उत्तर प्रदेश में इन दिनों डेंगू का कहर जारी है। अब तक इसकी चपेट में 7598 लोग आ चुके हैं। लेकिन, अभी तक जिम्मेदार लोग इस पर ठोस कदम उठाने के बजाए टाल-मटोल में डटे हैं। राजधानी के ज्यादातर अस्पताल डेंगू के मरीजों से भरे हुए हैं। सरकारी आकड़े में अभी तक प्रदेश में कुल 13 मौतें हुई हैं। स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़े के अनुसार, लखनऊ में छह, कानपुर में तीन, बराबंकी में दो, हरदोई एवं उन्नाव में एक-एक मरीज की मौत हो चुकी है। जबकि सच्चाई कुछ और ही है।
अभी आकड़ो में हेरा-फेरी हो रही है। डॉक्टरों का दावा है कि आमतौर पर डेंगू का प्रकोप अक्टूबर में कम होने लगता है। लेकिन इसके उलट नवम्बर में मरीजों की भरमार दिख रही है। पिछले साल जनवरी से 11 नवम्बर 2018 तक 3355 लोग डेंगू के चपेट में आ चुके हैं।
सरकारी और निजी अस्पतालों में कार्ड जांच से डेंगू मरीज की पहचान की जा रही है। लखनऊ में रोजाना 400 से अधिक मरीजों की जांच हो रही है।
प्राइवेट अस्पतालों में भी डेंगू का इलाज चल रहा है। लेकिन सीएमओ वहां के मरीजों की संख्या नहीं बताते हैं। जनवरी से अब तक लखनऊ में डेंगू के करीब 1,541, कानपुर में 1,422, प्रयाग में 356, वाराणसी में 266 मरीज सामने आ चुके हैं।
राजधानी के बलरामपुर, सिविल, लोकबंधु, केजीएमयू जैसे अस्पताल के हर वार्ड में डेंगू मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा मात्रा में देखने को मिल रही है। मौत के मामले में लखनऊ पहले स्थान पर है।
अधिकारी एन्टी लार्वा छिड़कने का दावा भले ही कर रहे हों, लेकिन इस पर भी सवाल उठ रहे हैं। विभाग द्वारा डेंगू सम्बधित इलाके में एन्टी लार्वा छिड़काव के बावजूद भी वहां से डेंगू के मरीज निकल रहे हैं। इस कारण लोग सवाल खड़े कर रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक डॉ. पद्माकर सिंह का कहना है कि डेंगू पर काबू पाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। मरीजों के बेहतर इलाज के लिए हर अस्पताल में इंतजाम किए गए हैं।