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कश्मीर में केसर उगाने वालों को अपने अच्छे दिन आते क्यों दिख रहे हैं?

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कश्मीर घाटी में हालात कैसे हैं, शायद इस समय किसी को बताने की भी ज़रूरत नहीं है. ऐसे हालात में बाकी लोगों के साथ-साथ कश्मीर के किसान भी परेशान हैं. इनमें एक बड़ी संख्या सेब उगाने वाले किसानों और व्यापारियों की है जो कश्मीर की अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा हिस्सा हैं.

लेकिन कश्मीर सेब के अलावा एक और चीज़ उगाने के लिए भी माना जाता है और वह है केसर, जिसे सैफ्रन या जाफरान भी कहा जाता है. केसर की खेती करने वाले किसानों के लिए परेशानी कोई नयी बात नहीं है. लेकिन इस वक़्त जब पूरा कश्मीर मुश्किल हालात में है, ऐसा लग रहा है कि केसर के किसानों की मुश्किलें आसान हो रही हैं. इन आने वाले अच्छे दिनों के कई कारण हैं. इससे पहले कि ये कारण बताए जाएं, ज़रूरी है केसर की खेती के बारे में कुछ चीज़ें जान ली जाएं.

कश्मीर में केसर की खेती पुलवामा जिले के पंपोर और उसके आस-पास के करीब 226 गावों में होती है. माना जाता है राज्य के लगभग 150000 लोग इस खेती से जुड़े हुए हैं. दुनिया का सबसे महंगा मसाला कहे जाने वाले केसर की फसल अक्टूबर के आखिरी और नवंबर के पहले एक-दो सप्ताह में समेटी जाती है. इसकी अच्छी फसल होने के लिए ज़रूरी है सितंबर और अक्टूबर में बारिश होना, जो पिछले कई सालों से या तो नहीं हो रही थी या फिर इतनी ज़्यादा कि बाढ़ जैसा माहौल बन जाता था. 2014 के सितंबर में जब अभूतपूर्व बारिश के चलते खतरनाक बाढ़ आई थी उस साल केसर की फसल न के बराबर हुई थी.

सिंचाई की इस कठिनाई को दूर करने के लिए सरकार ने नेशनल सैफ्रन मिशन के तहत केसर के खेतों में ‘ड्रिप इरीगेशन’ सुविधा के लिए पाइप बिछाये थे. ‘लेकिन उनमें से कभी पानी नहीं निकला’ पंपोर के मुश्ताक़ अहमद गनाई, जोकि केसर के किसान हैं, सत्याग्रह को बताते हैं.

कृषि विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक ‘इस साल बचे हुए ड्रिप इरीगेशन का काम पूरा किया जाना था लेकिन सब कुछ बंद होने के चलते वह रुक गया है और कुछ पता नहीं है कि कब तक रुका रहेगा.’

ऐसे में केसर के किसानों की परेशानी दूर करने के लिए मानो प्रकृति खुद सामने आई है. सितंबर के आखिरी और अक्टूबर के पहले दो सप्ताह में कश्मीर घाटी में ठीक-ठाक बारिश हुई है, बिलकुल उतनी जितनी केसर की अच्छी फसल होने के लिए चाहिए.

‘हम लोग एक और साल अपनी फसल न के बराबर होने के लिए अपने आपको तैयार कर ही रहे थे कि बारिश हो गई. अगर सब कुछ ठीक रहा तो इस बार फसल बहुत अच्छी होने वाली है,’ पंपोर के ही एक और किसान, फारूक अहमद भट, सत्याग्रह को बताते हैं कि इतनी बारिश जिससे केसर की ज़मीन में बस नमी रहे, एक लंबे अरसे बाद हुई है.

‘अब आशा यह है कि आगे मौसम ठीक रहे ताकि जब फूल निकलें तो वो बारिश से बर्बाद न हो जाएं’ फारूक सत्याग्रह से बात करते हुए कहते हैं, ‘हम बस दुआ कर सकते हैं, बाकी ऊपर वाले के हाथों में है सब कुछ.’

फारूक और उनके साथ के कई अन्य किसान हमें बताते हैं कि पूरे साल उनकी ज़मीन बंजर पड़ी हुई थी ‘और अब इस समय भी ऊपर वाला साथ न दे तो एक और साल मुश्किलों में कटने वाला है,’

बारिशों की यह खुशी इन किसानों के लिए एक और खुशी के कुछ समय बाद ही आई है. हाल ही में कश्मीर के केसर को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी पहचान मिली है, जियोग्राफिक इंडिकेशन रजिस्ट्रेशन के रूप में.

इसका मतलब यह है कि अब कश्मीर का केसर जीआई टैग के साथ आएगा. यह टैग चीजों पर यह बताने के लिए लगाया जाता है कि यह दुनिया की किसी विशेष जगह से निकली हुई है और इस वजह से इसमें कुछ गुण ऐसे हैं जो और किसी में नहीं हैं.

कृषि विभाग के प्रॉडक्शन डिविजन के सेक्रेटरी, मंजूर अहमद लोन, सत्याग्रह को बताते हैं कि इस विषय में आखिरी बैठक दिल्ली में 23 सितंबर को हुई थी. ‘भारत सरकार की मंजूरी के बाद यह जीआई टैग दिया गया है.’ वे कहते हैं कि यह उपलब्धि कश्मीर के केसर के लिए एक नया जीवनदान जैसा है. इससे कश्मीर के केसर की अन्तराष्ट्रीय बाज़ार में कीमत भी बढ़ जाएगी और इसकी मार्केटिंग भी आसान हो जाएगी.

किसान भी इस बात से काफी खुश हैं. ‘पहले कश्मीर के केसर के नाम पर लोग बाहर पता नहीं क्या-क्या बेचते थे. अब केसर खरीदने वाला भी संतुष्ट रहेगा क्योंकि उसको कोई ठग नहीं सकता है’ मुश्ताक़ अहमद सत्याग्रह से कहते हैं.

तीसरी अच्छी खबर केसर के किसानों और व्यापारियों के लिए यह है कि नेशनल सैफ्रन मिशन के तहत इन लोगों को कश्मीर में ही अपनी एक मंडी मिलने वाली है. ‘स्पाइस पार्क’ के नाम से बनाई गयी यह मंडी पंपोर से थोड़ी दूर दुस्सू गांव में स्थित है.’ कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक यह मंडी केसर के किसानों के लिए एक अन्तराष्ट्रीय मार्केट का काम करेगी.

‘इस स्पाइस पार्क में दुनिया भर से व्यापारी आएंगे और यहां का केसर खरीदेंगे’ कृषि विभाग के एक व्यापारी सत्याग्रह को बताते हैं. वे कहते हैं कि सरकार हर साल इस स्पाइस पार्क में ‘ट्रेड फेयर’ आयोजित करके दुनिया भर के व्यापारियों को रिझाने की कोशिश करेगी.’उम्मीद यह है कि यह स्पाइस पार्क इसी साल शुरू कर दिया जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो यह इन किसानों के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण कदम होगा.’

किसान भी सरकार के इस कदम को लेकर काफी उत्सुक हैं. वे कहते हैं कि पहले वे मजबूर थे यहां के ही व्यापारियों को अपनी फसल देने के लिए. लेकिन ‘अब हमें दिल्ली या मुंबई जाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. लोग यहीं आएंगे और उम्मीद है कि हम लोगों को अच्छे पैसे मिलेंगे अपनी फसल के,’

अब इतनी खुशियों में ज़ाहिर है कि बाधाएं भी ज़रूर होंगी ही. पहली मुश्किल यह है कि इस समय सब कुछ बंद पड़ा हुआ है कश्मीर में और इन किसानों में से ज़्यादातर लोग ऐसे हैं जिनकी ज़मीन उनके घरों से दूर स्थित है.

‘इस समय जुरूरत है हर रोज़ ज़मीन पर जाने की. लेकिन वह ऐसे हालात में कैसे मुमकिन है’ दुस्सू में रहने वाले, बिलाल अहमद, जिनकी ज़मीन उनके घर से सात किलोमिटर की दूरी पर स्थित है, ने सत्याग्रह को बताया.

यह मुश्किल अगर किसी तौर हल हो भी जाती है तो फिर यह कि अभी पिछले साल का केसर भी दुकानदारों के पास ऐसा ही पड़ा हुआ है. इन किसानों की फसल का एक बड़ा हिस्सा स्थानीय दुकानदार खरीद लेते हैं जो फिर यह केसर पर्यटकों को बेचते हैं. लेकिन इस बार पर्यटक आए ही नहीं बिलकुल और दुकानदारों के पास केसर पहले से ही पड़ा हुआ है.

‘अब उम्मीद स्पाइस पार्क पर लगी हुई है, लेकिन हालात ऐसे ही रहे तो वहां कौन आएगा’ फारूक अहमद सत्याग्रह से कहते हैं.

खैर, आगे जो भी हो, फिलहाल तो इन किसानों के आने वाले दिन अच्छे ही लग रहे हैं.