छत्तीसगढ़ सरकार हरेली आैर तीजा-पोरा के बाद अब गौरा-गौरी उत्सव भी धूमधाम से मनाने की तैयारी में लग गई है। यह दिवाली के समय छत्तीसगढ़िया आस्था आैर परंपरा से जुड़ा सबसे बड़ा लोकपर्व है। गौरा-गौरी उत्सव में गांव की महिलाएं आैर पुरुषों बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। इस दौरान महिलाएं गीत गाती हैं, जबकि पुरुष वाद्य यंत्र बजाते हैं।
लोगों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए इसके लिए भी सरकार भी विशेष व्यवस्था करेगी। बताया गया है कि स्थानीय स्तर पर नेताआें आैर जनप्रतिनिधियों को इसकी जिम्मेदारी दी जाएगी। त्यौहार के दौरान स्थानीय जनप्रतिनिधि भी लोगों के साथ घूमते हुए गांव के उस स्थान तक पहुंचेंगे, जहां इसकी पूजा की जाती है। इस त्यौहार को सामाजिक सौहार्द्रता का प्रतीक माना जाता है।
दरअसल सत्ता में आने के बाद से कांग्रेस ने यहां के ठेठ छत्तीसगढ़ियापन को सबसे पहले अपना हथियार बनाया। सीएम भूपेश बघेल भी ठेठ छत्तीसगढ़ी में अपना भाषण देते हैं। अधिकांश मौकों पर वे छत्तीसगढ़ी में बोलते नजर आते हैं। उन्होंने इसकी शुरुआत यहां के पारंपरिक त्यौहार हरेली आैर तीजा पोरा की छुटि्टयां घोषित कर की। इसके बाद हरेली के दौरान सीएम हाउस से ही गेड़ी पर चढ़कर सीएम भूपेश निकले जबकि तीजा पोरा के दौरान महिलाआें के लिए सीएम हाउस में तीज मिलन आैर बच्चों को पोरा बांटकर त्योहार मनाया गया था।
ऐसे मनाते हैं उत्सव : गौरा-गौरी पर्व की शुरुआत धनतेरस की रात से होती है। धनतेरस के दिन लोग बाजे-गाजे के साथ गौरा-गौरी को जगाने का काम करते हुए गीत गाते हैं। दूसरे दिन गौरा-गौरी की पूजा कर फिर से गीत गाया जाता है। तीसरे दिन दीपावली पर्व में रात के दौरान पूरे वार्ड में गौरा-गौरी की बारात निकाली जाती है और ज्योति कलश के साथ पहुंचकर गौरा-गौरी की मूर्ति स्थापित की जाती है।