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बीते 21 साल में हमारी दुनिया बदल चुका गूगल अगले 21 साल में हमें क्या-क्या दिखाने वाला है?

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1998 में जब गूगल ने जन्म लिया था तो शायद ही किसी ने सोचा हो कि एक दशक में ही वह उस मुकाम पर पहुंच जाएगा जहां दुनिया के बड़े-बड़े कारोबारी घराने कई पीढ़ियों में भी नहीं पहुंचे. गूगल के शुरुआती दिनों में इंटरनेट का पर्याय याहूडॉटकॉम था. याहू या अमेरिका ऑनलाइन (एओएल) जैसी चर्चित वेबसाइटें कांटेंट यानी खबरों और जानकारियों पर केंद्रित थीं. गूगल ने दूसरी राह अपनाई. यह खोज यानी सर्च की राह थी. गूगल खुद को जानकारियों तक जाने का जरिया बना रहा था.

उसी राह पर चलते हुए गूगल करीब दो दशक बाद आज वहां जा पहुंचा है जहां उससे जुड़े आंकड़े हैरान करते हैं. उसकी पेरेंट कंपनी एल्फाबेट आज करीब 860 अरब डॉलर से भी ज्यादा बाजार पूंजीकरण वाली कंपनी है. इस लिहाज से वह दुनिया में चौथे स्थान पर है. पिछले साल लगभग 137 अरब डॉलर का कारोबार करने और 31 अरब डॉलर का मुनाफा कूटने वाली एल्फाबेट से जुड़े इन हैरतअंगेज आंकड़ों में सबसे ज्यादा योगदान गूगल का ही है.

लेकिन हैरान करने के बावजूद ये आंकड़े गूगल की विराट ताकत को पूरी तरह से नहीं दिखाते. इस ताकत का असल अंदाजा गूगल की उस सर्वव्यापकता से होता है जिसके बिना हम आज अपनी जिंदगी की कल्पना नहीं कर सकते. हमारे फोन से लेकर डेस्कटॉप, लैपटॉप, फोन, फ्रिज और वाशिंग मशीन तक गूगल हर जगह है. एंड्रायड ओएस, गूगल मैप्स, जीमेल, क्रोम और यूट्यूब सिर्फ नाम नहीं हैं. ये आज के समाज को चलाने वाली ताकतें हैं. खोज यानी सर्च का तो गूगल दूसरा नाम बन चुका है. गूगल पर हर दिन 3.5 अरब यानी हर सेकेंड करीब 40 हजार सर्च होती हैं. गूगल करना हमारी शब्दावली का हिस्सा हो गया है.

गूगल हमारी जिंदगी में इतना गहरे घुस चुका है कि वह न सिर्फ हमें अच्छी तरह जानने-पहचानने लगा है बल्कि हमारी जिंदगी को चलाने भी लगा है. सर्च पर जानकारियों का पहाड़ खंगालने के बाद हम कोई चीज खरीदने से लेकर मेल करने तक कई लिहाज से हम गूगल की उंगली पकड़कर ही चल रहे हैं. इसलिए कहने वाले यह भी कह देते हैं कि गूगल आपके बारे में आपकी मां या पत्नी से भी ज्यादा जानता है.

2017 तक एल्फाबेट के एक्जीक्यूटिव चेयरमैन रहे एरिक श्मिट ने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘हम जानते हैं कि आप कौन हैं, क्या करते हैं, आपके शौक क्या हैं, आप इस समय कहां हैं, हम यह भी अंदाजा लगा सकते हैं कि आप इस समय क्या सोच रहे हैं. हमारे पास आपके हर सवाल का जवाब है.’ उनके मुताबिक गूगल का लक्ष्य है कि कुछ साल बाद वह आपको यह बताने की स्थिति में हो कि आपको छुट्टी के दिन क्या करना चाहिए या कौन सी नौकरी आपके लिए सबसे मुफीद रहेगी.

यानी अभी तो सिर्फ शुरुआत है. एक साक्षात्कार में गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई कहते हैं कि भविष्य में तकनीक के साथ हमारा संवाद उतना ही सहज होगा जितनी हमारी आपसी बातचीत. यह हो भी रहा है. सर्च बॉक्स में की वर्ड टाइप करना पुरानी बात हो गई. अब नया चलन है वॉइस सर्च. भविष्य में घरों की छत या दीवारों में माइक्रोफोन और स्पीकर लगे होंगे. हम सवाल पूछेंगे और मशीन हमें जवाब देगी. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हमारे और दुनिया के बारे में सारी जानकारियों से लैस मशीनों का एक नेटवर्क – जो गूगल की ही एंड्रॉयड या किसी और तकनीक की मदद से आपस में जुड़ा होगा- हमारे शरीर और दिमाग की कवायद काफी कम कर देगा.

गूगल इसकी तैयारी भी कर रहा है. आंकड़े बताते हैं कि पिछले 21 साल में उसने और अब कहा जाए तो एल्फाबेट ने 227 से भी ज्यादा कंपनियों का अधिग्रहण किया है. औसत निकालें तो पता चलता है कि गूगल हर महीने एक कंपनी खरीद रहा है. इनमें ई कॉमर्स, स्वास्थ्य, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस या रोबोटिक्स जैसे बिल्कुल अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही कंपनियां शामिल हैं. इन कवायदों पर एल्फाबेट ने 30 अरब डॉलर से भी ज्यादा रकम खर्च की है.

लेकिन एल्फाबेट अपने परंपरागत कारोबार यानी इंटरनेट की बजाय स्वास्थ्य विज्ञान, रोबोटिक्स या अपने आप चलने वाली कार जैसी परियोजनाओं पर क्यों दांव लगा रही है? इसके कई कारण हैं. पहला तो यही कि वह अपनी सेवाओं को सर्च के इतर भी फैलाना चाहती है. गौरतलब है कि अभी एल्फाबेट के कारोबार में 90 फीसदी से भी ज्यादा हिस्सा गूगल सर्च से आता है. कारोबार की दुनिया में एक प्रोडक्ट पर इतनी ज्यादा निर्भरता ठीक नहीं मानी जाती. इसलिए एल्फाबेट कमाई के नये रास्ते खोजना चाहती है.

भविष्य में निवेश के लिए उसके पास पैसे की कमी नहीं है. बताया जाता है कि एल्फाबेट के पास इस समय करीब 64 अरब डॉलर (चार लाख 25 हजार करोड़ रुपये) का रिजर्व कैश है. यही वजह है कि जिस भी कंपनी में उसको भविष्य की कोई संभावना दिखती है उसे वह किसी भी कीमत पर खरीद लेती है. अरबन इंजन्स का ही उदाहरण लें. लोकेशन बेस्ड एनैलिटिक्स के क्षेत्र में सक्रिय इस कंपनी का काम शहरी नियोजन के लिहाज से अहम माना जाता है. दुनिया का भविष्य शहर ही हैं इसलिए गूगल ने कुछ समय पहले अरबन इंजन्स को खरीदने में ज्यादा देर नहीं लगाई. अभी जून में ही उसने लुकर को खरीदा है. यह कंपनी उस बिग डेटा के क्षेत्र में काम कर रही थी जिसे भविष्य कहा जाता है.

एक लेख में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया के प्रोफेसर और अधिग्रहण जैसी कारोबारी कवायदों के विशेषज्ञ जॉर्ज गाइस कहते हैं, ‘एल्फाबेट कंपनियां सिर्फ इसलिए नहीं खरीद रही कि उसका पोर्टफोलियो बढ़ जाए. वह चाहती है कि उसके पास डेवलपरों, डिजाइनरों और वैज्ञानिकों के रूप में प्रतिभाओं का विशाल भंडार हो.’

इसे नेस्ट लैब्स के उदाहरण से समझते हैं. इस कंपनी को गूगल ने जनवरी 2014 में खरीदा था. नेस्ट स्मार्टफोन से चलने वाले थर्मोस्टेट और स्मोक अलार्म डिटेक्टर बनाती है. इसके अधिग्रहण के साथ उसकी झोली में इन दोनों उत्पादों के अलावा टोनी फेडल भी आए. नेस्ट के सहसंस्थापक फेडल को एप्पल के मशहूर आइपॉड और आइफोन के पीछे का दिमाग माना जाता है.

विचित्र सी लगने वालीं इन अधिग्रहण कवायदों पर इस तरह से गौर करें तो कड़ियां अपने-आप जुड़ती लगती हैं. कल्पना करें कि आप ड्राइंगरूम में बैठे हैं और आपको लगता है कि एसी की ठंडक ज्यादा हो गई है. इसे कम करने के लिए आपको रिमोट उठाने तक की जरूरत नहीं होगी. बोलकर ही काम हो जाएगा. आप कहेंगे कि मैं डांस इंडिया डांस का पहला एपीसोड देखना चाहता हूं और टीवी आपका आदेश पूरा कर देगा. आप कहेंगे कि सबसे अच्छी बिरयानी कहां मिलती है वहां चलते हैं, और जब तक आप तैयार होकर गूगलकार में बैठेंगे आपका जीपीएस उस रेस्टोरेंट का रास्ता पता लगाकर कार को उस पर चलाने के लिए तैयार हो चुका होगा. आप सुबह जागेंगे और एक रोबोट, जिसे गूगलबोट भी कह सकते हैं, आपकी सेवा में चाय लेकर हाजिर होगा. कुल मिलाकर यह होम ऑटोमेशन, रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस नाम के उन क्षेत्रों का मेल होगा जिनमें एल्फाबेट बहुत सक्रिय है.

यह सब किसी सुदूर भविष्य की बात नहीं है. जानकारों के मुताबिक तकनीक की लगातार घटती लागत के चलते जल्द ही माइक्रोचिप और सेंसर आम बात हो जाएंगे. इनकी मदद से आपकी आवाज को पहचानने वाली मशीनों का एक पूरा नेटवर्क आपके पर्सनल असिस्टेंट की तरह काम करेगा. यानी कल अगर आपकी कोई मीटिंग है और आप भूल जाएं तो भी कोई बात नहीं. किसी पर्सनल असिस्टेंट की तरह आपके फोन से लेकर दीवारों तक में लगा सिस्टम आपको इसका ध्यान दिलाता रहेगा. गूगल पूरे जोर-शोर से इस पेचीदा काम में लगा है कि ये मशीनें हमारी रोजमर्रा की भाषा को समझने के काबिल हो जाएं.

आज कई मजाक में कह देते हैं कि गूगल ईश्वर है. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि ईश्वर और गूगल के गुणधर्म काफी कुछ मिलते दिखते हैं. समय और जरूरतों के साथ ईश्वर के स्वरूप भले ही बदलते रहे हों, लेकिन उसकी परिभाषा कमोबेश एक ही रही है. उसे सबमें रहने, सबको देखने और सबको चलाने वाली ताकत के रूप में ही देखा गया है. गूगल भी आज कई लिहाज से ऐसी ही ताकत बन चुका है. उसकी भविष्य की योजनाओं को देखें तो कह सकते हैं कि वह ईश्वर से परमेश्वर बनने की कोशिशों में जुटा है.