल करें. दिनभर ऑनलाइन रहने की बजाय सिर्फ काम के वक्त ही ऑनलाइन रहें. – खुद को रिलैक्स रखने के लिए वॉक पर जाएं. ऐसे कामों में अपना मन लगाएं, जिसमें आपको खुशी मिलती हो.
सबसे पहले फोन को खुद से दूर रखें और दूसरा फोन चेक करने का शेड्यूल बनाएं.- स्मार्टफोन को हर वक्त आंखों के सामने रखने की बजाए खुद से दूर दूसरे कमरे में, बैग में या ड्रॉअर में रख दें ताकि वह आपको नजर न आए. ऐसे में जब फोन आपके सामने नहीं होगा तो इस बात की संभावना अधिक होगी कि आप उसे बेवजह स्क्रॉल नहीं करेंगे.- फोन पर सोशल मीडिया या दूसरी चीजें चेक करने का एक शेड्यूल बनाएं और अगर आप लिमिटेड टाइम से ज्यादा फोन यूज नहीं करते हैं तो खुद को इसके लिए रिवॉर्ड भी दें.
इस समय हम जागरूक नहीं हुए तो भविष्य बहुत अंधकारमय होगा और उनका बौद्धिक विकास कितना विकसित होगा यह भविष्य के गर्त में छिपा होगा.पर इस कारण पढ़ाई में पिछड़ना और मानसिक रोगों के साथ आत्महत्या को ओर प्रेरित होना बहुतायत में हो रहा हैं और होगा.