18 साल की उम्र के बाद कोई भी व्यक्ति ड्राइविंग लाइसेंस बनवा सकता है बशर्ते कि वह आरटीओ से निर्धारित सभी मानदंडों को पूरा करता हो। सारे दस्तावेज जमा करने और लर्निंग लाइसेंस की निर्धारित परीक्षा पास करने के बाद निश्चित समय पर लाइसेंस चाहने वाले को आरटीओ में अधिकारियों के सामने गाड़ी ड्राइव करके दिखाना होता है। अगर, वह इस ड्राइविंग टेस्ट में पास हो जाता है तो उसे निश्चित अवधि के लिए वाहन चलाने का लाइसेंस मिल जाता है। लेकिन, अगर आप तमिलनाडु में हैं और उसमें भी महिला हैं तो आपको इस टेस्ट से पहले भी एक टेस्ट से गुजरना होगा, जिसका कोई प्रावधान लिखित रूप में मोटर व्हीकल ऐक्ट में नहीं है। इस अलिखित नियम के अनुसार आरटीओ के अधिकारी ये तय करते हैं कि ड्राइविंग टेस्ट देने आई महिला ने किस तरह के कपड़े पहन रखे हैं। अगर उन्हें लगा कि उनके हिसाब से महिला का परिधान सही है, तभी वह गाड़ी ड्राइव करने की इजाजत देते हैं, नहीं तो उन्हें वहां से बैरंग लौटा दिया जाता है।जींस-स्लीवलेस में लाइसेंस नहीं
चेन्नई में आजकल आरटीओ के इंस्पेक्टर नियम-कानून से अलग अपनी मनमर्जी का नियम भी जनता पर थोपने लगे हैं। टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक पवित्रा नाम की आईटी फिल्ड में काम करने वाली एक महिला केके नगर स्थित आरटीओ पहुंची तो उसे ड्राइविंग टेस्ट देने से सिर्फ इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि उन्हें उसका ड्रेस मुनासिब नहीं लगा। पवित्रा ने बताया कि ‘मैंने जींस और स्लीवलेस टॉप पहन रखी थी।’ इसपर ड्राइविंग टेस्ट लेने वाले इंस्पेक्टर को आपत्ति थी। उसने इन कपड़ों में ड्राइविंग टेस्ट की इजाजत देने से साफ इनकार कर दिया। महिला ने किसी तरह से टेस्ट के लिए वक्त निकाला था। इसलिए, उसने बहस में पड़ने की बजाय उसकी बात मान लेने में ही भलाई समझी और घर जाकर ड्रेस चेंज करके टेस्ट के लिए वापस आई। उसके मुताबिक, ‘लेकिन, मुझे लाइसेंस की बहुत जरूरत थी, इसलिए मैं घर गई और सलवार-कमीज पहनकर लौटी।’
यहां ड्राइविंग टेस्ट के लिए सलवार-कमीज है ड्रेस कोड
चेन्नई के आरटीओ में ड्रेस कोड की शिकार हुई पवित्रा अकेले नहीं हैं। करीब 10 दिन पहले ही कॉलेज की छात्रा सुमति के साथ भी ऐसा ही वाक्या हुआ था। उसे आरटीओ से इसलिए लौटा दिया गया था, क्योंकि वह कैपरी पैंट और शर्ट पहनकर ड्राइविंग टेस्ट के लिए पहुंची थी। उससे कहा गया कि घर जाओ और सभ्य कपड़े पहनकर आओ। वह भी ड्राइविंग टेस्ट के लिए बड़ी मुश्किल से मिले मौके को गंवाना नहीं चाहती थी। उसने कहा, ‘मैं लाइसेंस मिलने का अपना चांस गंवाना नहीं चाहती थी, इसलिए मैं घर गई और सलवार-समीज पहनकर वापस लौटी।’
(महिलाओं के नाम बदले गए हैं)
लुंगी-शॉर्ट्स वाले पुरुषों को भी आफत
दो महिलाओं ने तो बताया कि वह तो इतनी डर गई थीं कि उस इंस्पेक्टर के नाम का पता लगाया, जो ड्रेस कोड पर जोर दे रहा था। खास बात ये है कि पिछले हफ्ते ड्राइविंग टेस्ट देने वाले लोगों ने बताया कि यह मोरल ड्रेस कोड यहां सिर्फ महिलाओं पर ही नहीं थोपा जा रहा था। वहां जो पुरुष लुंगी या शॉर्ट्स पहनकर पहुंच रहे थे, उन्हें भी बैरंग लौटा दिया गया। जब तक वो उनके बताए ड्रेस पहनकर नहीं आए उन्हें ड्राइविंग टेस्ट में नहीं शामिल होने दिया गया।
ताकि फूहड़ नहीं दिखें लोग….ट्रांसपोर्ट कमिश्नल
वाहन दुर्घटनाओं से जुड़े मामलों को देखने वाले एक वकील वीएस सुरेश ने कहा कि कानून ड्राइविंग टेस्ट के लिए किसी ड्रेस कोड की बात नहीं करता। उन्होंने कहा कि, ‘आवेदकों की उम्र कम से कम 18 वर्ष की होनी चाहिए और उसे मानसिक तौर पर फिट होना चाहिए।’ हालांकि, रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिसर जी सुंदरमूर्ति ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि वह इस मामले को देखेंगे। वैसे ट्रांसपोर्ट कमिश्नर सी समयमूर्ति ने कहा कि खासकर टू-व्हीलर्स टेस्ट के दौरान कैपरी पैंट और लुंगी पहनना फूहड़ लगता है और उससे बचना चाहिए।
(तस्वीरें सिर्फ प्रतिकात्मक हैं)