बेशक दशहरा खत्म हुए दो दिन हो चुके हैं, लेकिन दशहरा पर जलने वाला रावण एक बार फिर विवादों में है. दहन से पहले रावण शिक्षा विभाग पर सवाल खड़े कर गया. साथ ही बाजार में बिकने वाली सरकारी किताबों की भी पोल खोल गया है. पुतला दहन से पहले कांग्रेसियों ने मैदान पर ही नारेबाजी कर जांच की मांग की. यह मामला उत्तर प्रदेश के हाथरस शहर का है.
रावण के जलने से पहले ऐसे खुली पोल
इस मामले को उठाने वाले एनएसयूआई के स्टेट सेक्रेटरी आदित्य शर्मा ने बताया, ‘ हाथरस में दशहरा के दिन एमजी पॉलीटेक्निक के मैदान पर रावण को जलाने की तैयारी चल रही थी. तभी कुछ लोगों की निगाह रावण के पुतले पर चिपके (चस्पा) कागजों पर पड़ी. जब उन्होंने गौर से देखा तो वो किताब के पन्ने थे. किताब के पन्नों की बारीकी से जांच की गई तो पता चला कि ये वो सरकारी किताबें हैं जो बेसिक शिक्षा विभाग में बच्चों को मुफ्त बांटी जाती हैं. उन पर वर्ष 2018-19 लिखा हुआ था. इसकी जानकारी होते ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने वहां पहुंचेकर नारेबाजी शुरू कर दी. उन्होंने आलाधिकारियों को मौके पर बुलाकर जांच की मांग की.’
पुतला बनाने वाला बोला 30 रुपये किलो खरीदी थी आदित्य शर्मा ने कहा, जब मामला तूल पकड़ने लगा तो रावण का पुतला बनाने वाले कारीगर से बात की गई. कारीगर ने बताया कि उसने पुतला बनाने के लिए रद्दी अलीगढ़ के मोटे लाला की मशहूर दुकान से 30 रुपये किलो की रेट से खरीदी थी. इसके अलावा उसे कुछ नहीं पता.
DM बोले किताबों की ट्रॉयल शीट थी यह मामला जब बढ़ा तो सवाल उठने लगे कि बुराई का प्रतीक रावण का पुतला जलेगा या नहीं. प्रथम दृष्टया जांच कराने के बाद डीएम प्रवीण कुमार लक्षकार ने बयान जारी करते हुए कहा कि रावण के पुतले में लगा कागज किताबों का नहीं था. ये वो शीट थी जो किताब छापने से पहले ट्रॉयल के तौर पर छापी जाती है. उन्होंने कहा कि रावण के पुतले में ये ही शीट लगी हुई थी.