पंजाबी और अच्छा खाना मानो पर्यायवाची हैं। पंजाबी अपनी ज़िंदादिली और भांगड़ा के साथ-साथ अपने स्वादिष्ट खाने के लिए भी जाने जाते हैं। किसी भी पंजाबी के घर से आप भर-पेट खाना खाए बिना नहीं निकल सकते। जैसा कि सभी जानते हैं, पंजाब देश के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक है और पंजाब का खाना इस बात का सबूत है। यहां पर ज़्यादातर भोजन शुद्ध और देसी घी में पकाया जाता है, जिसे खाए बिना कोई नहीं रह सकता है।
दुनिया के किसी भी गुरुद्वारे के लंगर का खाना खाकर अक्सर लोग अपनी उंगलियां चाटते रह जाते हैं। गुरुद्वारे में कोई छप्पन भोग नहीं परोसा जाता है, बल्कि दाल, चावल, रोटी, सब्ज़ी और सलाद खिलाया जाता है। लेकिन यह आम भोजन का स्वाद किसी 5 स्टार होटल के विदेशी खाने से कम नहीं लगता है। हम तो यह कहेंगे कि जो संतुष्टि गुरुद्वारे के इस खाने को खाकर मिलती है, वह संतुष्टि किसी 5 स्टार होटल के पकवान खाकर कभी नहीं मिलती है। लंगर का खाना हमेशा स्वादिष्ट होता है। यह सबसे अच्छे और संतोषजनक भोजनों में से एक होता है। दिल्ली में ऐसा अक्सर देखा गया है, जब कॉलेज के वो छात्र जो अपने परिवार से अलग रहते हैं, वे कई बार गुरुद्वारे का प्रसाद खाने आते हैं। बच्चे गुरु ग्रन्थ साहेब के आगे माथा टेक्कर सीधा लंगर में खाने के लिए लाइन लगाते हैं। इसके अलावा जब लोगों के पास पैसों की कमी होती है, तो उन्हें गुरुद्वारे आकर पेट भर खाने का मौक़ा मिलता है। इस लंगर के भोजन को खाकर एक अजीब सा सुकून मिलता है। यह तो सोचने वाली बात है कि ऐसा क्या है जो लंगर के खाने को इतना ख़ास और लज़ीज़ बनाता है? हमारे अनुसार इन कारणों से लंगर का खाना इतना ख़ास और मज़ेदार होता है।
लंगर का भोजन गुरुद्वारा के भक्तों और सेवकों द्वारा बनाया जाता है। वे सब एक साथ मिलकर इस भोजन को तैयार करते हैं। भोजन बनाते समय वे ‘वाहे गुरु’ का नाम लेते हैं। गुरुद्वारे में जाति, पंथ, हैसियत आदि चीज़ों को पीछे छोड़, हर क्षेत्र से भक्त आते हैं और एक साथ ज़मीन पर बैठकर भोजन का आनंद लेते हैं। यह भोजन सभी सेवकों द्वारा बहुत सम्मान और प्यार के साथ हर किसी को परोसा जाता है। गुरुद्वारा में हर उम्र में लोग अपनी सेवा देते हैं।
सेवकों द्वारा सभी व्यंजनों को हाइजीनिक तरीके से बनाया जाता है. साथ ही, भोजन बनाने के लिए सिर्फ ताज़ी और शुद्ध सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है। लंगर में भारी मात्रा में भोजन बनाया जाता है ताकि गुरुद्वारा में आनेवाले सभी लोग इस भोजन का लाभ उठा सके और साथ ही, इस भोजन को दान भी किया जा सके। गुरुद्वारा में कीर्तन की ध्वनि सुनते हुए भोजन खाने से ज़्यादा सुकून और शान्ति और किसी चीज़ में नहीं मिल सकती है। ऐसे पवित्र वातावरण में भोजन खाने का मज़ा ही कुछ और होता है।
यह गुरुद्वारा में सेवा प्रदान करते सैंकड़ों सेवकों और भक्तों की उदारता और निस्वार्थता है जो इस भोजन को और भी ज़्यादा ख़ास बनाती है। यदि आपने अब तक लंगर के खाने का स्वाद ना चखा हो, तो जल्द से जल्द से चख लें। ऐसा आनंद और किसी भोजन को खाकर नहीं आता है।