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छत्तीसगढ़ : कृषि विवि ने तैयार की कीट की ऐसी प्रजाति, जो गाजर घास को करेगी नष्ट

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। गाजर घास की समस्या से अब प्रदेशभर के किसानों को आने वाले कुछ वर्षों में जल्द राहत मिलेगी। इंदिरा गांधी कृषि विवि के कीट विभाग की जैविक कीट नियंत्रण प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने चटख चांदनी, जिसे गाजर घास भी कहा जाता है, उसकी बढ़ रही पैदावार को रोकने के लिए रिसर्च किया। पार्थीनियम का जैविक नियंत्रण मैक्सीकन बीटल (जाइगोग्रामा बाईकोलोरेटा) कीट के प्रजनन कार्यकाल पर यह शोध हुआ। इससे स्थानीय क्लाइमेंट के आधार पर टिश्यू कल्चर कर मैक्सीकन बीटल कीट तैयार किया गया है।

किसानों को प्रशिक्षण देकर उन्हें खेत के आसपास क्षेत्रों में दवा का छिड़काव करने को कहा गया। ज्ञात हो कि इसके परिणाम बहुत बेहतर मिल रहे हैं। उम्मीद की जा रहा है कि जैसे – जैसे इनकी संख्या बढ़ेगी, उसके आधार पर गाजर घास की पैदावार कम हो जाएगी। देश में इसकी आवक अमेरिका से 1954 में गेहूं के आयात के साथ हुई थी, जो कि अधिकांश मैदानी क्षेत्रों में पाया जाता है।

हफ्तेभर में चट कर जाएगे पत्ते

विभाग की प्रभारी डॉ.जया गांगुली ने बताया कि रिसर्च के बाद देखा गया है कि एक वयस्क बीटल एक पार्थीनियम के पूर्ण पौधे व पत्तियों को लगभग एक हफ्ते में खा सकता है, जो कि बैंगलोर, आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों में 10 से 12 दिन लगते हैं। प्रदेश का क्लाइमेंट सामान्य होने के कारण वनस्थलीय क्षेत्र है। वहीं रिसर्च के दौरान कई प्रमुख समस्याएं आईं।

इसमें कीट के अंडे अधिक समय तक रह नहीं पाते थे, जबकि अंडे से बच्चे तैयार होने में महज दो से चार दिन लगता है। इसके लिए विवि के लैब में प्रजनन, अंडे से बच्चे तैयार होने के कार्यकाल को रिसर्च किया गया ।

विभाग में विभिन्न् कीटों पर रिसर्च कर रहे शोध छात्र सचिन जायसवाल की माने तो इस कीट के वयस्क एवं इल्ली दोनों ही पार्थीनियम के पत्तों को खाने लगे हैं। इस तरह से इससे अंडे से सुरक्षित बच्चे तैयार करने में सफलता पायी गई यानी कीट तैयार होने के लिए टिश्यू कल्चर के सिस्टम से स्थानीय क्लाइमेंट में सफलता मिली है।

एक हजार कीटों का हुआ वितरण 

विभाग से किसानों को लगभग एक हजार की संख्या में कीट का वितरण किया गया है, जिससे इसके साथ ही जागरूकता अभियान भी लगातार चलाया गया। जिसमें किसानों को बताया कि किस प्रकार से इनकी पैदावार को कम किया जा सकता है।

ज्ञात हो कि हर प्रकार के वातावरण में उगने की अभूतपूर्व क्षमता वाली गाजर घास एक खरपतवार है, जो 90 सेमी से 100 मीटर ऊंची होती है। इसकी पत्तियां गाजर या गुलदाउदी की पत्तियों की तरह होती हैं। अक्सर सड़क के किनारे, खेत के मेड़ पर पाई जाती है। फूल सफेद रंग के छोटे-छोटे तथा शाखाओं के शीर्ष पर लगते हैं।

स्वास्थ्य पर इसके कुप्रभाव 

– गाजर घास की वजह से मनुष्य में तरह-तरह के चर्म रोग हो जाते हैं। 

– संपर्क लगातार बने रहने पर शरीर की चमड़ी के ऊपर एक्जीमा की तरह प्रभाव पड़ता है। 

-चर्म रोग के अतिरिक्त पार्थीनियम के कारण श्वांस संबंधी बीमारियां जैसे दमा (अस्थमा) आदि भी होते हैं।