100 वर्ष पुरानी हो चुकी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की साख पर लगा बट्टा छूटने का नाम नहीं ले रहा है। देश में राष्ट्रवादी ताकतों का उभार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छवि ने कांग्रेस के पारंपरिक शैली को बहुत नुकसान पहुंचाया है, जिसको सीढ़ी बनाकर कांग्रेस पार्टी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में भारत की सत्ता पर करीब 70 वर्ष तक काबिज रही।
कांग्रेस को अपनी पारंपरिक छवि से निकलने में अभी और वक्त लग सकता है, क्योंकि कांग्रेस के पास अब एक अकेला चेहरा नहीं है, जो कुछ नहीं तो उसकी नैया को मंझधार से पार लगाने में मदद कर सके। गांधी परिवार के वर्तमान वारिस पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब नेपथ्य में जा चुके हैं और प्रियंका गांधी ने अभी-अभी राजनीतिक बिसात पर चाल चलना शुरू किया है। कांग्रेस का अब ऐसे चेहरे की तलाश है, जो पांरपरिक कांग्रेस को मौजूदा दौर की प्रचलित राजनीति में प्रासंगिक बना सके।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर पिछले कई महीनों से लगातार कांग्रेस की नई छवि गढ़ने में लगे हैं, जो बयानों और अंदाजों से जाहिर भी होता है। पार्टी लाइन से इतर शशि थरूर प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करने लगे हैं। सत्तासीन बीजेपी नेतृत्व और प्रधानमंत्री के कामकाज और मंशा पर कम सवाल उठाते हुए दिख रहे हैं।
यह सब कांग्रेस के एक वृहद रणनीति का हिस्सा हो सकता है। क्योंकि शशि थरूर ही नहीं, कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने इस बीच प्रधानमंत्री के कामकाज और मंशा दोनों पर सवाल उठाने के बजाय उल्टा कांग्रेस लाइन को गलत ठहराते हुए दिखाई पड़े हैं। इनमें वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश और अभिषेक मनु सिंघवी का नाम शामिल हैं।
जयराम रमेश ही वो कांग्रेसी नेता थे, जिन्होंने पार्टी लाइन से इतर जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रत्येक कामकाज के विरोध करने के कांग्रेसी रणनीति पर हमला किया, जिसका शशि थरूर ने आगे बढ़कर न केवल समर्थन किया बल्कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उठाए गए जम्मू-कश्मीर समेत अन्य मुद्दों को रेखांकित किया।
जयराम रमेश की जलाई मशाल को शशि थरूर के बाद अभिषेक मनु सिंघवी ने थाम लिया और उन्होंने भी कांग्रेस की रणनीतियों पर सवाल उठा दिया। इस कतार में अभी कई और नेताओं को कतारबद्ध देखा जा सकता है, लेकिन शशि थरूर की सिलसिलेवार टिप्पणी इशारा करती है कि कांग्रेस पार्टी कुछ नया सोच रही है।
शशि थरूर की छवि एक ईमानदारी नेता के रूप में रही है। बिना किसी लाग लपेट के अपनी बात रखने वाले शशि थरूर साफगोई से अपनी बात कहने के लिए जाने जाते हैं। यही कारण है कि पार्टी शशि थरूर पर दांव खेल सकती है और उन्हें हरियाणा और महाराष्ट्र में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी थमा सकती है।
चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र और हरियाणा में 21 अक्टूबर को मतगणना कराने की घोषणा की है और 25 अक्टूबर को दोनों राज्यों के चुनाव परिणाम आ जाएंगे। दोनों में से किसी भी एक प्रदेश में कांग्रेस को क्या हासिल होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल काम नहीं है।
माना जा रहा है कि दोनों विधानसभा चुनावों के परिणाम की घोषणा के बाद कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी कांग्रेस के नए अध्यक्ष का चुनाव करवा सकती हैं और शशि थरूर को यह मौका मिल सकता है।युवा वोटरों पर केंद्रित मुद्दों पर बयानबाजी
युवाओं को सीधा कनेक्ट करते हैं शशि थरूर
भारत के 40 फीसदी युवाओं के सहारे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई है। शशि थरूर भी कही न कहीं देश के युवा वोटर कों कनेक्ट करने की कोशिश कर रही हैं, जो साफगोई और ईमानदारी छवि को पसंद करती है। शशि थरूर भले ही पत्नी सुनंदा पु्ष्कर मर्डर केस में ट्रायल पर चल रहे हैं, लेकिन उन पर अभी तक अपराधा साबित नहीं है। इसलिए कांग्रेस शशि थरूर को एक मौका दे सकती है। शशि थरूर के हालिया बयानों पर गौर करेंगे तो शशि थरूर के बयान युवाओं की मनस्थिति से मेल खाती है। युवा वोटरों पर केंद्रित शशि थरूर उन्हीं मुद्दों पर बयानबाजी कर रहे हैं, जिस पर युवा सोचता है।
मसलन, एक युवा इस बात खुश है कि पिछले 72 वर्षों बाद किसी प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की हिम्मत दिखाई, लेकिन वह नए जम्मू-कश्मीर में क्या हो रहा है और क्या नहीं हो रहा है इस ज्यादा फोकस नहीं कर रहा है। शशि थरूर यहां युवाओं को टारगेट करते हुए प्रधानमंत्री मोदी की प्रसंशा कर रहे हैं जबकि पूरी कांग्रेस पार्टी जम्मू-कश्मीर पर मातम में लगी हुई है, जो युवाओं को जरा भी रास नहीं आ रही है।
थरूर कह चुके हैं कि उन्हें हिंदू होने पर बहुत गर्व है
साफगोई और ईमानदार छवि वाले हैं शशि थरूर
शशि थरूर के बारे में एक बात अगर रायशुमारी कराई जाए तो शशि थरूर को जो लोग जानते हैं, वो उनकी साफगोई और ईमानदारी छवि के बारे में जरूरच चर्चा करेंगे। निःसंदेह युवा पीढ़ी कांग्रेस में अगर किसी नेता का पसंद करती है है, तो वह शशि थरूर ही होंगे। एक सधे हुए वक्ता की तरह अपनी बात रखने के लिए मशहूर शशि थरूर संयुक्त राष्ट्र में कई बार भारतीय पक्ष को रख सके हैं।
यही नहीं, उनकी तेज-तर्रार और हाजिर जवाबी का भी जवाब नहीं है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के पूर्व राजनयिक शशि थरूर हिंदु बहुसंख्यकों को उनकी ओर मोड़ने में सबसे ज्यादा सहायक साबित होगी और वह उनका हिंदू धर्म प्रति लगाव। कई बार शशि थरूर यह कह चुके हैं कि उन्हें हिंदू होने पर बहुत गर्व है जबकि कांग्रेस पार्टी की छवि हिंदु बहुसंख्यक विरोधी की बनी हुई हैँ। विधि-विधान से भगवान की पूजा में विश्वास करने वालेथरूर उपनिषदों की ‘उचित राशि’ पढ़ने का दावा करते हैं।
ऑक्सफर्ड यूनियन में जोरदार भाषण से जीत लिया था देश का दिल
यूट्यूब पर ट्रेंड हुआ था शशि थरूर का जज्बाती भाषण
केरल के तिरूवनंतपुररम से कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने वर्ष 2017 में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी की वादविवाद सोसाइटी, ऑक्सफर्ड यूनियन में अपने जोरदार भाषण से पूरे देश का दिल जीत लिया था। यहां तक सत्ता पक्ष के नेताओं को भी शशि थरूर की प्रसंशा करने से खुद को नहीं रोक सके। शशि थरर ने ऑक्सफर्ड यूनियन में ‘भारत में ब्रिटिश राज’ विषय पर दिए भाषण में ब्रिटिश हुकूमत से भारत समेत सभी उपनिवेशों को मुआवजा देने को कहा था। उनका यह कितना खास था, इसका अंदाज इससे लगा सकते हैं कि सप्ताह भर के भीतर सिर्फ यूट्यूब पर उसे 12 लाख बार देखा जा चुका है। ब्रिटेन से अपने पूर्व उपनिवेशों को मुआवज़ा देने को कहा है। शशि थरूर ऑक्सफ़र्ड यूनियन में बोलने वाले आठ लोगों में से सातवें थे। वादविवाद का विषय था, ‘सदन का मानना है कि ब्रिटेन को अपने पूर्व उपनिवेशों को मुआवज़ा देना चाहिए।’
विदेशी मामलों में संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष हैं थरूर
UN महासचिव की रेस में बान की मून को मिली कड़ी टक्कर
शशि थरूर संयुक्त राष्ट्र के पहले करियर अधिकारी थे, लेकिन वर्ष 2009 में संयुक्त राष्ट्र में थरूर संचार और जन सूचना के उप महासचिव बने। करीब 29 वर्ष संयुक्त राष्ट्र में कार्यरत रहने के बाद उन्होंने महासचिव पद के लिए वर्ष 2006 चुनाव लड़े और बान की मून की तुलना में दूसरे स्थान पर आने के बाद उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को छोड़ दिया। वर्ष 2009 से केरल के थिरुवनंतपुरम से लोक सभा सांसद थरूर वर्तमान में विदेशी मामलों में संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष के रूप में सेवारत हैं। वो भारत सरकार के 2009-2010 तक विदेश मन्त्रालय के और 2012-2014 तक मानव संसाधन विकास मन्त्रालय के राज्य मन्त्री रह चुके हैं।