चंद्रयान-2 मिशन को ‘असफल’ कहना पूरी तरह से सही नहीं. ISRO प्रमुख के. सिवन भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने भावुक होकर रो पड़े हों, पर वैज्ञानिकों के लिए उम्मीदें बरकरार हैं. लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को ही नुकसान हुआ है. चंद्रयान-2 का 95 फीसदी हिस्सा यानी ऑर्बिटर चंद्रमा का चक्कर लगाता रहेगा.
मिशन का अधिकतर साइंटिफिक डेटा ऑर्बिटर से ही आना था, लैंडर और रोवर से नहीं. पूरे मिशन के इकलौते पेलोड- एक NASA लेजर रिफ्लेक्टर को लैंडर के साथ जोड़ा गया था.
इस पूरे मिशन पर 14 साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट्स लगाए गए थे. इनमें से 8 ऑर्बिटर में हैं. ऑर्बिटर अभी चंद्रमा की कक्षा में साल भर तक चक्कर लगाता रहेगा और उसपर तैनात इंस्ट्रूमेंट्स अपना डेटा ISRO को भेजते रहेंगे. दूसरी तरफ, लैंडर और विक्रम केवल 15 दिन तक ही डेटा भेज पाते. यानी चांद को जानने की भारतीय कोशिशों को कोई खास झटका नहीं लगा है.
ऑर्बिटर चंद्रमा की कई तस्वीरें लेकर इसरो को भेज सकता है. ऑर्बिटर लैंडर की तस्वीरें भी लेकर भेज सकता है, जिससे उसकी लोकेशन के बारे में पता चल सकता है.
ऑर्बिटर पर हैं ये इंस्ट्रूमेंट्स
ऑर्बिटर पर दो कैमरा लगे हैं. ऑर्बिटर हाई रेजोल्यूशन कैमरा (OHRC) एक ही लोकेशन की अलग-अलग ऑर्बिट से अलग-अलग एंगल्स से दो बार तस्वीरें लेते हैं. इसके अलावा एक टेरेन मैपिंग कैमरा (TMC2) पूरे चांद की सतह का 3D मैप तैयार करेगा. इन दोनों के डेटा से भविष्य के मिशंस की तैयारियों में मदद मिलेगी.
एक सोलर एक्सरे मशीन भी ऑर्बिटर के साथ है. यह मशीन चांद की जमीन पर सिलिकॉन, कैल्शियम, एलुमिनियम, लोहा, सोडियम और मैग्नीशियम के लेवल्स का पता लगाएगी.
इमेजिंग इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर पूरे चांद पर पानी के संकेत ढूंढेगा. इसके अलावा डुअल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार भी लूनार मैपिंग करेगा. इसके अलावा दो इंस्ट्रूमेंट्स को चांद के वातावरण का पता लगाने भेजा गया है.
अगर लैंडर सच में खो गया हो तो ISRO को साउथ पोल के नजदीक जमीन का डेटा नहीं मिलेगा. हालांकि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर साउथ पोल के ऊपर से गुजरेगा और डेटा कलेक्ट करेगा.